1919 में बाबासहिब को साउथ बोरोह समिति के समक्ष गवाही देने के लिये आमंत्रित किया गया। इस सुनवाई के दौरान बाबासहिब अम्बेडकर ने दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिये प्रथक निर्वाचिका और आरक्षण देने की पुरजोर वकालत की। अम्बेडकर ने बहिष्क्र्ट हितकारिणी की स्थापना भी की जिसका उद्देश्य दलित वर्गों में शिक्षा का प्रसार और उनके सामाजिक आर्थिक उत्थान के लिये काम करना था। सन् 1926 में बाबासाहिब बंबई विधान परिषद के मनोनीत सदस्य बन गये। सन 1927 में डॉ॰ अम्बेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया, उन्होंने अछूतों को भी हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये भी संघर्ष किया।
अम्बेडकर को 1931 मे लंदन में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में, भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। यहाँ उनकी अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने के मुद्दे पर गांधीजी से तीखी बहस हुई। गांधीजी का मानना था कि धर्म और जाति के आधार पर पृथक निर्वाचिका हिंदू समाज की भावी पीढी़ को हमेशा-
हमेशा के लिये विभाजित कर देगी। किन्तु 1932 मे जब अग्रेंजों ने अम्बेडकर के साथ सहमति व्यक्त करते हुये अछूतों के लिए पृथक निवार्चिका देने की घोषणा कर दी तब गांधी ने इसके विरोध मे पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया।
डा. जे. के. गर्ग