२२ मार्च २०१६ जल दिवस पर विशेष
जो लोग यमुना पर सालो से शोध कर रहे है उन विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी वजह है औद्योगिक प्रदूषण, बिना ट्रीटमेंट के कारखानों से निकले दूषित पानी को सीधे नदी में गिरा दिया जाना, यमुना किनारे बसी आबादी मल-मूत्र और गंदकी को सीधे नदी मे बहा देती है। लेकिन इनमें सबसे खतरनाक है रासायनिक कचरा जो कि यमुना किनारे लगे कारखाने उडेल रहे है।
आज यमुना का हाल घर में पड़ी बूढ़ी मां की तरह हो गया है जिसे हम प्यार तो करते हैं, उसका लाभ भी उठाते हैं, लेकिन उसकी फिक्र नहीं करते। यमुना का आधार धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक है। इस नदी का गौरवशाली इतिहास रहा है, इसलिए यमुना को प्रदूषण मुक्त कर उसकी गरिमा लौटने की मुहिम के लिए सभी देशवासिओ को आगे आना होगा। देश की हर नदी पर व्यवासायिक गतिविधियां दिनोदिन बढती जा रही है, कम से कम यमुना और देश की प्रमुख नदियों को इससे मुक्त रखने की जरूरत है।
दिल्ली का वजीराबाद बैराज एक ऐसी जगह है जहाँ पर आपको यमुना की बदहाली का जवाब शायद मिल जाएगा। यही वो जगह है जहाँ से यमुना नदी दिल्ली मे प्रवेश करती है और इसी जगह पर बना बैराज यमुना को आगे बढ़ने से रोक देता है। यही तक यमुना नदी बहती है इसके आगे यमुना रुपी नाला बहता है। वजीराबाद के एक ओर यमुना का पानी एकदम साफ और दूसरी तरफ एक दम काला, इसी जगह से नदी का सारा पानी दिल्ली द्वारा उठा लिया जाता है और जल शोधन संयत्र के लिए भेज दिया जाता है ताकि दिल्ली की जनता को पीने का पानी मिल सके। बस यहीं से इस नदी की बदहाली भी शुरु हो जाती है। दिल्ली में यमुना नदी में 22 किलोमीटर के सफर में ही 18 नाले मिल जाते हैं तो बाकी जगह का हाल क्या होगा। इसमें सबसे बड़ा योगदान औद्योगिक प्रदूषण का है जो साफ हो ही नही रहा।
यमुना नदी एक हजार 29 किलोमीटर का जो सफर तय करती है, उसमें दिल्ली से लेकर चंबल तक का जो सात सौ किलोमीटर का जो सफर है उसमें सबसे ज्यादा प्रदूषण तो दिल्ली, आगरा और मथुरा का है। दिल्ली के वजीराबाद बैराज से निकलने के बाद यमुना बद से बदतर होती जाती है। इन जगहों के पानी में ऑक्सीजन तो है ही नही। चंबल पहुंच कर इस नदी को जीवन दान मिलता है और पुनः पुनर्जीवित होती है। वो फिर से अपने रूप में वापस आती है।
नदी साफ रहने के लिए जरूरी है कि पानी बहने दिया जाए। हर जगह बांध बना कर उसे रोकने से काम नही चलेगा। दिल्ली के आगे जो बह रहा है वो यमुना है ही नही वो तो मल-जल है। पहले मल-जल को नदी में छोड़ दो और उसके बाद उसका उपचार करते रहो तो नदी कभी साफ नही हो सकती।
यमुना ऐक्शन प्लान के दो चरणों में इतना पैसा बहाने के बाद भी अगर नदी का हाल वही का वही है तो इसका सीधा मतलब ये है कि जो किया गया हैं वो सही नही है। इसमें से ज्यादा पैसा यमुना को साफ और प्रदूषित मुक्त बनाने की बजाय भ्रष्टाचार की भेट चढा है ये जगजाहिर होता है। मोदी सरकार ने सरकार गठन के बाद गंगा और उसकी सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए नमामि गंगे योजना का गठन किया था। इस योजना (नमामि गंगे) के तहत नदी के प्रदूषण को कम करने पर पूरा जोर होगा। इसमें प्रदूषण को रोकने और नालियों से बहने वाले कचरे के शोधन और उसे नदी से दूसरी ओर मोड़ने जैसे कदम उठाए जाएंगे। कचरा और सीवेज परिशोधन के लिए नई तकनीक की व्यवस्था की जाएगी। 2 साल होने आये सरकार को लेकिन न तो नदियों का प्रदूषण काम हुआ है। न ही प्रदूषण को और नालियों से बहने वाले कचरे के शोधन और उसे नदी से दूसरी ओर मोड़ने जैसे कदम उठाए गए हैं। और न ही कचरा और सीवेज परिशोधन के लिए नई तकनीक की व्यवस्था की गयी है।
मोदी सरकार द्वारा चलायी जा रही नमामि गंगे योजना का लाभ अभी तक यमुना नदी को नहीं मिला है। असल में कहा जाए तो नमामि गंगे का लाभ गंगा को भी नहीं मिला है। कहा जाए तो गंगा की स्वच्छता को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिबद्धता के बावजूद नमामि गंगे योजना धरातल पर नहीं उतर पा रही है। जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्री ने गंगा और उसकी सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 2018 तक का समय माँगा है। इतने सालों में गंगा और यमुना साफ नहीं हो पाई तो हमें 2018 तक का भी इंतजार कर लेना चाहिए।
असल बात यह है की कालिंदी कि हालत सुधारने के लिए प्रयास नहीं किए गए. सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर भी कार्यक्रम चलाए गए पर हालात जस के तस रहे.इसके लिए जरूरत है दृढ संकल्प की जो की हर भारतीय के अन्दर होना चाहिए तब हमें करोडो रुपए बहाने की भी जरूरत नहीं पडेगी। सभी धर्म सम्प्रदाय के लोगो को यमुना को अपनी माँ का दर्जा देना होगा क्योकि यमुना देश के करोडो लोगो की प्यास बुझती है चाहे वह हिन्दू हो या मुस्लिम इसके लिए सभी को प्रयास करना चाहिए। इसके अलावा तब तक शांत नहीं बैठना है- जब तक यमुना अविरल नहीं हो जाती है। और आज जरूरत है यमुनातट पर बसे लोगों को यमुना की दुर्दशा के बारे में बताने और उन्हें जागरूक करने की। तभी हम यमुना की धारा को अविरल, निर्मल तथा आचमन लायक बना सकते है और ब्रज को वही पुरानी कालिंदी लोटा सकते है।
– ब्रह्मानंद राजपूत, दहतोरा, आगरा (यमुना चिन्तक)
(Brahmanand Rajput), Dehtora, Agra
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