वसंत ऋतु और परंपरागत भारतीय नववर्ष

वसंत को ऋतु का राजा अर्थात सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। वसंत ऋतु फाल्गुन, चैत्र एवं वैशाख में 2 माह से कुछ अधिक अवधि की होती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार फरवरी-मार्च और अप्रैल माह में वसंत ऋतु आती है। जिस तरह इस मौसम में प्रकृति में परिवर्तन होता है उसी तरह हमारे शरीर और मन मस्तिष्क में भी परिवर्तन होता है। और, जिस तरह प्रकृति के तत्व पेड़-पौधे, लताऐं, पशु-पक्षी, पहाड़ आदि प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए उससे होने वाली हानि से बचने का प्रयत्न करते हैं उसी तरह मानव को भी ऐसा करने की ऋषियों ने सलाह दी। उस दौरान ऋषियों ने ऐसे त्यौहार और व्रत नियम आदि बनाए जिनका पालन करने से मनुष्य सुखमय जीवन व्यतीत कर सके। इन दिनों मनाए जाने वाले मुख्य त्यौहार वसंत पंचमी, शिवरात्रि, होली, धुलंडी, शीतला सप्तमी, रंग पंचमी, नवरात्रि, रामनवमी, नव-संवत्सर, चेटीचंड, हनुमान जयंती, महावीर जयंती, व बुद्ध पूर्णिमा आदि हैं। इन त्यौहारों में से परंपरागत नववर्ष अथवा नवसंवत्सर का त्यौहार बहुत महत्वपूर्ण है।
प्रायः एशिया महाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में वसंत ऋतु में ही परंपरागत नव वर्ष प्रारंभ होता है। विशेष रूप से दक्षिणी एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया के हिस्सों में परंपरागत नव वर्ष बहुत जोर-शोर से मनाया जाता है। यदि गणना की जाए तो हम पाएंगे कि दुनिया की 50ः से अधिक आबादी वसंत ऋतु में परंपरागत नववर्ष उत्साह के साथ मनाती है।
चीन और पूर्वी एशियाई देशों में परंपरागत नव वर्ष
चीन और पूर्वी एशियाई देशों कोरिया, वियतनाम, मंगोलिया, तिब्बत, ताइवान, मलेशिया, सिंगापुर, तिमोर, भूटान और जापान के छोटे हिस्से में 21 जनवरी से 20 फरवरी के मध्य में आने वाले नए चंद्रमा से नववर्ष वसंत महोत्सव के रूप में प्रारंभ होकर 15 दिन तक चलता है। उपरोक्त में से अधिकांश देशों में परंपरागत नववर्ष पर राष्ट्रीय अवकाश रहता है। चीन में इस महोत्सव के समापन पर लालटेन उत्सव मनाया जाता है जिसमें रात्रि में आकाश में रोशनी के साथ लालटेन उडाई जाती है। वर्ष 2021 में यह नया वर्ष 12 फरवरी को प्रारम्भ हुआ था।
भारत सहित दक्षिण एवं दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में परंपरागत नववर्ष
भारत सहित दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशियाई देशों नेपाल, श्रीलंका, कंबोडिया, इंडोनेशिया, म्यांमार, लाओस व थाईलैंड, आदि देशों में परंपरागत नव वर्ष फाल्गुन एवं चैत्र मास अर्थात अंग्रेजी कलंेडर के मार्च-अप्रैल माह में वसंत ऋतु में धूमधाम से मनाया जाता है। अफ्रिकी देश माॅरीशस मे भी यह उत्सव इन्हीं दिनों मनाया जाता है। इसमें से अधिकांश देशों में यह उत्सव चैत्र मास की प्रतिपदा अर्थात साधारणतया 13 से 15 अप्रैल के मध्य मनाया जाता है। उपरोक्त में से अधिकांश देशों में मनाए जाने वाले उत्सव 2-3 दिन चलते हैं तथा इन देशों में इस अवसर पर राष्ट्रीय अवकाश भी होता है।
भारत में परंपरागत नववर्ष
भारत में परंपरागत नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन मनाने की अति प्राचीन परंपरा है। भारत के विभिन्न भागों में विभिन्न नामों और तरीके से इसे मनाया जाता है तमिलनाडु में पंुथडुं के नाम से तथा दक्षिण तमिलनाडु में इस दिन को चित्तिरै विशु के नाम से जानते हैं। केरल में इसे विशु के नाम से तथा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व तेलंगाना आदि राज्यों में इसे उगादि के नाम से मनाया जाता है। बंगाल में इस दिन को पोइला वैशाख नववर्ष के रूप में जाना जाता है तथा आसाम में इसे रोंगाली बिहू अथवा बोहाग बिहू के नाम से जाना जाता है। इसी प्रकार महाराष्ट्र में इस परंपरागत नव वर्ष को गुड़ी पड़वा के रूप में जाना जाता है और इस दिन सभी को नीम की कोपलों के साथ मिश्री का प्रसाद बांटा जाता है। सम्पूर्ण उत्तर भारत में इसे नव संवत्सर प्रारंभ व वर्ष प्रतिपदा के नाम से जाना जाता है। विभिन्न प्रांतों में विभिन्न प्रकार के सार्वजनिक आयोजन किये जाते है तथा नृत्य, रंगोली, शोभायात्रा, भोज व अन्य कई प्रकार के कार्यक्रम करके इसे मनाया जाता है। परंतु एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम जो समान रूप से पूरे देश में देखने को मिलता है वह है चैत्र की नवरात्रि का प्रारम्भ दिवस। नवरात्री उत्सव भारत में 9 दिन तक चलता है जिसमें विशेष रूप से शक्ति साधना, आराधना, पारायण, व्रत व उपवास आदि किए जाते हैं। जिनकी पूर्णाहुति नवें दिन रामनवमी के रूप में होती है। इस वर्ष नवसंवत्सर का यह दिन अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार 13 अप्रैल को रहने वाला है।
भारत में परम्परागत नववर्ष के दिवस के साथ जुडी महत्वपूर्ण घटनाएं:
भारत में परम्परागत नववर्ष का दिन होने के साथ-साथ वर्ष प्रतिपदा के दिन के साथ कुछ अन्य घटनाएं भी जुड़ी हुई है जिनके कारण प्रत्येक भारतीय के लिए यह दिन और भी महत्व का हो जाता है। ऐसी ही कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं का अति संक्षिप्त विवरण आगे दिया जा रहा है:
सृष्टि की रचना का प्रारंभ दिवस: भारतीय काल गणना के हिसाब से यह बताया जाता है कि इस सृष्टि की रचना का प्रारंभ भी चैत्र शुक्ल एकम को हुआ था और इस काल गणना के अनुसार इस नव वर्ष पर (13 अप्रैल 2021 को) सृष्टि को आरंभ हुए 1972949122 वर्ष पूर्ण हो जायेंगे। भारतीय कालगणना अपने आप में एक पूर्ण वैज्ञानिक पद्धति है, इसका संपूर्ण वर्णन इस लेख में संभव नहीं है परंतु यहां इतना ही बताया बताना पर्याप्त है कि भारतीय नववर्ष के दिन ही सृष्टि की रचना का आरंभ हुआ था।
महर्षि गौतम का जन्म दिवस: न्याय शास्त्र के प्रणेता महर्षि गौतम का जन्म चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन हुआ था ।
विक्रमी सम्वत् का शुभारम्भ दिन: कहा जाता है कि सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने शकों के अत्याचार से देशवासियों को मुक्त किया एवं देश के संपूर्ण ऋण को चाहे वह जिस व्यक्ति का भी रहा हो स्वयं चुका कर इस दिन 2077 वर्ष पूर्व विक्रमी संवत का आरम्भ किया।
वरुण अवतार झूलेलाल का जन्मदिवस: भगवान श्री झूलेलाल के अवतरण दिवस को सिंधी समाज चेटीचंड के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के अगले दिन मनाता है। भगवान झूलेलाल को वरुण देवता के अवतार के रूप मे माना जाता है ।
आर्य समाज का स्थापना दिवसः आर्य समाज की स्थापना भी सृष्टि की स्थापना के दिन अर्थात चैत्र शुक्ल एकम् अर्थात वर्ष प्रतिपदा के दिन हुई थी।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्मदिवस: डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भारतीय संविधान की ड्राफ्टिंग समिति के अध्यक्ष थे जिनका जन्म सन् 1891 ईस्वी को वर्ष प्रतिपदा के दिन हुआ था ।
मत्स्य अवतार जयंतीः भगवान विष्णु का प्रथम अवतार जो कि मत्स्य अवतार के रूप में था वह चैत्र माह में शुक्ल पक्ष के तृतीया के दिन हुआ था।
संघ संस्थापक परमपूज्य डॉ केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्मदिन: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 ईस्वी को हुआ था और यह दिन वर्ष प्रतिपदा का था जिसे महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक डॉक्टर साहब के जन्मदिन को वर्ष प्रतिपदा उत्सव के रूप में मनाते हुए उनका स्मरण करते हैं।
सभी भारतीय वर्ष प्रतिपदा उत्सव को बड़े आध्यात्मिक वातावरण में नववर्ष के रूप में उत्साह पूर्वक मनाते हैं।

वीरेंद्र शर्मा
( सेवानिवृत्त )
मुख्य कार्यकारी अभियंता
जलदाय विभाग

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