युगप्रवर्तक स्वामी विवेकानन्द परमात्मा में विश्वास से अधिक अपने आप पर विश्वास करने को अधिक महत्व देते थे। स्वामीजी ने कहा कि जीवन में हमारे चारो ओर घटने वाली छोटी या बड़ी, सकारात्मक या नकारात्मक सभी घटनायें हमें अपनी असीम शक्ति को प्रगट करने का अवसर प्रदान करती है।
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था “जिसके जीवन में ध्येय नहीं वह तो खेलती गाती, हँसतीबोलती लाश ही है। ”जब तक व्यक्ति अपने जीवन के विशिष्ट ध्येय को नहीं पहचान लेता तब तक तो उसका जीवन व्यर्थ ही है। युवकों अपने जीवन में क्या करना है इसका निर्णय उन्हें ही करना चाहिये। ” रुढ़िवादी धर्मावलम्बी कहते है कि ईश्वर में विश्वास ना करने वाला नास्तिक है किंतु मै कहता हूँ कि जिस मनुष्य का अपने आप पर विश्वास नहीं है वो ही नास्तिक है” | स्वामी विवेकानंद मानते कि ”अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जायेगा”। स्वामी जी हमेशा अपने को ‘गरीबों का सेवक’ कहते थे। सच्चाई तो यही है वे एक बड़े स्वप्नदृष्टा थे। उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी जिसमें जाति या धर्म के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं हो। शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन के बाद अमेरिकन मीडिया ने स्वामी जी को साइक्लॉनिक हिन्दू का नाम दिया था ।
DR J.K Garg