भगवान गणेश को दूर्वा बहुत प्रिय है. दूर्वा को दूब भी कहा जाता है. यह एक प्रकार की घास होती है, जो सिर्फ गणेश पूजन में ही उपयोग में लाई जाती है. आखिर श्री गणेश को दूर्वा इतनी प्रिय क्यों है? इसके पीछे क्या कहानी है? क्यों इसकी 21 गांठें ही श्री गणेश को चढ़ाई जाती है?
प्रत्येक चंद्र माह में दो चतुर्थी पड़ती हैं. हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार चतुर्थी भगवान गणेश की तिथि है. शुक्ल पक्ष के दौरान अमावस्या या अमावस्या के बाद की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के रूप में जानी जाती है और कृष्ण पक्ष के दौरान पूर्णिमा या पूर्णिमा के बाद पडऩे वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं।
भगवान गणेश को चतुर्थी तिथि का अधिष्ठाता माना जाता है तथा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसी दिन भगवान गणेश का अवतरण हुआ था. इसी कारण चतुर्थी, भगवान गणेश को अत्यंत प्रिय रही है. विघ्नहर्ता भगवान गणेश समस्त संकटों का हरण करते हैं. इनकी पूजा और व्रत करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। भगवान गणेश का स्थान सभी देवी-देवताओं में सर्वोपरि है. गणेश जी को सभी संकटों को दूर करने वाला तथा विघ्नहर्ता माना जाता है. जो भगवान गणेश की पूजा-अर्चना नियमित रूप से करते हैं उनके घर में सुख और समृद्धि बढ़ती है।
भगवान गणेश से जुड़े पौराणिक तथ्य
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किसी भी देव की आराधना के आरम्भ में, किसी भी सत्कर्म और अनुष्ठान में, उत्तम-से-उत्तम और साधारण-से-साधारण कार्य में भी भगवान गणपति का स्मरण, उनका विधिवत पूजन किया जाता है। इनकी पूजा के बिना कोई भी मांगलिक कार्य को शुरु नहीं किया जाता है. यहां तक की किसी भी कार्यारम्भ के लिए ‘श्री गणेश एक मुहावरा बन गया है. शास्त्रों में इनकी पूजा सबसे पहले करने का स्पष्ट आदेश है।
भगवान गणेश की पूजा वैदिक और अति प्राचीन काल से की जाती रही है. गणेश जी वैदिक देवता हैं क्योंकि ऋग्वेद-यजुर्वेद आदि में गणपति के मन्त्रों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है. भगवान शिव, भगवान विष्णु, माता दुर्गा और सूर्यदेव के साथ-साथ भगवान गणेश का नाम भी हिन्दू धर्म के पांच प्रमुख देवों (पंच-देव) में शामिल है. जिससे गणपति की महत्ता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
‘गण का अर्थ है- वर्ग, समूह, समुदाय और ‘ईशका अर्थ है- स्वामी. शिवगणों और देवगणों के स्वामी होने के कारण ही इन्हें ‘गणेश कहते हैं. भगवान शिव को गणपति का पिता, माता पार्वती को माता, कार्तिकेय (षडानन) को भ्राता, ऋद्धि-सिद्धि (प्रजापति विश्वकर्मा की कन्याएं) को पत्नियां, क्षेम व लाभ को गणेश जी का पुत्र माना गया है.
शास्त्रों में श्री गणेश के बारह प्रसिद्ध नाम बताए गए हैं, जो इस प्रकार हैं- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्ण, लम्बोदर, विकट, विघ्नविनाशन, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र और गजानन. भगवान गणेश ने महाभारत का लेखन-कार्य भी किया था. भगवान वेदव्यास जब महाभारत की रचना का विचार कर चुके थे तो उन्हें उसे लिखवाने की चिंता हुई. ब्रह्माजी ने उनसे कहा था कि वे यह कार्य गणेश जी से करवा सकते हैं.
भगवान गणेश और दूर्वा की कथा
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हम सभी जानते हैं कि श्री गणेश को दूर्वा बहुत प्रिय है. दूर्वा को दूब भी कहा जाता है. यह एक प्रकार की घास होती है, जो सिर्फ गणेश पूजन में ही उपयोग में लाई जाती है. आखिर श्री गणेश को दूर्वा इतनी प्रिय क्यों है? इसके पीछे क्या कहानी है? क्यों इसकी 21 गांठें ही श्री गणेश को चढ़ाई जाती है? एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीनकाल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था. उसके प्रकोप से स्वर्ग और धरती पर त्राहि-त्राहि मची हुई थी.
अनलासुर एक ऐसा दैत्य था, जो ऋषियों-मुनि और साधारण मनुष्यों को जिंदा निगल जाता था. इस दैत्य के अत्याचारों से त्रस्त होकर भगवान इंद्र सहित सभी देवी-देवता और ऋषि-मुनि भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना करने जा पहुंचे और सभी ने महादेव से यह प्रार्थना की कि वे अनलासुर के आतंक का खात्मा करें. तब महादेव ने समस्त देवी-देवताओं तथा ऋषि-मुनियों की प्रार्थना सुनकर उनसे कहा कि दैत्य अनलासुर का नाश केवल श्री गणेश ही कर सकते हैं.
जिसके बाद सभी देवी-देवताओं ने भगवान गणेश से प्रार्थना की. जिसके बाद गणपति ने अनलासुर को निगल लिया. अनलासुर को निगलने के बाद लंबोदर के पेट में बहुत जलन होने लगी. इस परेशानी से निपटने के लिए कई प्रकार के उपाय करने के बाद भी जब गणपति के पेट की जलन शांत नहीं हुई, तब कश्यप ऋषिने दूर्वा की 21 गांठें बनाकर श्री गणेश को खाने को दीं. यह दूर्वा श्री गणेशजी ने ग्रहण की, तब कहीं जाकर उनके पेट की जलन शांत हुई. ऐसा माना जाता है कि श्री गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा तभी से आरंभ हुई थी।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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