इस साल जन्माष्टमी 23 को है या 24 को?

स्मार्त समुदाय कल और वैष्णव समुदाय परसों मनाएगा जन्माष्टमी
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इस साल देशभर में जन्माष्टमी 23 अगस्त को मनाई जाएगी या 24 अगस्त को इसको लेकर उलझन की स्थिति है। कहीं जन्माष्टमी 23 अगस्त की तो कहीं 24 अगस्त को बताई जा रही है। मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद यानी कि भादो माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था, जो कि इस बार 23 अगस्त को पड़ रही है। ज्योतिर्विदों की मानें तो भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, इसलिए जन्माष्टमी रोहिणी नक्षत्र में मनाया जाना सर्वोत्तम माना गया है।

पंचांग के मुताबिक, रोहिणी नक्षत्र 23 अगस्त 2019 रात 11.56 बजे से ही शुरू हो जाएगा। 23 अगस्त को रोहिणी नक्षत्र 44 घटी का है इसलिए कृष्ण का जन्मदिन इस घटी में मनाना ही शुभ माना गया है। इस बार 23 अगस्त शुक्रवार को अष्टमी तिथि व रोहिणी नक्षत्र से युक्त अत्यंत पुण्यकारक जयंती योग में मनाया जाएगा। वही वैष्णव संप्रदाय व साधु संतों की कृष्णाष्टमी 24 अगस्त शनिवार को उदया तिथि अष्टमी एवं औदयिक रोहिणी नक्षत्र से युक्त सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग में मनाई जाएगी।

जन्माष्टमी पूजा की विधि
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यह व्रत अष्टमी तिथि से शुरू हो जाता है। जन्माष्टमी की पूर्व रात्रि हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। सुबह स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठें। इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें। अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए प्रसूति गृह का निर्माण करें। इसके बाद बाल कृष्ण लड्डू गोपाल जी की मूर्ति मंदिर में रखें, भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके बाद रात्रि 12 बजे भगवान कृष्ण का जन्म कराएं। भगवान के गीत गाएं। गंगाजल से पहले कृष्ण को स्नान कराके नए वस्त्र और आभूषण पहनाएं। भगवान के भजन गाएं। रात 12 बजे जन्म कराकर गीत संगीत के बाद प्रसाद का वितरण करें।

जन्माष्टमी पर बन रहा है यह संयोग
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जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भक्त व्रत का संकल्प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद पारण यानी कि व्रत खोल सकते हैं। कृष्ण की पूजा नीशीथ काल यानी कि आधी रात को की जाती है। इसके पश्चात श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करें।

जन्माष्टमी का महत्व
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जन्माष्टमी का पूरे भारत वर्ष में विशेष महत्व है। यह हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया था। देश के सभी राज्य अलग-अलग तरीके से इस महापर्व को मनाते हैं। इस दिन क्या बच्चे क्या बूढ़े सभी अपने आराध्य के जन्म की खुशी में दिन भर व्रत रखकर कृष्ण की महिमा का गुणगान करते हैं।

शुभ मुहूर्त
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अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 12.04 से 12.55 बजे तक।
जन्माष्टमी निशीथ पूजा का समय- मध्य रात्रि 12.09 से 12.47 बजे तक।
निशीथ पूजा शुभ मुहूर्त – 38 मिनट।
अष्टमी तिथि- 24 अगस्त की रात्रि 12.01 से 12.46 तक।

स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय अलग-अलग दिन मनाएंगे जन्माष्टमी
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स्मार्त संप्रदाय के मंदिरों में, साधु-संन्यासी, शैव संप्रदाय शुक्रवार यानी 23 अगस्त को, जबकि वैष्णव संप्रदाय के मंदिरों में शनिवार यानी 24 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। स्मार्त संप्रदाय यानी जो लोग पंचदेवों की पूजा करते हैं। शैव संप्रदाय वाले शिवजी को प्रमुख मानते हैं। विष्णु के उपासक या विष्णु के अवतारों को मानने वाले वैष्णव कहलाते हैं। जन्माष्टमी को लेकर पंचांग भेद है, क्योंकि 23 अगस्त को उदया तिथि में रोहिणी नक्षत्र नहीं रहेगा, 24 अगस्त को अष्टमी तिथि नहीं है। श्रीकृष्ण का जन्म इन्हीं दोनों योग में हुआ था।

23 अगस्त को जन्माष्टमी मनाने के तर्क
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भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के योग में हुआ था। शुक्रवार, 23 अगस्त को अष्टमी तिथि रहेगी और इसी तारीख की रात में 11.56 बजे से रोहिणी नक्षत्र शुरू हो जाएगा, इस वजह से 23 अगस्त की रात जन्माष्टमी मनाना ज्यादा शुभ रहेगा। भक्तों को 23 अगस्त को ही श्रीकृष्ण के लिए व्रत-उपवास और पूजा-पाठ करना चाहिए। अष्टमी तिथि 24 अगस्त को सूर्योदय काल में रहेगी, लेकिन दिन में तिथि बदल जाएगी। ये दिन अष्टमी-नवमी तिथि से युक्त रहेगा। इसलिए 24 अगस्त को जन्माष्टमी मनाना उचित नहीं होगा।

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