बनाईये अपने बुढ़ापे को जिन्दगी का गोल्डन पिरीयड –पार्ट 1

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
विगत 100-150 वर्षों में वैज्ञानिक सोच और आविष्कारों की वजह से मनुष्य की औसत उम्र में काफी बढ़ोतरी हुई है | आज कल 80 साल या उससे अधिक स्त्री-पुरुषों की संख्या में निरंतर व्रद्धी हो रही है | बुढ़ापे का अध्ययन करने वाले थिंक टैंक मिल्केन इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष पाल इरविंग के अनुसार पारस्परिक सोहार्दपूर्ण सामाजिक-पारिवारिक संबंध , सकारात्मक सोच दीर्घ-स्वस्थ जीवन के लिये उपयोगी होते हैं | आदमी अपनी वृद्धावस्था को अपनी दिनचर्या में मामूली परिवर्तन करने से अपने वृद्धावस्था को सुखमय-खुशहाल बना सकता है |
बुढ़ापा कोई समस्या नहीं है वरन यह तो जीवन यात्रा की एक नैसगिर्क प्रकिर्या है | बुढ़ापें में इंसान की 80% से अधिक समस्याओं का समाधान अपने आप ही हो जाता है | अगर हम यह स्वीकार कर लें की व्रद्धावस्था हमें भगवान् एवं प्रक्रति के द्वारा दिया हुआ गिफ्ट है | बुढ़ापे को मुस्करा कर जीने से म्रत्यु 10-15 वर्ष दूर रहेगी वहीं बुढ़ापे को कोसते हुए एवं रोते हुए गुजारने से मोत समय से 10-15 साल पहिले आ ही जायेगी |मानव की अधिकतम परेशानियाँ और समस्याओं का मुख्य कारण प्रक्रति की उपेक्षा एवं अवेलहना की वजह से होती है | जीवन को सहजता से जीने की कला ही बुढ़ापे को सार्थक बनाने का अचूक मन्त्र है | व्रद्धावस्था आदमी की शारीरिक अवस्था के बजाय आदमी की मानसिकता पर ज्यादा निर्भर करती है | सच्चाई तो यही है कि मन-आत्मा कभी भी बुढी नहीं होती है, इसलिए यह विचार कभी भी अपने मन में नहीं लाये की आप बूढ़े- वृद्ध हो गए हैं | मन में याद रखें कि आप सब कुछ कर सकते हैं |
डा. जे.के. गर्ग, सन्दर्भ—मेरी डायरी के पन्ने, विभिन्न संतों के सत्संग, मेंडी ओकलेंडर आदि |
Please visit our blog—gargjugalvinod.blogspot.in

error: Content is protected !!