होलाष्टक 2017

दयानन्द शास्त्री
दयानन्द शास्त्री
प्रिय पाठकों/मित्रों, त्यौहारों के देश भारत में साल भर कोई न कोई त्यौहार आता ही रहता है परंतु साल के सभी त्यौहारों का अंतिम त्यौहार होली माना गया है। तभी तो कहते हैं ‘राखी लाई पूरी, होली लाई भात’। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक के अगले आठ दिन होलाष्टक के रूप में मनाए जाते हैं। इस दिन गंध, पुष्प, नैवेद्य, फल, दक्षिणा आदि से भगवान विष्णु जी का पूजन करने का विधान है,इस वर्ष 5 मार्च को अन्नपूर्णा अष्टमी से होलाष्टक आरम्भ हुए जो 12 मार्च 2017 तक चलेंगे।
पौराणिक मान्यता है कि दैत्यराज हिरण्यकशिपु ने विष्णु भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए अनेक उपाय किए थे परंतु भक्त प्रह्लाद का वह बाल भी बांका न कर सका परंतु जब वह अपनी बहन होलिका से मिला तो दोनों ने मिलकर प्रह्लाद को मारने की पूरी योजना फाल्गुन मास की अष्टमी से ही आरम्भ कर दी थी ताकि किसी को त्यौहार में कोई संदेह भी न रहे। इसी कारण आठ दिन पहले से ही होलाष्टक आरम्भ हो जाते हैं।धर्म शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के दौरान किए जाने वाले कार्य फलदायी नहीं रहते। इन दिनों में ग्रह प्रवेश, शादी या फिर गर्भाधान संस्कार जैसे महत्वपूर्ण काम भी नहीं किए जाते हैं। दरअसल, होलाष्टक होली के रंगारंग पर्व के आगमन की सूचना देता है।

जानिए होलाष्टक का महत्व—
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार होली के पूर्न होलाष्टक का अपना ही महत्व है। इसे नवनेष्ट यज्ञ की शुरुआत का कारक भी माना जाता है। यानी कि इस दिन से सभी तरह के ने पलो, अन्न, चना, गन्ना आदि का इस्तेमाल शुरु हो जाता है। लेकिन इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं होगा, क्योंकि फाल्गुन मास को अग्नि प्रधान माना जाता है इसलिए होलाष्टक के दौरान शुभ काम करने से अग्नि के ताप का कष्ट मिलता है। इसलिए इस समय के दौरान विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, मुंडन, गोद भराई, उपनयन संस्कार आदि न करें।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री बताते हैं की होली के पूर्व होलाष्टक का अपना अलग महत्व है। होलाष्टक को नवनेष्ट यज्ञ की शुरुआत का कारक भी माना जाता है। यानि इस दिन से सभी प्रकार के नए फलों, अन्न, चना, गन्ना आदि का प्रयोग शुरू कर दिया जाता है। होलाष्टक पांच मार्च से 12 मार्च तक रहेगा। इस दौरान हर तरह के शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि वर्जित माना गया है। फाल्गुन मास को अग्नि प्रधान माना जाता है, इसलिए होलाष्टक के दौरान इन कार्यों को करने से उसमें अग्नि के ताप का कष्ट मिलता है। इस वर्ष जिन लड़कियों की शादी हुई हो उन्हें भी अपने ससुराल में पहली होली नहीं देखनी चाहिए।फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक होलाष्टक लगे रहते हैं। ये आठ दिनों तक रहते हैं। इन दिनों कोई भी शुभ काम संपन्न नहीं किया जाता है। इन दिनों में ग्रह प्रवेश, शादी या फिर गर्भाधान संस्कार जैसे महत्वपूर्ण काम भी नहीं किए जाते है। होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य न होने के पीछे धार्मिक मान्यता के अलावा ज्योतिषीय मान्यता भी है।
होलाष्टक का संधि-विच्छेद होता है होली और अष्टक. इसका तात्पर्य होली के आठ दिन से है. हिन्दू पंचांग के अनुसार, इसकी शुरुआत होलिका दहन के सात दिन पहले और होली के त्यौहार के दिन के आठ दिन पहले होती है. पारंपरिक रूप से इसका समापन धुलेंडी के दिन हो जाता है. चूंकि इसकी शुरुआत फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से होती और यह सीधे तौर पर होली से संबंधित है, इसलिए इसे होलाष्टक कहते हैं. वास्तव में होलाष्टक, होली के आगमन का पूर्व-सूचक है और इसका होलिका दहन से घनिष्ठ संबंध है, क्योंकि इसी दिन से होलिका दहन की विधिवत तैयारियां शुरू हो जाती है | ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री बताते हैं की रंग और उल्लास के पर्व होली से संबंधित होने के बावजूद होलाष्टक की अवधि यानी इसके आठ दिन शुभ नहीं माने गए है. इस दौरान हिन्दू धर्म के 16 संस्कारों में से किसी भी संस्कार को संपन्न करने की मनाही है. यह निषेध अवधि होलाष्टक के दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहती है. होलाष्टक मुख्य उत्तरी भारत में मनाया जाता है |
दक्षिण भारत और कुछ अन्य स्थानों पर होलाष्टक नहीं मानते हैं, लिहाजा वहां ऐसा कोई निषेध नहीं है | प्रचलित रिवाज के अनुसार होलाष्टक के पहले दिन होलिका दहन के लिए 2 डंडे स्थापित किये जाते हैं, जिसमें से एक को होलिका और दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है. हिन्दू धर्म की शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए ये डंडे स्थापित किये जाते हैं, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित है. क्योंकि, सनातन धर्म होलिका दहन को दाहकर्म और मृत्यु का सूचक माना गया है |
एक मान्यता है कि कामदेव ने भगवान शिव का तप भंग किया और इस चेष्टा से रुष्ट होकर भगवान शिव ने फाल्गुन की अष्टमी तिथि के दिन ही उसे भस्म कर दिया था। कामदेव की पत्नी रति ने शिव जी की आराधना की और अपने पति कामदेव को पुनर्जीवन का आशीर्वाद पाया। महादेव से रति को मिलने वाले इस आशीर्वाद के बाद ही होलाष्टक का अंत धुलेंडी को हुआ। चूंकि होली से पूर्व के आठ दिन रति ने कामदेव के विरह में काटे इसलिए इन दिनों में शुभ कार्यों से दूरी रखी जाती है।
कामदेव के इस प्रसंग के कारण ही होलाष्टक में शुभ कार्य वर्जित हैं। कुछ विद्वान यह भी मानते हैं कि होली के पहले के आठ दिनों में प्रह्लाद को काफी यातनाएं दी गई थीं। प्रह्लाद को मिलने वाली यातनाओं से भरे इन आठ दिनों को अशुभ मानने की परंपरा ही चल पड़ी है। होलाष्टक के पहले दिन जिस जगह होली का पूजन किया जाना है वहां गोबर से लिपाई की जाती है और उस जगह को गंगाजल से पवित्र किया जाता है। होलाष्टक में होली की तमाम तैयारियां अंतिम रूप लेती हैं और लोग उत्साह के साथ होली के त्योहार की प्रतीक्षा करते हैं |

13 मार्च को खेली जाएगी होली—
रविवार 12 मार्च को होलिका दहन प्रदोषकाल में किया जाएगा। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री बताते हैं की शास्त्रीय नियमों के अनुसार होलिका दहन के समय भद्रा नहीं होनी चाहिए। सूर्यास्त के बाद अंधेरा होना चाहिए। इसके साथ ही पूर्णिमा का दिन होना चाहिए। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार पूर्णिमा का मान 12 मार्च को शाम 7:26 मिनट तक ही है। उसके बाद प्रतिपदा लग जाएगी। इसलिए बेहतर है होलिका दहन सूर्यास्त के बाद शाम 6:15 से शाम 7:26 तक कर लिया जाए। सोमवार 13 मार्च को होली खेली जाएगी।इन आठ दिनों में क्रमश: अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को वृहस्पति, त्रयोदशी को बुध और चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु ग्रह उग्र रूप लिए माने जाते हैं, जिनसे अनिष्ट होने की संभावना रहती है |

14 मार्च से खरमास लगेगा—

मंगलवार 14 मार्च को शाम 7:13 पर सूर्य कुंभ राशि से निकलकर बृहस्पति की मीन राशि में प्रवेश करेगा। जब सूर्य धनु और मीन राशि में होते है तो खरमास या मलमास होता है। सूर्य मीन राशि में गुरुवार 13 अप्रैल की रात 3:31 बजे तक रहेगा। उसके बाद सूर्य मेष राशि में प्रवेश करेगा। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री बताते हैं की कि होलाष्टक की तरह खरमास में विवाह, शुभ, मांगलिक कार्य, व्यापार प्रारम्भ, गृहप्रवेश आदि मांगलिक कार्य नहीं करने की मान्यता है।ऐसी मान्यता है कि खरमास में मांगलिक कार्य नहीं करवाए जाते हैं। 12 मार्च को होलिका दहन भी सूर्यास्त के बाद शाम 7:26 बजे तक कर लेना बेहतर रहेगा।

होली उत्सव- होलाष्टक 12 मार्च तक चलेंगे। इसी दिन पूर्णिमा वाले दिन लोग एक-दूसरे पर रंग लगाकर खुशी का इजहार करेंगे तथा होली पर्व मनाया जाएगा। होलिका दहन वैसे तो होली से एक दिन पूर्व रात्रिकाल को मनाया जाता है परंतु प्रदोष काल में होली दहन करने की परम्परा है इसीलिए होली दहन 12 मार्च को प्रदोष काल में होगा। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री बताते हैं की लोगों में परस्पर प्रेम, एकता, स्नेह व भाईचारे की भावना का संचार करने का प्रतीक होली उत्सव 12 मार्च को पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर में मनाया जाएगा तथा 13 मार्च को श्री आनंदपुर साहिब और श्री पांवटा साहिब में होला मेला के रूप में मनाया जाएगा।

होलाष्टक लगने के पीछे छिपी कुछ रोचक कहानियां—-
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री बताते हैं की ज्योतिष के अनुसार माना जाता है कि अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप लिए हुए रहते हैं। इन ग्रहों के निर्बल होने से इंसान की निर्णय क्षमता क्षीण हो जाती है। जिसके कारण वह गलत निर्णय लेने लगता है।

होलाष्टक शुरू, जानिए क्यों नहीं किया जाता इन दिनों में शुभ कार्य—–
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री बताते हैं की ऐसा न हो इसी कारण आठ दिनों में उसे किसी भी शुभ काम का फैसला लेने की मनाही होती है। इससे पूर्णिमा से आठ दिन पूर्व मनुष्य का मस्तिष्क अनेक सुखद व दुःखद आशंकाओं से ग्रसित हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को अष्ट ग्रहों की नकारात्मक शक्ति के क्षीण होने पर सहज मनोभावों की अभिव्यक्ति रंग, गुलाल आदि द्वारा प्रदर्शित की जाती है।

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