मकर सक्रांति हर्षोल्लास का पर्व

डा. जे.के.गर्ग
मकर संक्रांति में सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण तक का सफर महत्व रखता है | मान्यता है कि सूर्य के उत्तरायण काल में ही शुभ कार्य किए जाते हैं. सूर्य जब मकर, कुंभ, वृष, मीन, मेष और मिथुन राशि में रहता है तब इसे उत्तरायण कहते हैं | वहीं, जब सूर्य बाकी राशियों सिंह, कन्या, कर्क, तुला, वृच्छिक और धनु राशि में रहता है, तब इसे दक्षिणायन कहते हैं | मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है. इसी वजह से इस संक्रांति को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है. इस साल राशि में ये परिवर्तन 14 जनवरी को देर रात को हो रहा है,इसीलिए इस बार 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाएगी | मकर संक्रांति लगभग हर साल 14 जनवरी को आती है | लेकिन इस बार 2019 में यह 15 जनवरी को पड़ रही है | इसी कारण प्रयागराज में हो रहा कुंभ मेला भी इस साल 15 जनवरी से शुरू हो रहा हैं इसी कारण से कुंभ मेले साथ ही पहला स्नान भी 14 नहीं बल्कि 15 जनवरी को होगा | शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात होती है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था। मकर संक्रान्ति के दिन यज्ञमें दिये हव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं। मकर सक्रांति का त्यौंहार सम्पूर्ण सृष्टि के लिए ऊर्जा के स्रोत भगवान सूर्य की अराधना के रूप में मनाया जाता है | जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है उसी अवधि को सौर वर्ष कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना क्रान्तिचक्र कहलाता है। इस परिधि चक्र को बाँटकर बारह राशियाँ बनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेशकरना“संक्रान्ति”कहलाता है। मकर संक्रान्ति के दिन यज्ञमें दिये हव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं। इसी मार्ग से पुण्यात्माएँ शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोकों में प्रवेश करती हैं। इसलिए यह आलोक का अवसर माना जाता है। इस दिन पुण्य,दान,जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्त्व है और सौ गुणा फलदायी होकर प्राप्त होता है। वास्तव में मकर सक्रांति सूर्य के उत्तरायण में आने का पर्व है| ऐसा माना जाता है कि सूर्य के उत्तरायण में आने पर सूर्य की किरणें पृथ्वी पर पूरी तरह से पड़ती है और यह धरा प्रकाशमय हो जाती है। मकर संक्रांति के दिन भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों यथा प्रयाग,हरिद्वार,वाराणसी,कुरुक्षेत्र,गंगासागर आदि में पवित्र नदियों गंगा,यमुना आदि में करोडों लोग डुबकी लगा कर स्नान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि वरुण देवता इन दिनों में यहां आते हैं , यह भी माना जाता है कि उत्तरायण में देवता मनुष्य द्वारा किए गए हवन,यज्ञ आदि को शीघ्रता से ग्रहण करते हैं। अथर्ववेद में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि दीर्घायु और स्वस्थ रहने के लिए सूर्योदय से पूर्व ही स्नान शुभ होता है। ऋग्वेद में ऐसा लिखा है कि-हे देवाधिदेव भास्कर,वात,पित्त और कफजैसे विकारों से पैदा होने वाले रोगों को समाप्त करो और व्याधि प्रतिरोधक रश्मियों से इन त्रिदोशों का नाश करो।

मकर संक्रांति माघ माह में आती है | संस्कृत में मघ शब्द से माघ निकला है। मघ शब्द का अर्थ होता है-धन,सोना-चांदी,कपड़ा,आभूषण आदि इसीलिये इन वस्तुओं के दान आदि के लिए ही माघ माह उपयुक्त है। ईसी वजह से मकर सक्रांति को माघी संक्रांति भी कहते है। सच्चाई तो यही है कि पर्व-उत्सव सामाजिक बंधनों को मजबूत बनाने का शक्तिशाली माध्यम है | पर्व एक बहाना है अपनों से मिलने का लड़ाई-झगड़ा भूलाकर एक होने का और ईश्वर की आराधना करने का | हमारे देश में प्राचीन काल से ही मान्यता रही है कि ईश्वर केवल मंदिरों या मस्जिदों या अन्य धार्मिक स्थलों में नहीं बसता है बल्कि परमात्मा इस सृष्टि के कण-कण में विद्यमान है |

वैज्ञानिक विचार से 21-22दिसंबर के आसपास से ही दिन बढऩे शुरू होते हैं। इसलिए वास्तविक शीतकालीन संक्रांति21दिसंबर या22दिसंबर जब उष्णकटिबंधीय रवि मकर राशि में प्रवेश करती है पर शुरू होती है। इसलिए वास्तविक उत्तरायण21दिसंबर को होता है। यही मकर सक्रांति की वास्तविक तारीख भी थी। एक हजार साल पहले मकर संक्रांति31दिसंबर को मनाया गयी थी और अब14जनवरी को बनाई जाती है। वैज्ञानिक गणनाओं के अनुसार पांच हजार साल बाद,यह फरवरी के अंत तक हो सकता है,जबकि 9000 वर्षों बाद में यह जून में आ जाएगा।
खगोलीय अवधारणा के मुताबिक सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने को मकर संक्रांति कहा जाता है। दरअसल हर साल सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश 20 मिनट की देरी से होता है। इस तरह हर तीन साल के बाद सूर्य एक घंटे बाद और हर 72 साल एक दिन की देरी से मकर राशि में प्रवेश करता है। इस तरह 2080 के बाद मकर संक्रांति 16 जनवरी को पड़ेगी। इसी सन्दर्भ यह उल्लेखनीय है कि राजा हर्षवर्द्धन के समय में यह पर्व 24 दिसम्बर को पड़ा था। मुग़ल बादशाह अकबर के शासन काल में 10 जनवरी को मकर संक्रांति थी। शिवाजी के जीवन काल में यह त्योहार 11 जनवरी को पड़ा था।
ज्योतिषीय आकलन के अनुसार सूर्य की गति प्रतिवर्ष 20 सेकेंड बढ़ रही है। माना जाता है कि आज से 1000 साल पहले मकर संक्रांति31दिसंबर को मनाई जाती थी। अब सूर्य की चाल के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 5000 साल बाद मकर संक्रांति फ़रवरी महीने के अंत में मनाई जाएगी
पोराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि में प्रवेश करते हैं,वैसे तो ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य व शनि में शत्रुता बताई गई है लेकिन इस दिन पिता सूर्य स्वयं अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं तो इस दिन को पिता पुत्र के तालमेल के दिन के दिन व पिता पुत्र में नए संबंधो की शुरूआत के दिन के रूप में भी देखा गया है।
इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों का संहार करके असुरो के सिर को मंदार पर्वत पर दबा कर युद्ध समाप्ति की घोषणा कर दी थी। इसलिए मकर संक्राति को बुराईयों को समाप्त कर सकारात्मक ऊर्जा की शुरूआत के रूप में भी मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार भगवान राम के पूर्वज व गंगा को धरती पर लाने वाले राजा भगीरथ ने इसी दिन अपने पूर्वजों का तिल से तर्पण किया था और तर्पण के बाद गंगा इसी दिन सागर में समा गई थी और इसीलिए इस दिन गंगासागर में मकर सक्रांति के दिन मेला भरता है। मकर संक्राति को देश में कई अन्य नामों से भी जाना जाता है यथा तिल संक्राति, खिचड़ी संक्रान्ति एवं माघ संक्राति |

सकलंककर्ता एवं प्रस्तुतिकरण—डॉ. जे.के गर्ग
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