मौन साधक की तरह ज़िंदगी से लड़कर फतह पानी है

देवी नागरानी
देवी नागरानी
-देवी नागरानी- जीवन एक संघर्ष, एक चुनौती है जिसे हर इंसान को स्वीकारना पड़ता है। संघर्ष में न सिर्फ़ उन्हें ऊर्जस्विता मिलती है, बल्कि जीवन की विविध दिशाओं और दशाओं से उनका परिचय भी होता है। मानव समाज का इतिहास स्त्री को सत्ता, प्रभुत्व एवं शक्ति से दूर रखने का इतिहास है। वर्तमान दौर में स्त्री विमर्श, स्त्री मुक्ति, नारी के अधिकारों को एक विषय बनाकर वाद-विवाद होता आया है, पर ज़िंदगी वाद-विवाद नहीं जो तर्क-वितर्क से उलझनों को सुलझा सके। व्यवस्था के संघर्ष के साथ-साथ जब तक स्त्री समाज की लड़ाई से नहीं जुड़ेगी, तब तक उसे अपना अभीष्ट, अपना अधिकार, अपना सन्मान हासिल नहींप सकेगी। यह दर्शन इस संघर्षशील समाज में अनेक विमर्शों-दलित विमर्श, स्त्री विमर्श, सिक्षा विमर्श के सरोकारों से जुड़ा हुआ है, और रहेगा।
ज़िंदगी तो एक यात्रा है जिसके दो छोर हैं आलोक और तिमिर। जिस तरह अंधेरे के गर्भ से उजाला जन्म लेता है उसी तरह ग़म के पहाड़ों से भी राहतों का रास्ता खुलता है। यह तो कालचक्र है, चलता ही रहता है, रात-दिन, धूप में, छाँव में इन संघर्ष भरी राहों में……….!
ज़िंदगी का शजर हमें खटे-मीठे फल देता है जिन्हें हर आदम को चखना पड़ता है , ज़ाइका लेना पड़ता है, और यूं ही क़दम-दर-क़दम आगे और आगे बढ़ना है। यही जीवन है, एक यात्रा मात्र! और इसी अथक यात्रा में एक मोड़ ऐसा आता है जहां सभी रास्ते बंद हो जाते हैं और जो खुला हुआ सामने मिलता है वही हमारी हद और सरहद बन जाता है। उस दायिरे में जीवन जीना वक़्त की मांग होती है, यही इंसान इंसान के मनोबल का इम्तिहान भी है ! यहाँ श्री अशोक अंजुम की कविता इस दिशा में अर्थपूर्ण, प्रेरणादायक शब्दों से राह रौशन कर रही है- मैं हवाओं से होड़ लेता हूँ, वक़्त के रुख को मोड़ लेता हूँ/ प्यास में जल नज़र न आए/ पत्थरों को निचोड़ लेता हूँ/
सुना है जब सुख घर के अंदर होता है तो दुख घर के बाहर पहरा देता रहता है। कभी तो बिना दस्तक दिये बेमौसम बारिश की तरह भीतर आ जाता है, आँगन में, घर में, जीवन में। ऐसा ही कुछ हरेक की ज़िंदगी में कहीं न कहीं, कभी न कभी होता है, यह हम सब महसूस करते हैं, भोगते हैं और जीवन की हालात का तजुर्बा हासिल करते हैं। हादसे हर मोड़ पर मिल जाते है, दुर्घटनाएँ अक्सर हो जाती है, दुर्घटनाओं में घर परिवार पर ग़मों का पहाड़ टूट पड़ता है। आँखों में पिघलते दर्द का समंदर वीरनियों को कहाँ बसा पाता है? बस मौसम बदलते है, कभी आबादियाँ वीरान हो जातीं है, कहीं दिल। ज़िंदगी पर भी कभी हादसों की बर्क़ गिरती है, जो आशियाँ जलाए बिन चैन नहीं लेती।
महादेवी जी का कथन “हमारे असंख्य सुख हमें चाहे मनुष्यता की पहली सीढ़ी तक भी न पहुंचा सके, किन्तु हमारा एक बूंद आँसू भी जीवन को अधिक मधुर, अधिक उर्वर बनाए बिना नहीं गिर सकता।“ इस सत्य की सकारात्मकता को ज़िंदगी के इस तवील सफ़र में हर एक ने पल-पल जिया है और यही अनुभव जीवन के संघर्षमय रस्तों पर चलने का हौसला प्रदान करता है। नारी निर्बल है, असहाय है यह बात इस जमाने में ज़ियादा महत्व नहीं रखती, शायद इसलिए कि नारी अपने अस्तित्व की पहचान पा रही है, आर्थिक आज़ादी की बागडोर भी अब सशक्तता से संभालने लगी है । अपनी मर्यादा और मान-हानि का अंतर पहचानते हुए समाज के हर क्षेत्र में सफ़लता से क़दम आगे और आगे बढ़ा रही है। नारी का मात्रत्व उसकी विवशता नहीं, उसकी फ़ितरत है। अपने बच्चों का लालन-पालन करना ,उनकी परिपूर्ण परवरिश की ज़िम्मेदारी एक मात्र नारी के लिए मुश्किल ज़रूर है, पर असंभव कुछ भी नहीं। एक आस्था है जो हौसलों के परों में संचार का हर साधन भर देती है और बेपरवाज़ पंछी अपनी तव्वजू से अपना लक्ष्य पा लेता है। ज़िंदगी में भरोसा बड़ी ताक़त देता है-खुद में, संसार को चलाने वाले उस परम पिता में, और यही निष्ठा बीच भँवर में फंसी जीवन नैया किनारे पर ला देती है। उसी भरोसे के सामने ज़िंदगी तमाम विरूपताओं के साथ खड़ी है, हर नए दिन किसी न किसी हादसे से मुलाक़ात होती है, पर फौलाद सा भरोसा उन पहाड़ों के बीच से अपनी राह बनाने में सक्षम हैं। किसी शायर ने खूब कहा है: बंदगी का मेरी अंदाज़ ऐसा होता है / मेरा क़ाबा मेरे सजदों में छुपा होता है। नारी की संघर्ष-क्षमता और ऊर्जा में ही उसकी अपनी पहचान बनाने और पाने की ताक़त छिपी हुई होती है। जब उस पर उसपर बन आती है तो वह अपने बच्चों के लिए ज़िंदगी की सारी चुनौतियों से रू-ब-रू होती है, उन्हें स्वीकारती है। काव्यायानी की एक सशक्त रचना ‘जादू नहीं कविता’ का एक-एक अंग स्त्री में सच से लड़ने की स्फूर्ति प्रदान करता हुआ मन में, सोच में, जीवन के संघर्ष की राहों में हौसले की ऊर्जा फूंकता है।
“स्वीकार है मुझे यह अधूरापन
और यह नाउम्मीदी
उम्मीदों के नाम पर, लो
मुझे स्वीकार है इन हालत की
समूची चुनौतियाँ
न फ़क़त नारी, पर हर इंसान में एक शक्ति संचारित होती है। उसे जानना, पहचानना है और सही दिशा में ले जाना है और हर क़दम जो आगे बढ़ते ए और आगे चलते जाना है। यह निश्चय ही जीत का पहला प्रतीक बन जाता है। एक बात निश्चित है कि शिक्षा एक मशाल की तरह है , हर हाथ में होनी चाहिए, ताकि राह रौशन करने के लिए अपने ही घर का दीपक रौशन किया जाय। शिक्षा ज़रूरत के समय नारी में नयी चेतना और अपार विश्वास जागृत करती है। प्रेरणा का स्त्रोत्र अगर नारी शक्ति है तो सच मानिए-वह हर दिशा से अंधकारों को चीरकर उजालों को ले आएगी, ख़ुद के लिये एक नया क्षितिज ढूंढ लेती है, शायद वह अपने जीवन का अर्थ ढूंढ पाने में सक्षम हुई है। कोई सुने न सुने इंकलाब की आवाज़ पुकारने की हदों तक हम पुकार आए हैं।
हिंदी साहित्य की परम्परा में अपनी संवेदनशील कविताओं द्वारा अपनी अलग पहचान बनाने वाली कवियत्री ‘रश्मि प्रभा ‘ महाकवि सुमित्रानंदन पंत की मानस पुत्री सरस्वती प्रसाद की बेटी हैं । उनका कहाँ है कि सही मायनों में नारी को स्वयं अपने विचारों से मुक्त होना है .उसे अपनी उर्जा , अपनी अस्मिता , अपने आर्थिक-सामाजिक हक़ को एक अर्थ देना है और उसके लिए मन से मजबूत होना है ! ‘हवा के रुख को मोड़ने की चाह रखो। अपने अन्दर इतना विश्वास रखो’ जैसी रचनाओं की क़लमकार रशिम प्रभा जी की रचनाओं में सशक्त नारी कहती है-
‘बहुत छला तुमने /या फिर यूँ कहो /स्वभाव वश मैं छली गई
पर अब-/ये मुमकिन नहीं /भूले से भी नहीं …
मार्गदर्शकिता की ज़रूरत आसानियों के दरवाजे खोल देती है, बस आस्था की ज़रूरत है, खुद पर और इस सृष्टि बनाने वाले पर। बेपनाह मुश्किलातों की अंधेरी पगडंडियों से गुज़र कर, मैं ख़ुद भी इस रोशनी से परिचित हुई हूँ, मुझे सदा से यूं महसूस हुआ है कि वो मैं न थी कोई और था, जो मार्गदर्शक बनकर मेरी राहें मंज़िलों की ओर ले जाता रहा। आज पीछे मुड़कर देखती हूँ तो लगता है, I just walked on the footprints existing on the grains of sand । यहाँ मैं प्रज्ञा रावत का बीज मंत्र दोहराना चाहती हूँ जो नारी के आत्मविश्वास एवं मनोबल को बनाए रखने के लिए भावनात्मक शब्दों में बुना गया है…….
“जितना सताओगे, उतना उठूँगी
जितना दबाओगे, उतना उगूँगी
जितना बाँधोगे, उतना बहूँगी
जितना बंद करोगे, उतना गाऊँगी
जितना अपमान करोगे, उतनी निडर हो जाऊँगी
जितना सम्मान करोगे, उतनी निखर हो जाऊँगी”
जयहिंद!!
देवी नागरानी,
९-D कॉर्नर व्यू सोसाइटी, १५/ ३३ रोड, बांद्रा , मुंबई ४०००५० . फ़ोन: 9987928358

1 thought on “मौन साधक की तरह ज़िंदगी से लड़कर फतह पानी है”

  1. Girdhar ji
    Ajmernama ek sthapit manch ho Gaya
    SAHITY, SANSKRUTI V SABHYATA KA…..
    UPDATES itne sateek aur past ki Tatparta v Saleeka. Pathaneeyata mein le Jaane mein saksham….meri Hardik shubhkamnayein

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