रविदासजी मानने थे कि राम, कृष्ण,शिव, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। उन्होनें कहा “जो आदमी घमंड के बिना विनम्रता से काम करता है वो ही जीवन में सफल रहता है “, जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की चींटी इन कणों को सरलतापूर्वक चुन लेती है। इसी प्रकार अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है।
अनेकों लोग मानते हैं कि गुरु रविदास को अद्धभुत सिद्धिया प्राप्तह थीं। कुछ मान्यताओं के मुताबिक बचपन में एक बार उनके एक प्रिमय मित्र की मृत्युस हो गई थी। सब लोग इसका शोक मना रहे थे। लेकिन जैसे ही रविदासजी ने करुण हृदय से दोस्त् को पुकारा तो वह जीवित होकर उठ बैठा। हिंदू पंचांग के अनुसार माघ माह की पूर्णिमा के दिन गुरु रविदास जयंती मनाई जाती है। 9 फरवरी 2020के दिन रविदास जी की 643 वीं जयंती मनाई जा रही है।
संत रविदास के जन्म को 643 वर्ष बीत जाने के बाद भी उनके उपदेश, दोहे आज भी मानव मात्र के कल्याण के लिये जरूरी है | उनके दोहे “मन मन ही पूजा मन ही धूप ,मन ही सेऊँ सहज सरूप” में जीवन की सच्चाई छिपी हुयी है | आज के असहिष्णुता , पारस्परिक अविश्वाश, धार्मिक उन्माद के विषाक्त वातावरण में रविदास जी की शिक्षायें हमें सही रास्ता दिखा सकती है |
संकलनकर्ता एवं प्रस्तुतिकरण—- डा. जे. के. गर्ग