चार दिन बाद दोस्त को उदास देखकर मैने पूछा- क्या चार दिन काम करा लिया मजदूरी नहीं दी। दोस्तष्बोला – काम तो उसने साडे तीन दिन ही कराया पर मजदूरी पूरे चार दिन की दी।
मैंने कहा-हुआ क्या है। दोस्त ने कहा- पहले आधे दिन दुकान पर जाते से ही उसने मुझे हर खादी के सामान की पुरानी स्लीप निकालने व उसके बदले 25 प्रतिषत बढ़ा कर नए भाव की स्लीप लगाने का काम दिया। उसके बाद ग्राहक को हर सामान की बाढ.ाचढा़ कर तारीफ करना व स्लीप की कीमत बताने के बाद उससे 20 प्रतिषत छूट काट कर कीमत बताना। हर कपड़े पर 20 प्रतिषत की छूट की लालच में उसका सारा माल बिक गया।
हस्तकरघा व खादी का सामान होने से उसको न तो दुकान का किराया देना पड़ा और न ही बिजली बिल । सब सरकार ने अपनी ओर से व्यवस्था की थी । बाद में यह भी पता चला कि सामान उसने स्थानीय बाजार से ही खरीदा था और माल बिकने के बाद थोक भाव से भुगतान करने व सरकारी अधिकारियों को कमीषन देने के बाद भी वो अच्छा खासा कमा कर ले गया सिर्फ दुकान का फलेक्स का बोर्ड उसका था जो उसने थैली में रख लिया व अपने प्रदेष को रवाना हो गया।
मेरी उदासी का कारण यह है कि मेरा विष्वास गॉधीजी पर तो आज भी है पर गॉधी जी के नाम से दूकान व सरकार चालाने वालों व छूट की लालच देकर धंध करने वालों पर से उठ गया है ।
हेमंत उपाध्याय साहित्य कुटीर, गणगौर साधना केन्द्र , पं रामनारायण उपाध्याय वार्ड 43 खण्डवा मप्र 450001
lekhakhemant17@gmail.com gangourknw@gmail.com