“याद आने लगी अपनी बहू , जिसको उसने दो साल पहले घर से निकाल दिया था… कसूर था सिर्फ बेटियों को जन्म देना , दो बार उसने बहू का गर्भपात सिर्फ कन्या भ्रूण की वजह से कराया था… जब कहा था ममता ने अपनी बहू को ‘कलमुँही निकल जा यहां से अगर तो पोते को जन्म नही दे सकती तो तेरे लिए मेरे घर में भी कोई जगह नही’ और तीन बेटियों के साथ बहू रोती बिलखती मायके चली गई”…
“अचानक ममता उठी और घर से निकल पड़ी अपनी बहू को वापिस घर लाने के लिए… सास को सामने देखकर हैरान रह गई सुमन… ‘मांजी आप अचानक यहाँ, “हाँ बहू, अपने घर चलो…”मेरे घर की लक्ष्मी हो तुम, कहा है मेरी पोतियां , कहते हुए ममता रो पड़ी और बहू को गले से लगा लिया… आज उसे कन्याओं का महत्व समझ आ गया था , देवी माँ तो तभी खुश होंगी ना जब गृहलक्ष्मी खुश रहेगी”…
“मिटटी की सोंधी खुशबु सी होती है बेटियां ,आँगन की तुलसी पूजा सी होती है बेटियां ,मरती रहेंगी बेटियां तो बहू कहाँ से लाओगे ,बेटों को पैदा करने को जननी कहाँ से पाओगे”…???
रश्मि डी जैन
महासचिव
आगमन साहित्यक संस्थान
नई दिल्ली