-समीक्षक-कृष्ण गोयल- दिनांक-मंगलवार, 12 मार्च 2013 गांधी शांति प्रतिष्ठान में एक भव्य समारोह में, ऊपर लिखी पुस्तक का लोकार्पण हुआ, सुश्री देवी जी को सन्मानित किया गया। इस कार्यक्रम को एक महोत्सव रूप में अंजाम दिया गया जिसमें मुख्य अतिथि: डॉ॰ श्याम सिंह ‘शशि’, विशिष्ट अतिथि –डॉ॰ भारतेन्दु श्रीवास्तव, आचार्य धीरेंद्र त्रिपाठी, डॉ॰ योगेंद्र शर्मा ‘अरुण’, डॉ॰ अतुल जैन, श्री अजय चौधरी, और सम्माननीय अध्यक्ष डॉ॰ कमल किशोर गोयनका रहे।
मेरे हाथ जब उनका भेंट किया हुआ यह संग्रह आया तो पढ़े बिना रहा नहीं गया। हमें शुरू से ही सिंधु धाटी के प्रति बहुत सन्मान है, कारण कि सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) की उत्पति सिंध में ही हुई है। इस पुस्तक की भूमिका से भी हमें सिंधु धाटी के आर्य धर्म पर स्थापित संस्कृति का ज्ञान हुआ, जो वंदनीय है। कहानियों के पात्र तथा घटनाएँ सजीव हैं और मन को इस तरह अभिभूत करती हैं कि पढ़ने-पढ़ते कहानी के किरदारों के साथ-साथ ही मन सफर करता चला जाता है। ये जहां–वो मन: ए॰ जे॰ उत्तम एक अनपढ़ सब्ज़ीवाली वाली ने एक महान सच कहा है कि “किस पत्नि को अपने पति के अन्य नारी से संबंध के कारण ईर्षा नहीं होती? काम काज करने वाली स्त्रियों के पास चिंता करने के लिए समय नहीं होता, बहुत कम करने वाली स्त्रियाँ ही अपनी शक्ति को व्यर्थ आलोचना में लगा कर अपना दांपत्य जीवन नष्ट करती हैं। ” नारी पर सारी मर्यादाओं के बंधन थोपे जाते हैं, जब कि पुरुष खुले आम रंगरलियाँ मनाते हैं। दांपत्य जीवन एक सांझी जिम्मेवारी है, पति-पत्नि दोनों को मिलकर आदर प्रेम से एक दूसरे को सन्मानित करते हुए अपने जीवन को खुश हाल बनाना चाहिए ताकि उनके प्रेम की खुशबू सभी अपने आस पास बरकरार रहे। मासूम यादें- कमला मोहनलाल बेलनी जात-पात, ऊंच-नीच के बनावटी भेद ने हमारी आत्मा को अंधकारमय बना दिया है, आनंदमय जीवन दुखों का घर बन गया है, झूठी शान व आन के कारण सच्चे प्रेम को सूली पर चढना पड़ता है। अपनी ही मूर्खता के कारण मानवता प्रताड़ित हुई है। नर्क जैसे इस अंधेरे को अपनी चेतना से दूर करना होगा। अब समय आ गया है जागने का। शांत मन में समर्पित भाव से प्रेम के सच्चे सुमन खिलाने होंगे जिससे यह धरती जन्नत बन पाये। और मैं बड़ी हो गई: देवी नागरानी
पैंतीस दिन-छत्तीस दिन: ठाकुर चावला नजाइज़ उम्मीदें रिश्तों के बीच दरारें पैदा करती हैं, और जब वे चौड़ी होती है तो एक दिन भरभरा कर धराशयी हो जाती हैं। सच का महल झूठ की बुनियाद पर न टिका है, न टिक पाएगा। जीने की कला: देवी नागरानी कला का प्रेम जीवन में दिव्यता तथा अमरता लाता है, अगर जुनून की हद तक निष्ठा और संकल्प में शिद्दत है, तो मौत भी ज़िंदगी से हार जाती है। जीवन के संघर्ष की शिद्दत काला प्रेमी को अमरता प्रदान दे जाती है। हम सब नंगे है: कीरत बाबनी मनुष्य का पाप स्त्री को बेशर्म बनाकर नंगा कर देता है, उसे पत्थर दिल और भावहीन बना देता है। पुरुष प्रधान समाज की परतों को उकेरती हुई सच्चाई के सामने आईना है यह कहानी। छोटा दुख बड़ा दुख: बंसी खूबचंदानी शायद यह मनुष्य की कमजोरी है, जो बाहरी और भीतरी भावनाओं की कश्मकश में मोह-माया के असर तहा मन को शिकस्त देती है। ज़िंदगी हम कहाँ जी पाते है, वही हमें जी लेती है। कर्ज़ की दरख्वास्त :लाल पुष्प इस कथा में दफ़तरों में लाल फीतेबाजी का वर्णन है- बेबसी को अफसरों की चौखट पर जाने क्या क्या नहीं करना पड़ता है, कितने सजादे करने पड़ते हैं -अपनी हालात के पैबंदों को बरकरार रखने के लिए। नयी माँ: देवी नागरानी आम नासमझ मनुष्य समय के दुष्चक्र में पिस जाता है, समझदार व्यक्ति अपनी शुद्ध भावनाओं और कला कौशल से समय के चक्र को बदलकर अपने अनुकूल बना लेता है और रिश्तों को प्रेम की डोर में बांधने में कामयाब हो जाता है। रिश्ते तो निबाह और निर्वाह की बुनियाद पर टिके रहते हैं। यह कहानी इसी बेजोड़ दिशा का एक नई कड़ी जोड़ती है। दस्तावेज़: नारायण भारती इंसानियत, भाईचारे तथा रिश्तों के निबाह निर्वाह में अक़ीदत रखते हुए उन तत्वों को पुख्तगी बख्शती है, जो मानवता के प्रतिनिधित्व में अपनी हैसियत को ज़िंदा रखते हैं। हिन्द और सिंध के भाईचारे कि पक्षधर कहानी…!! और गंगा बहती है: सतीश रोहड़ा मनुष्य की दानवता, कामुकता, अमानुषता नारी का शोषण करती हुए संवेदना की दास्तान जो नारी मन को उधेड़ती है, उकेरती है,। जुलूस: इन्दिरा वासवानी इस कहानी में रिश्तों को दुकानदारी बनाने वाले समाज के ठेकेदारों का चित्रण बखूबी हुआ है। पहचान और प्रशंसा का प्रतीक है यह सियासत जो दुनियादारी को भी नहीं बख्शिती।
बिजली कौंध उठी: माया राही आज की तिजारती मानसिकता ने रिश्तों को मृत्यु और कलेश की कगार पर ला खड़ा किया है। अपनी सुविधाजनक स्वार्थ की प्रधानता दर्शाती हुई कहानी है। जियो और जीने दो: देवी नागरानी इस छोटी सी कहानी में सम्पूर्ण वेदों का तत्व तथा निचोड़ भरा हुआ है। इस कहानी की गागर में सागर की तरह दिव्य प्रेम के शिखर, आकाश और समुद्र भर दिये गए हैं। आज़ादी और कफ़स का एक तालमेल किरदारों की अभिव्यक्ति से सामने लाया गया सच है।
जेल की डायरी: वीना शिरंगी जो दिखाई देता है, वह अक्सर सही नहीं होता। सच्चाई का ज्ञान हमेशा कुर्बानी मांगता है। बहुत ही अच्छी कहानी, सूक्ष्म भावनाओं को पिरोकर लिखी गई है। सच्चा पाकिस्तानी: हरी पंकज सिंधु घाटी सत्य की भूमि है, जिसे छोड़ने का ग़म, उसकी मिट्टी को छूने की ललक, चन्दन समान माथे पर सजाने की एक अनबुझी तिश्नगी सीने में शूल की तरह धँसी रहती है। इन भावनाओं को अभिव्यक्ति करती हुई अनोखी कहानी। बारूद: हरी मोटवानी भगवान की कुदरत को समझना बहुत मुश्किल है, सच्चा कलाकार अपनी कला को बेचता है तो सिर्फ व सिर्फ रोटी कमाने के लिए। लेकिन अपने ज़मीर, उसूल और शरीर को बेचने वाले कलाकार स्वार्थ की नींव पर खड़े होकर इस बात का महत्व नहीं समझ सकता कि वे कला क्या है? उससे अनिभिज्ञ वह उसे कभी अमर नहीं कर सकता। श्रीमति देवी नागरानी द्वारा बीस कहानियों का यह सिंधी से हिन्दी में अनुवाद किया गया यह कहानी-संग्रह बहुत ही उम्दा है और अपनी निजी लाइब्ररी में रखने योग्य है।
समीक्षक: श्री कृष्ण गोयल, 307 वी, पॉकेट-2, मयूर विहार, पी-1, दिल्ली 110091
फोन: 011-22751806 /
कहानी संग्रहः और मैं बड़ी हो गई, लेखिका: देवी नागरानी, पृष्ठ : 112, कीमतः रु 150, प्रकाशकः संयोग प्रकाशन, 9 ए, चिन्तामणि, आर॰ एन॰ पी॰ पार्क , भयंदर (पूर्व) मुंबई 401105