अपनी खुशबू मन के आँगन में बिखेरती- “ टोर्नेडो “

सुधा ओम ढींगरा
सुधा ओम ढींगरा
अपनी खुशबू मन के आँगन में बिखेरती- कहानी “टोर्नेडो” अपने गर्भ में एक सन्देश लिये हुए है. सुधा ओम ढींगरा जी की यह कहानी ‘टोर्नेडो’ दो पीढ़ियों की कशमकश और समयानुसार जुड़े रिश्तों को शब्दों में बांधकर एक नया पहलू आज के पाठक के सामने रख पायीं हैं, जो कुछ पहलुओं की पठनीयता के बाद बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर कर देता है।
कहानी में सस्पेंस का प्रयास अंत तक बरक़रार रहा। कहानी की पात्र नौजवान क्रिस्टी हर रोज़ मन में एक कहानी घड़ती है, खुद को सुनाती और सो जाती है. संवादों के माध्यम से कहानी के क़िरदार अपनी बात कहने में सफ़ल रहे हैं. एक क्रिया दूसरी क्रिया की उत्पति का कारण बनती है. पानी की एक लहर जैसे अपनी हलचल से दूसरी को जगा देती है, उसी तरह मानव मन में उठा बवंडर भी अपनी ख़ामोशियों के शोर से सोच में उमंगें पैदा करता है. हलचल का यही उफ़ान उस निशब्दता को भंग करता है जो किरदारों के मन में बर्फ़ की तरह जमी हुई है. जीवन की परिधी में उस मोड़ से गुज़रते हुए इस कहानी की ज़मीन हर युवा जेनरेशन को अपने आप से जोड़ती है जिसमें कुछ अनकही बातें किरदारों के अंतर्मन के द्वंद्व को, उनके ज्ञान-अज्ञान की सीमाओं को, उनकी समझ-बूझ से परिचित कराती है. मन की अवस्था जिसमें सोच की उलझी- उलझी बुनावट है वही नॉर्मल को अब्नार्मल बना पाने में पहल भी हुई है। संस्कार और संस्कृति घर में, आसपास से, वातावरण से हासिल होते हैं. पर कहीं ऐसा भी होता है कि उन संस्कारों की धरोहर को लेकर ही कुछ आत्माएं जन्म लेती हैं- जैसे क्रिस्टी. नाम, माता- पिता, पालन- पोषण सब विदेशी, पर पाकीज़ सोच का दायरा उसके अपने तन-मन में पनपता है, फिर वह चाहे किसी हिन्दू का हो, या क्रिस्टियन का या किसी और जात वर्ण का. वक़्त और वातावरण का उस से कोई सरोकार नहीं रहता.
देवी नागरानी
देवी नागरानी
सुधाजी ने इस कहानी को रेत की धरातल पर रखे हुए नाज़ुक रिश्तों के इक कोण को शब्दों में बांधकर एक पहलू नई पीढ़ी के सामने रखा है. विषय में डूब जाने से कहानी के किरदारों के साथ न्याय कर पाने की संभावना बनी रहती है, और कल्पना यथार्थ से घुल मिल जाती है. किरदारों का जीवन, उनकी भाषा, संवाद शेली, नाजुक सोच की आज़ादी जो पूरी तरह से वक्त की बहती धरा के अनुकूल है अपना परिचय पात्रों के माध्यम से पाने में कामयाब रही है. कई प्रभावशाली बिंब मन की तलवटी पर अपनी छाप छोड़ने में समर्थ व सक्षम रहे हैं सुधा जी की अपनी पैनी समीक्ष्तामक निगाह इस दौर से गुज़रते कई पथिकों की गवाह रही है , जो इस राह से गुज़रे है और यही शिद्दत कलमबंद किये गए अहसासात को एक दिशा बख्शने के लिए काफ़ी हद तक कारगर रही है. कहानी गुज़रे पलों और आाने वाले पलों के बीच की एक कड़ी है जो मार्गदर्शक बनकर राहें रोशन करेगी.
देवी नागरानी
न्यू जर्सी, यू. एस. ए., [email protected]

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