अघोर चतुर्दशी आज, पितरों को करें तर्पण

आज के दिन भगवान शिव ने किया था काशी का सृजन
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आज यानी 29 अगस्त को अघोर या अघोरा चतुर्दशी है। भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन अघोर चतुर्दशी मनाई जाती है। इसे डगयाली भी कहा जाता है। इसके अगले दिन अमावस्या को बड़ी डगयाली या कुशाग्रहणी अमावस्या कहा जाता है। अघोर चतुर्दशी भगवान शिव के भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अघोर चतुर्दशी के दिन तर्पण, दान-पुण्य का विशेष महत्व है। मान्यता है कि काशी का सृजन भगवान शिव ने अघोर चतुर्दशी के दिन ही किया था।

कहा जाता है कि काशी नगरी धरती पर नहीं, भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी है। यह भी मान्यता है कि 14 सौ करोड़ वर्ष पूर्व काशी अस्तित्व में आई थी। अघोर चतुर्दशी के दिन पितरों के लिए किए जाने वाले कार्य किए जाते हैं। इस दिन पितरों के लिए व्रत करने से उनकी आत्मा को शांति प्राप्त होती है। अघोर चतुर्दशी को लेकर कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव के गण, भूत-प्रेत आदि को स्वतंत्रता प्राप्त होती है। अघोर चतुर्दशी के अगले दिन कुशाग्रहणी अमावस्या पर सालभर के धार्मिक कार्यों के लिए कुश एकत्र की जाती है। प्रत्येक धार्मिक कार्य के लिए इस कुश का इस्तेमाल किया जाता है। इस दिन भगवान शिव का ध्यान करें। यह दिन संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।

अघोर चतुर्दशी का महत्व
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अघोर चतुर्दशी हिमाचल के अलावा उत्तराखंड, असम, सिक्किम और नेपाल में भी मनाई जाती है. इस दिन कुशा को धरती से उखाड़कर एकत्रित करके रखना शुभ माना जाता है. इस दिन व्रत, स्नान, दान, जप, होम और पितरों के लिए भोजन, वस्त्र आदि देना उतम रहता है. शास्त्रों के हिसाब से इस दिन प्रात:काल स्नान करके संकल्प करें और उपवास करना चाहिए। कुश अमावस्या के दिन किसी पात्र में जल भर कर कुशा के पास दक्षिण दिशा कि ओर अपना मुख करके बैठ जाएं तथा अपने सभी पितरों को जल दें, अपने घर परिवार, स्वास्थ आदि की शुभता की प्रार्थना करनी चाहिए।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
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