नवरात्रि के दौरान श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इस दुर्गा सप्तशती को ही चण्डिपाठ, नवचण्डि(9 आवृति) एवं शत चंडी(100 आवृति) एवं सहस्त्र चंडी (1000) आवृति) कहते हैं । एक पौराणिक कथा के अनुसार शारदीय नवरात्रि का ज्यादा महत्व इसलिए है क्योंकि देवताओं ने इस मास में देवी की अराधना की थी, जिसके परिणामस्वरूप मां जगदम्बा ने दैत्यों का वध कर देवताओं को फिर से स्वर्ग पर अधिकार दिलवाया था।
हिन्दु धर्म की मान्यतानुसार दुर्गा सप्तशती में कुल 700 श्लोक हैं जिनकी रचना स्वयं ब्रह्मा, विश्वामित्र और वशिष्ठ द्वारा की गई है और मां दुर्गा के संदर्भ में रचे गए इन 700 श्लोकों की वजह से ही इस ग्रंथ का नाम दुर्गा सप्तशती है।
दुर्गा सप्तशती मूलत: एक जाग्रत तंत्र विज्ञान है। यानी दुर्गा सप्तशती के श्लोकों का अच्छा या बुरा असर निश्चित रूप से होता है और बहुत ही तीव्र गति से होता है।
दुर्गा सप्तशती में अलग-अलग जरूरतों के अनुसार अलग-अलग श्लोकों को रचा गया है, जिसके अन्तर्गत मारण-क्रिया के लिए 90, मोहन यानी सम्मोहन-क्रिया के लिए 90, उच्चाटन-क्रिया के लिए 200, स्तंभन-क्रिया के लिए 200 व विद्वेषण-क्रिया के लिए 60-60 मंत्र है।
चूंकि दुर्गा सप्तशती के सभी मंत्र बहुत ही प्रभावशाली हैं, इसलिए इस ग्रंथ के मंत्रों का दुरूपयोग न हो, इस हेतु भगवान शंकर ने इस ग्रंथ को शापित कर रखा है, और जब तक इस ग्रंथ को शापोद्धार विधि का प्रयोग करते हुए शाप मुक्त नहीं किया जाता, तब तक इस ग्रंथ में लिखे किसी भी मंत्र तो सिद्ध यानी जाग्रत नहीं किया जा सकता अौर जब तक मंत्र जाग्रत न हो, तब तक उसे मारण, सम्मोहन, उच्चाटन आदि क्रिया के लिए उपयोग में नहीं लिया जा सकता।
हालांकि इस ग्रंथ का नवरात्रि के दौरान सामान्य तरीके से पाठ करने पर पाठ का जो भी फल होता है, वो जरूर प्राप्त होता है, लेकिन तांत्रिक क्रियाओं के लिए यदि इस ग्रंथ का उपयोग किया जा रहा हो, तो उस स्थिति में पूरी विधि का पालन करते हुए ग्रंथ को शापमुक्त करना जरूरी है।
क्यों और कैसे शापित है दुर्गा सप्तशती के तांत्रिक मंत्र:-
इस संदर्भ में एक पौराणिक कथा है कि एक बार भगवान शिव की पत्नी माता पार्वती को किसी कारणवश बहुत क्रोध आ गया, जिसके कारण माँ पार्वती ने राैद्र रूप धारण कर लिया और मां पार्वती का इसी क्रोधित रूप को हम मां काली के नाम से जानते हैं।
कथा के अनुसार मां काली के रूप में क्रोधातुर मां पार्वती पृथ्वी पर विचरण करने लगी और सामने आने वाले हर प्राणी को मारने लगी। इससे सुर-असुर, देवी-देवता सभी भयभीत हो गए और मां काली के भय से मुक्त होने के लिए ब्रम्हाजी के नेतृत्व में सभी भगवान शिव के पास गए उनसे कहा कि- हे भगवन भाेले नाथ… आप ही देवी काली को शांत कर सकते हैं और यदि आपने ऐसा नहीं किया, तो सम्पूर्ण पृथ्वी का नाश हो जाएगा, जिससे इस भूलोक में न कोई मानव होगा न ही जीव जन्तु।
भगवान शिव ने ब्रम्हाजी को जवाब दिया कि- अगर मैंने एेसा किया तो बहुत ही भयानक असर होगा। सारी पृथ्वी पर दुर्गा के मंत्रो से भयानक शक्ति का उदय होगा और दानव इसका दुरूपयोग करना शुरू कर देंगे, जिससे सम्पूर्ण संसार में आसुरी शक्तियो का वास हो जाएगा।
ब्रम्हाजी ने फिर भगवान शिव से प्रार्थना की कि- हे भगवान भूतेश्वर… आप रौद्र रूप में देवी को शांत कीजिए और इस दौरान उदय होने वाले मां दुर्गा के रूप मंत्रों को शापित कर दीजिए, ताकि भविष्य में कोई भी इसका दुरूपयोग न कर सके।
वहीं भगवान नारद भी थे जिन्होने ब्रम्हाजी से पूछा कि- हे पितामह… अगर भगवान शिव ने उदय होने वाले मां दुर्गा के रूप मंत्रों को शापित कर दिया, तो संसार में जिसको सचमुच में देवी रूपों की आवश्यकता होगी, वे लोग भी मां दुर्गा के तत्काल जाग्रत मंत्र रूपों से वंचित रह जाऐंगे। उनके लिए क्या उपाय है, ताकि वे इन जाग्रत मंत्रों का फायदा ले सकें?
भगवान नारद के इस सवाल के जवाब में भगवान शिव ने दुर्गा सप्तशती को शापमुक्त करने की पूरी विधि बताई, जो कि अग्रानुसार है और इस विधि का अनुसरण किए बिना दुर्गा सप्तशती के मारण, वशीकरण, उच्चाटन जैसे मंत्रों को सिद्ध नहीं किया जा सकता न ही दुर्गा सप्तशती के पाठ का ही पूरा फल मिलता है।
दुर्गा सप्तशती – शाप मुक्ति विधि
भगवान शिव के अनुसार जो व्यक्ति मां दुर्गा के रूप मंत्रों को किसी अच्छे कार्य के लिए जाग्रत करना चाहता है, उसे पहले दुर्गा सप्तशती को शाप मुक्त करना होता है और दुर्गा सप्तशती को शापमुक्त करने के लिए सबसे पहले निम्न मंत्र का सात बार जप करना होता है-
ऊँ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशानुग्रहं कुरू कुरू स्वाहा
फिर इसके पश्चात निम्न मंत्र का 21 बार जप करना हाेता है-
ऊँ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरू कुरू स्वाहा
और अंत में निम्न मंत्र का 21 बार जप करना हाेता है-
ऊँ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विधे मृतमूत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा
इसके बाद निम्न मंत्र का 108 बार जप करना होता है-
ऊँ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ऊँ ऐं क्षाेंभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं
इतनी विधि करने के बाद मां दुर्गा का दुर्गा-सप्तशती ग्रंथ भगवान शंकर के शाप से मुक्त हो जाता है। इस प्रक्रिया को हम दुर्गा पाठ की कुंजी भी कह सकते हैं और जब तक इस कुंजी का उपयोग नहीं किया जाता, तब तक दुर्गा-सप्तशती के पाठ का उतना फल प्राप्त नहीं होता, जितना होना चाहिए क्योंकि दुर्गा सप्तशती ग्रंथ को शापमुक्त करने के बाद ही उसका पाठ पूर्ण फल प्रदान करता है।
दुर्गा सप्तशती एक महान तंत्र ग्रंथ के रूप में उपल्बध जाग्रत शास्त्र है। इसलिए दुर्गा सप्तशती के पाठ को बहुत ही सावधानीपूर्वक सभी जरूरी नियमों व विधि का पालन करते हुए ही करना चाहिए क्योंकि यदि इस पाठ को सही विधि से व बिल्कुल सही तरीके से किया जाए, तो मनचाही इच्छा भी नवरात्रि के नौ दिनों में ही जरूर पूरी हो जाती है, लेकिन यदि नियमों व विधि का उल्लंघन किया जाए, तो दुर्घटनाओं के रूप में भयंकर परिणाम भी भोगने पडते हैं और ये दुर्घटनाऐं भी नवरात्रि के नौ दिनों में ही घटित होती हैं।
इसलिए किसी अन्य देवी-देवता की पूजा-आराधना में भले ही आप विधि व नियमों पर अधिक ध्यान न देते हों, लेकिन यदि आप नवरात्रि में दुर्गा पाठ कर रहे हैं, तो पूर्ण सावधानी बरतना व विधि का पूर्णरूपेण पालन करना जरूरी है।
चूंकि ये विधियां अपने स्तर पर पूर्ण सावधानी के साथ करने पर भी गलतियां हो जाने की सम्भावना रहती है, इसलिए बेहतर यही है कि ये काम आप किसी कुशल कर्मकांडी ब्राम्हण देव के सानिध्य में ही करवाये ।। 🙏💐
मेरी आज तक कि सबसे सुंदर बहुमूल्य पोस्ट के संकलन से शाक्त धर्मी पाठक अवश्य लाभान्वित होंगे यही माँ से कामना करती हूँ।
जय माताजी की🙏💐
ऐस्ट्रो ज्योति दाधीच,तीर्थराज पुष्कर ,राजस्थान।