राष्ट्र पिता के जीवन की अविस्मरणीय घटनायें Part 3
मतलब की चीज को संभाल कर रक्खो
एक अंग्रेज ने महात्मा गांधी को पत्र लिखा। उसमें गालियों के अतिरिक्त कुछ था नहीं। गांधीजी ने पत्र पढ़ा और उसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया। उसमें जो आलपिन लगा हुआ था उसे निकालकर सुरक्षित रख लिया। वह अंग्रेंज कुछ दिनों बाद बापूजी से मिलने के लिए आया और आते ही उसने पूछा- महात्मा जी! आपने मेरा पत्र पढ़ा या नहीं?
महात्मा जी बोले- बड़े ध्यान से पढ़ा है। उसने फिर पूछा- क्या सार निकाला आपने? महात्मा जी ने कहा- एक आलपिन निकाला है। बस, उस पत्र में इतना ही सार था। जो सार था, उसे मैंने ले लिया और फालतू वस्तु को फेंक दिया।
जीवित व्यक्ति की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करना बेढंगा कार्य है उसके स्थान पर उनकी शिक्षाओं और सद्गुणों को अपनाएं
एक बार गांधीजी को एक पत्र मिला, जिसमें लिखा था कि शहर में गांधी मंदिर की स्थापना की गई है, जिसमें रोज उनकी मूर्ति की पूजा-अर्चना की जाती है। यह जानकर गांधीजी परेशान हो उठे। उन्होंने लोगों को बुलाया और अपनी मूर्ति की पूजा करने के लिए उनकी निंदा की। इस पर उनका एक समर्थक बोला, ‘बापूजी, यदि कोई व्यक्ति अच्छे कार्य करे तो उसकी पूजा करने में कोई बुराई नहीं है।’ उस व्यक्ति की बात सुनकर गांधीजी बोले, भैया, तुम कैसी बातें कर रहे हो? जीवित व्यक्ति की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करना बेढंगा कार्य है।’ इस पर वहां मौजूद लोगों ने कहा, ‘बापूजी हम आपके कार्यों से बहुत प्रभावित हैं। गांधीजी बोले ”आप मेरे किस कार्य से प्रभावित हैं?’ यह सुनकर सामने खड़ा एक युवक बोला, ‘बापू, आप हर कार्य पहले स्वयं करते हैं, हर जिम्मेदारी को अपने ऊपर लेते हैं और अहिंसक नीति से शत्रु को भी प्रभावित कर देते हैं। आपके इन्हीं सद्गुणों से हम बहुत प्रभावित हैं।’गांधीजी ने कहा, ‘यदि आप मेरे कार्यों और सद्गुणों से प्रभावित हैं तो उन सद्गुणों को आप लोग भी अपने जीवन में अपनाइए। तोते की तरह गीता रामायण का पाठ करने के बदले उनमें वर्णित शिक्षाओं का अनुसरण ही सच्ची पूजा-उपासना है। इस तरह उन्होंने अपनी पूजा रुकवाई।