दुल्हन को गोद में लेकर लेते हैं फेरे

श्रीमाली समाज में आज भी कायम है यह प्रथा
कृष्ण-रूकमणी के साथ जुड़ी है यह अनुठी परम्परा

img448-copyकृष्ण-रूकमणी विवाह से जुड़ी द्वापर युग की यह परम्परा जिसमें दुल्हा-दुल्हन को गोद में लेकर फेरे लेते हैं, श्रीमाली समाज के लोग आज भी इस अनुठी प्रथा को निभा रहे हैं । श्रीमाली समाज से जुड़े डॉ. राजेन्द्र श्रीमाली ने बताया कि शादी के दिन चबरक के कार्यक्रम में कन्या पक्ष की सुहागिनें दुल्हे को घी-षक्कर युक्त चावल लाकर ग्रास की मनुहार करती है । बाद में दुल्हा और दुल्हन एक-दूसरे को इस ग्रास की मनुहार करने के पश्चात दुल्हे के द्वारा दुल्हन को गोद में उठाकर फेरे लिए जाते हैं । श्रीमाली समाज में रची-बसी इस परम्परा को देखने काफी संख्या में अन्य समाज के लोग भी पहुंचते हैं । ऐसी मान्यता है कि कुंवारे लड़के व लड़कियों द्वारा इन चावल को खाने से शादी शीघ्र होती है ।
डॉ. श्रीमाली ने बताया कृष्ण-रूकमणी के विवाह के समय षिषुपाल भी रूकमणी से विवाह करने पहुंचा था, उस समय कृष्ण-रूकमणी के विवाह का चौथा फेरा चल रहा था । विवाह के मध्य में श्रीकृष्ण को षिषुपाल से युद्ध करना पड़ा और रात निकल गई । युद्ध में विजय के पश्चात श्रीकृष्ण ने रूकमणी को गोद में लेकर चार फेरे सुबह लिए । इस प्रकार कृष्ण-रूकमणी के विवाह पर कुल आठ फेरे हुए ।
डॉ. श्रीमाली ने बताया कि श्रीमाली समाज में भी विवाह पर कुल आठ फेरे होते हैं । चार अग्नि को साक्षी मानकर और शेष चार चबरक के दौरान दुल्हन को गोद में लेकर होते हैं जबकि अन्य समाज में विवाह के दौरान सात फेरे ही होते हैं । चार फेरे रात में एवं चार फेरे दिन में इसलिए लिए जाते हैं ताकि दम्पती के भावी जीवन में विवाह के दौरान एवं विवाह पश्चात किसी प्रकार का कोई कष्ट न आए ।

.— Mohan Thanvi

error: Content is protected !!