बैलगाड़ी-साइकिल से रॉकेट को ढोने वाले ISRO ने रचा

इतिहास– एक साथ 104 सैटेलाइट का सफलता पूर्वक किया लॉन्च

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
भारत के भविष्य में वैज्ञानिक विकास की महत्वत्ता को नेहरुजी ने 1960-1961 में भांप लिया इसीलिये उन्होंने ने 1961 में अंतरिक्ष अनुसंधान को परमाणु ऊर्जा विभाग की देखरेख में रखा। परमाणु उर्जा विभाग के निदेशक होमी भाभा ने1962 में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति (इनकोस्पार) का गठन किया, जिसमें डॉ॰ साराभाई को सभापति के रूप में नियुक्त किया | ISRO की स्थापना 15 अगस्त 1969 में की गई थी एवं विक्रम साराभाई इसके अध्यक्ष बनें उस वक्त श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी | अंतरिक्ष आयोग को सन् 1972 में स्‍थापित किया गया. 01 जून, 1972 में इसरो को अंतरिक्ष विभाग के अंदर शामिल किया गया | इसरो का प्रमुख उद्देश्य अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास तथा विभिन्न राष्ट्रीय आवश्यकताओं में उनका उपयोग करना है. इसरो ने दो प्रमुख अंतरिक्ष प्रणालियों की स्थापना की है, संचार, दूरदर्शन प्रसारण तथा मौसम-विज्ञान सेवाओं के लिए इन्सैट और संसाधन मॉनिटरन और प्रबंधन के लिए भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आईआरएस) प्रणाली. इसरो ने अभीष्ट कक्ष में इन्सैट और आईआरएस की स्थापना के लिए दो उपग्रह प्रमोचन यान, पीएसएलवी और जीएसएलवी विकसित किए हैं.
आज 15 फरवरी 2017 को एक ही रॉकेट से 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित कर अंतरिक्ष विज्ञान में भारत को शिखर पर पहुंचा दिया |
हमारे वैज्ञानिक आसमान मुट्ठी करने के सफर पर साइकिल और बैलगाड़ी के जरिए निकले थे | पहले रॉकेट को वैज्ञानिकों ने साइकिल पर लादकर प्रक्षेपण स्थल पर पहुंचाया था वहीं. इस मिशन का दूसरा रॉकेट काफी बड़ा और बहुत वजनी था उसे बैलगाड़ी के सहारे प्रक्षेपण स्थल पर ले जाया गया था | इससे भी ज्यादा रोमांचकारी बात यह है कि भारत ने पहले रॉकेट के लिए नारियल के पेड़ों को लांचिंग पैड बनाया था | यह भी गर्व की बात है कि इसरो के वैज्ञानिकों ने दुनिया में पहली बार पहले प्रयास में ही मंगल ग्रह के सफर को पूरा कर लिया |
बुधवार 15 फरवरी 2017 को इसरो ने अपने सबसे सफल रॉकेट पीएसएलवी की मदद से 104 सैटेलाइट को प्रक्षेपित किया है | इस लॉन्च में जो 101 छोटे सैटेलाइट्स हैं उनका वजन 664 किलो ग्राम था. इन्हें कुछ वैसे ही अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया जैसे स्कूल की बस उसमें बैठे हुये बच्चों को क्रम से अलग-अलग ठिकानों पर छोड़ती जाती हैं.
44.4 मीटर लंबे और 320 टन वजनी रॉकेट पीएसएलवी-एक्सएल ने सुबह 9.28 बजे आकाश को चीरते हुए उड़ान भरी | पृथ्वी अवलोकन उपग्रह काटरेसैट-2 सीरीज का वजन 714 किलोग्राम है. अन्य उपग्रहों में 101 नैनो उपग्रह हैं, जिनमें से इजरायल, कजाकस्तान, द नीदरलैंड्स, स्विट्जरलैंड व संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के एक-एक और अमेरिका के 96 तथा भारत के दो नैनो उपग्रह शामिल हैं. इन सभी उपग्रहों का कुल वजन लगभग 1,378 किलोग्राम है.
सैटेलाइट एक दूसरे से टकराए नहीं, इसकी सफलता इसरो ने अपने पिछले प्रक्षेपणों के दौरान हासिल कर ली थी | 27 हजार किमी प्रति घंटे की रफ्तार महज 600 सेकेंड के भीतर सभी 101 सैटेलाइट लॉन्च किए गए | ISRO के बारें में महत्वपूर्ण जानकारियां—–उपग्रहों को इसरो उपग्रह केंद्र (आईजैक) में बनाया जाता है | भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत तिरुवनंतपुरम के निकट थुम्बाभूमध्यरेखीयराकेट लॉन्चिंग स्‍टेशन (टर्ल्स) में हुई |पहले भारतीय उपग्रह का नाम आर्यभट्ट था | चंद्रयान-1 अंतरिक्ष-यान द्वारा-चंद्रमा का वैज्ञानिक अन्वेषण है. भारतीय भाषाओं (संस्कृत और हिन्दी) में- चंद्रयान का मतलब है ‘चंद्र अर्थात चंद्रमा, यान अर्थात वाहन’ यानि, चंद्रमा अंतरिक्ष-यान. चंद्रयान-1 प्रथम भारतीय ग्रहीय विज्ञान और अन्वेषण मिशन है | चंद्रमा का तापमान—-चंद्रमा पर तापमान चरम सीमाओं पर पहुंच जाता है– सूरज की रोशनी में प्रकाशित चंद्रमा का पहलू लगभग 130ºसें तक झुलसाने जितना गरम हो जाता है, और रात में यही पहलू -180 ºसें. पर अत्यधिक ठंडा हो जाता है | हम चंद्रमा का केवल एक पहलू ही क्यों देख पाते हैं?–
परिक्रमा करते हुए चंद्रमा पृथ्वी को हमेशा अपना एक पहलू ही दर्शाता है | यह इसलिए है कि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण ने चंद्रमा के नियमित प्रचक्रण की गति इतनी कम कर दी कि वह उसके पृथ्वी की परिक्रमा के समय के बराबर हो गया | अतः चंद्रमा को पृथ्वी के चारों ओर घूमने में उतना ही समय लगता है जितना कि उसे अपने अक्ष पर घूमने में लगता है |
सकंलन कर्ता—-डॉ.जे.के गर्ग
साभार—-विभिन्न समाचार पत्र, NDTV न्यूज,मेरी डायरी के पन्ने आदि

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