क्या आप जानते हैं कि सबसे पहले गणेशजी की पूजा क्यों की जाती है ?

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
1.महर्षी व्यासजी के शिष्य महामुनि संजय ने अपने गुरूदेव को प्रणाम करके प्रश्न किया कि “ गुरूदेव! आप मुझे देवताओं के पूजन का सुनिश्चित क्रम बतलाइये | तब व्यासजी ने कहा “ संजय विघ्नों को दूर करने के लिये सर्वप्रथम गणेशजी की पूजा करनी चाहिये”। पूर्वकाल में पार्वती देवी को देवताओं ने अमृत से तैयार किया हुआ एक दिव्य मोदक दिया। मोदक देखकर दोनों बालक कार्तिकेय तथा गणेश माता से मोदक माँगने लगे। तब माता ने मोदक के प्रभावों का वर्णन कर दोनों से कहा कि तुममें से जो धर्माचरण के द्वारा श्रेष्ठता प्राप्त करके आयेगा, उसी को मैं यह मोदक दूँगी। माता की ऐसी बात सुनकर कार्तिकेय मयूर पर आरूढ़ हो मुहूर्तभर में सब तीर्थों की स्न्नान कर लिया। इधर गणेशजी माता-पिता की परिक्रमा करके पिताजी के सम्मुख खड़े हो गये। तब पार्वतीजी ने कहा- समस्त तीर्थों में किया हुआ स्न्नान, सम्पूर्ण देवताओं को किया हुआ नमस्कार, सब यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब प्रकार के व्रत, मन्त्र, योग और संयम का पालन आदि सभी साधन माता-पिता के पूजन के सोलहवें अंश के बराबर भी नहीं हो सकते। इसलिये गणेश सैकड़ों पुत्रों और सैकड़ों गणों से भी बढ़कर है। इसीलिये देवताओं का बनाया हुये इस मोदक को प्राप्त करने का अधिकारी गणेश ही है । माता-पिता की भक्ति के कारण ही गणेश की प्रत्येक यज्ञ में सबसे पहले पूजा होगी।
2.गणेश शब्द का अर्थ है गणों का स्वामी । हमारे शरीर में पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और चार अन्तःकरण हैं , यानि 14 और इन14के पीछे जो शक्तियाँ हैं उन्हीं को चौदह देवता कहते हैं। इन देवताओं के मूल प्रेरक हैं भगवान् श्रीगणेश। वस्तुतः भगवान् गणपति शब्द ब्रह्म अर्थात् ओंकार के प्रतीक हैं | जिस प्रकार प्रत्येक मन्त्र के आरम्भ में ओंकार (ॐ) का उच्चारण आवश्यक है, उसी प्रकार प्रत्येक शुभ अवसर यानि यज्ञ, पूजन, सत्कर्म या विवाहोत्सव आदि समस्त मांगलिक कार्यों के निर्विध्न सम्पन्न होने के लिए भगवान् गणपति की पूजा एवं स्मरण अनिवार्य है |(सन्दर्भ पद्मपुराण —सृष्टिखण्ड 61। 1 से 63)
सकलनकर्ता—-जे.के.गर्ग

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