आज भी स्वामीजी का साहित्य किसी अग्निमन्त्र की भाँति पढ़ने वाले के मन में कुछ कर गुजरने का भाव संचारित करता है। किसी ने ठीक ही कहा है यदि आप स्वामीजी की पुस्तक को लेटकर पढ़ोगे तो सहज ही उठकर बैठ जाओगे। बैठकर पढ़ोगे तो उठ खड़े हो जाओगे और जो खड़े होकर पढ़ेगा वो व्यक्ति सहज ही सात्विक कर्म में लग कर अपने लक्ष्य पूर्ति हेतु ध्येयमार्ग पर चल पड़ेगा। स्वामी जी की शिष्या अमरीका की लेखक लीसा मिलर “ वी आर आल हिन्दू नाऊ” शीर्षक के लेख में बताती है वैदऋग“ सबसे प्राचीन ग्रंथ कहता है कि सत्य एक ही है |