तैयारी करें महावीर बनने की

m– डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि – सदियों पहले प्रभु महावीर का अवतरण हुआ। वे जन्म से महावीर नहीं थे। उन्होंने जीवन भर अनगिनत संघर्षों को झेला, कष्टों को सहा, दुख में से सुख खोजा और गहन तप एवं साधना के बल पर सत्य तक पहुंचे, इसलिये वे हमारे लिए आदर्शों की ऊंची मीनार बन गये। उन्होंने समझ दी कि महानता कभी भौतिक पदार्थों, सुख-सुविधाओं, संकीर्ण सोच एवं स्वार्थी मनोवृत्ति से नहीं प्राप्त की जा सकती उसके लिए सच्चाई को बटोरना होता है, नैतिकता के पथ पर चलना होता है और अहिंसा की जीवन शैली अपनानी होती है।
प्रत्येक वर्ष भगवान महावीर का जन्म कल्याणक – निर्वाण कल्याणक हम मनाते हैं। समस्त विश्व में जैन समाज और अन्य अहिंसा प्रेमी व्यक्तियों द्वारा बडे हर्ष और उल्लास के साथ उनकी जयंती मनाई जाती है। उस दिन भगवान महावीर की शिक्षाओं पर रैलियां – संगोष्ठियां होती हैं, भाषण होते हैं और कई प्रकार के कार्यक्रम आयोजित होते हैं। भगवान महावीर की शिक्षाओं का हमारे जीवन और विशेषकर व्यावहारिक जीवन में किस प्रकार समावेश हो और कैसे हम अपने जीवन को उनकी शिक्षाओं के अनुरूप ढाल सकें, यह अधिक आवश्यक है लेकिन इस विषय पर प्रायः सन्नाटा देखने को मिलता है। विषेशतः जैन समाज के लोग एवं अनुयायी ही महावीर को भूलते जा रहे हैं, उनकी षिषाओं को ताक पर रख रहे हैं। दुःख तो इस बात का है कि जब समाज के सर्वे-सर्वा लोग ही सबसे ज्यादा महावीर को सबसे अधिक अप्रासंगिक बना रहे हैं, महावीर ने जिन-जिन बुराइयां पर प्रहार किया, वे उन्हें ही अधिक अपना रहे हैं। उस महान् क्रांतिकारी वीर महापुरुश की जयंती भी आज आयोजनात्मक होती है, प्रयोजनात्मक नहीं हो पा रही है। हम महावीर को केवल पूजते हैं, जीवन में धारण नहीं कर पाते हैं। हम केवल कर्मकाण्ड और पूजा विधि में ही लगे रहते हैं और जो मूलभूत सारगर्भित शिक्षाएं हैं, उन्हें जीवन में नहीं उतार पाते। आज मनुष्य जिन समस्याओं से और जिन जटिल परिस्थितियों से घिरा हुआ है उन सबका समाधान महावीर के दर्शन और सिद्धांतों में समाहित है। जरूरी है कि हम महावीर ने जो उपदेश दिये उन्हें जीवन और आचरण में उतारें। हर व्यक्ति महावीर बनने की तैयारी करे, तभी समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकती है। महावीर वही व्यक्ति बन सकता है जो लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पित हो, जिसमें कष्टों को सहने की क्षमता हो। जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी समता एवं संतुलन स्थापित रख सके, जो मौन की साधना और शरीर को तपाने के लिए तत्पर हो। जिसके मन में संपूर्ण प्राणिमात्र के प्रति सहअस्तित्व की भावना हो। जो पुरुषार्थ के द्वारा न केवल अपना भाग्य बदलना जानता हो, बल्कि संपूर्ण मानवता के उज्ज्वल भविष्य की मनोकामना रखता हो।
प्रभु वीर का संपूर्ण जीवन स्व और पर के अभ्युदय की जीवंत प्रेरणा है। लाखों-लाखों लोगों को उन्होंने अपने आलोक से आलोकित किया है। इसलिए महावीर बनना जीवन की सार्थकता का प्रतीक है।

डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि
डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि
’भगवान महावीर की मूल शिक्षा है- ’अहिंसा‘। सबसे पहले ’अहिंसा परमो धर्मः‘ का प्रयोग हिन्दुओं का ही नहीं बल्कि समस्त मानव जाति के पावन ग्रंथ ’महाभारत‘ के अनुशासन पर्व में किया गया था। लेकिन इसको अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलवायी भगवान महावीर ने। भगवान महावीर ने अपनी वाणी से और अपने स्वयं के जीवन से इसे वह प्रतिष्ठा दिलाई कि अहिंसा के साथ भगवान महावीर का नाम ऐसा जुड गया कि दोनों को अलग कर ही नहीं सकते। अहिंसा का सीधा-साधा अर्थ करें तो वह होगा कि व्यावहारिक जीवन में हम किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं, किसी प्राणी को अपने स्वार्थ के लिए दुःख न दें। ’आत्मानः प्रतिकूलानि परेषाम् न समाचरेत‘‘ इस भावना के अनुसार दूसरे व्यक्तियों से ऐसा व्यवहार करें जैसा कि हम उनसे अपने लिए अपेक्षा करते हैं। इतना ही नहीं सभी जीव-जन्तुओं के प्रति अर्थात् पूरे प्राणी मात्र के प्रति अहिंसा की भावना रखकर किसी प्राणी की अपने स्वार्थ व जीभ के स्वाद आदि के लिए हत्या न तो करें और न ही करवाएं और हत्या से उत्पन्न वस्तुओं का भी उपभोग नहीं करें।
भगवान महावीर का एक महत्वपूर्ण संदेश है ’क्षमा‘। भगवान महावीर ने कहा कि ’खामेमि सव्वे जीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे, मित्ती में सव्व भूएसू, वेर मज्झं न केणई‘। अर्थात् ’मैं सभी से क्षमा याचना करता हूं। मुझे सभी क्षमा करें। मेरे लिए सभी प्राणी मित्रवत हैं। मेरा किसी से भी वैर नहीं है। यदि भगवान महावीर की इस शिक्षा को हम व्यावहारिक जीवन में उतारें तो फिर क्रोध एवं अहंकार मिश्रित जो दुर्भावना उत्पन्न होती है और जिसके कारण हम घुट-घुट कर जीते हैं, वह समाप्त हो जाएगी। व्यावहारिक जीवन में यह आवश्यक है कि हम अहंकार को मिटाकर शुद्ध हृदय से आवश्यकता अनुसार बार-बार ऐसी क्षमा प्रदान करें कि यह भावना हमारे हृदय में सदैव बनी रहे।
भगवान महावीर आदमी को उपदेश्यदृष्टि देते हैं कि धर्म का सही अर्थ समझो। धर्म तुम्हें सुख, शांति, समृद्धि, समाधि, आज, अभी दे या कालक्रम से दे, इसका मूल्य नहीं है। मूल्य है धर्म तुम्हें समता, पवित्रता, नैतिकता, अहिंसा की अनुभूति कराता है। महावीर का जीवन हमारे लिए इसलिए महत्वपूर्ण है कि उसमें सत्य धर्म के व्याख्या सूत्र निहित हैं, महावीर ने उन सूत्रों को ओढा नहीं था, साधना की गहराइयों में उतरकर आत्मचेतना के तल पर पाया था। आज महावीर के पुनर्जन्म की नहीं बल्कि उनके द्वारा जीये गये आदर्श जीवन के अवतरण की पुनर्जन्म की अपेक्षा है। जरूरत है हम बदलें, हमारा स्वभाव बदले और हम हर क्षण महावीर बनने की तैयारी में जुटें तभी महावीर जयंती मनाना सार्थक होगा।
महावीर बनने की कसौटी है-देश और काल से निरपेक्ष तथा जाति और संप्रदाय की कारा से मुक्त चेतना का आविर्भाव। ज्ञात नंदन एक कालजयी और असांप्रदायिक महापुरुष थे, जिन्होंने अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत को तीव्रता से जीया। वे इस महान त्रिपदी के न केवल प्रयोक्ता और प्रणेता बने बल्कि पर्याय बन गए। जहां अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत की चर्चा होती है वहां भगवान महावीर का यशस्वी नाम स्वतः ही सामने आ जाता है।
महापुरुष सदैव प्रासंगिक रहते हैं, फिर पुरुषोत्तम महावीर की प्रासंगिकता के विषय में जिज्ञासा ही अयुक्त है। कौन बता सकता है सूर्य कब अप्रासंगिक बना? चन्द्रमा कब अप्रासंगिक बना? सूर्य केवल दिन को प्रकाशित करता है और चन्द्रमा केवल रात्रि को, किंतु भगवान महावीर का दिव्य-दर्शन अहर्निश मानव-मन को आलोकित कर रहा है। सन्मति पुत्र सचमुच प्रकाश के तेजस्वी पुंज और सार्वभौम धर्म के प्रणेता हैं। वे इस सृष्टि के मानव-मन के दुःख-विमोचक हैं। पदार्थ के अभाव से उत्पन्न दुःख को सद्भाव से मिटाया जा सकता है, श्रम से मिटाया जा सकता है किंतु पदार्थ की आसक्ति से उत्पन्न दुख को कैसे मिटाया जाए? इसके लिए महावीर के दर्शन की अत्यंत उपादेयता है। करुणा वीर ने व्रत, संयम और चरित्र पर सर्वाधिक बल दिया था और अपने अनुयायियों को बारहव्रती श्रावक बनाकर धर्म क्रांति का सूत्रपात किया था। यह सिद्धांत और व्यवहार के सामंजस्य का महान प्रयोग था।
जीव बलवान है या कर्म-इस जिज्ञासा के समाधान में भगवान महावीर ने कहा कि अप्रमत्तता की साधना से जीव बलवान बना रहता है और प्रमाद से कर्म। इस प्रकार भगवान महावीर ने साधना का संपूर्ण हार्द प्रस्तुत कर दिया। जीव का शयन अच्छा है या जागरण-इस प्रश्न के समाधान में उन्होंने कहा कि पाप में प्रवृत जीवों का शयन अच्छा है और धर्म परायण जीवों का जागरण। इस तरह भगवान ने प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों का समर्थन किया।
भगवान महावीर का संपूर्ण जीवन तप और ध्यान की पराकाष्ठा है इसलिए वह स्वतः प्रेरणादायी है। भगवान के उपदेश जीवनस्पर्शी हैं जिनमें जीवन की समस्याओं का समाधान निहित है। भगवान महावीर चिन्मय दीपक हैं। दीपक अंधकार का हरण करता है किंतु अज्ञान रूपी अंधकार को हरने के लिए चिन्मय दीपक की उपादेयता निर्विवाद है। वस्तुतः भगवान के प्रवचन और उपदेष आलोक पुंज हैं। ज्ञान रश्मियों से आप्लावित होने के लिए उनमें निमज्जन जरूरी है।

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