आत्मसम्मान के धनी-आजादी के दिवाने
शास्त्रीजी नहीं चाहते थे कि उनका नाम अख़बारों में छपे और लोग उनकी प्रशंसा करें
लाला लाजपत राय से लोक सेवा मंडल के सदस्य की दीक्षा लेने के बाद लाला लाजपत राय ने उनसे कहा “लाल बहादुर ताजमहल में दो तरह के पत्थर लगे हैं यथा सफेद सगंमरमर और नीव में लगाये गये साधारण पत्थर, संगमरमर के पत्थरों को दुनिया देखती है और उनकी प्रसंसा भी करती है वहीं दूसरे तरह के पत्थर नीव में लगे जिनके जीवन में सिर्फ अँधेरा-अँधेरा ही है लेकिन ताजमहल को उन्होंने खड़ा रक्खा हुआ है, इसलिए तुम नीव के पत्थर बनने की कोशिश करना”| शास्त्रीजी ने कहा मुझे लालाजी के वो शब्द आज भी याद है इसीलिए में नीव का पत्थर बना रहना चाहता हूँ | इसीलिए शास्त्रीजी जीवन पर्यन्त नीवं का मजबूत पत्थर काम करते रहे और कभी भी नहीं चाह कि उनका नाम अख़बारों की सुर्खियाँ बने और लोग उनकी प्रशंसा करें |
प्रस्तुतिकरण—-डा.जे.के.गर्ग