ना जायते म्रियते वा कदाचिन्नाय भूत्वा भविता वा न भूपः
ऊजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।
गीता.2ए अध्याय.20
अर्थात आत्मा ना तो कभी जन्म लेती है और ना ही मरती है मरना जीना तो शरीर का धर्म है शरीर का नाश हो जाने पर भी आत्मा का नाश नहीं होता है। विज्ञान के अनुसार कोई भी पदार्थ कभी भी नष्ट नहीं होता है वरन् उसके रूप में परिवर्तन हो जाता है।
व्यक्ति के सत्संस्कार होने के बाद यही अक्षय आत्मा पित्तर रूप में क्रियाशील रहती है तथा अपनी आत्मोन्नति के लिये प्रयासरत रहने के साथ पृथ्वी पर अपने स्वजनों एवं सुपात्रों की मदद के लिये सदैव तैयार रहती है।जय माताजी की🙏💐ऐस्ट्रो ज्योति दाधीच,तीर्थराज पुष्कर,राजस्थान।