जन जन के पूज्यनीय लोक देवता तेजाजी -Part 4

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
तेजाजी विजयी होकर वापस पनेर आये | तेजाजी तुरंत नागराज के पास पहुंच कर उन्हें डसंने को कहा | लहूलुहान तेजाजी को नागराज बोले तुम्हारे रोम- रोम से खून टपक रहा है तो मैं तुम्हें कहाँ डसूं ? तेजाजी बोले कि मेरे हाथ की हथेली व जीभ पर कोई घाव नहीं है इसलिए आप यहाँ डसं लें | नागराज ने तेजाजी से कहा“तेजा तुम शूरवीर हो, मैं तुम्हारी इमानदारी और बहादुरी पर मैं बहुत खुश हूँ, अब तुम जाओ | तुम्हारी शूरवीरता और सच्चाई के सामने में हार गया हूँ |मैं प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम अपने कुल के एक मात्र देवता बनोगे | आज के बाद काला सर्प का काटा हुआ कोई व्यक्ति यदि तुम्हारे नाम की तांती बांध लेगा तो उसका जहर उतर जायेगा | तेजाजी ने कहा “ नागराज आपको मुझें डसंना ही होगा अन्तत: तेजाजी ने अपनी जीभ पर सर्प-दंश झेल कर अपने वचन की रक्षा की | तेजाजी ने नजदीक ही ऊँट चराते रैबारी आसू देवासी को बुला कर “भाई मेरी इहलीला समाप्त होने वाली है मेरा रुमाल लेकर मेरी प्राण प्रिया पत्नी पेमल को मेरे प्यार के प्रतिक के रूप में उसे दे देना और पेमल को कहना कि उसका तेजा कुछ ही पलों का मेहमान हैं”| तेजाजी ने लीलण घोड़ी की आँखों से आंसू टपकते देख कहा – “लीलण आज तक तूने सुख-दुःख में मेरा साथ निभाया है | तू खरनाल जाकर मेरे परिवार जनों को आँखों से मेरी इहलीला के समाप्त होने के बारे में बता देना ”|

सम्पादन एवं प्रस्तुतिकरण—–डा.जे,के.गर्ग, सन्दर्भ—- विभिन्न पत्र- पत्रिकायें, मेरी डायरी के पन्ने, विभिन्न भोपाओं से बात चीत आदि

error: Content is protected !!