नवदुर्गा के नो स्वरूप महिलाओं के पूरे जीवन चक्र का प्रतिबिम्ब ही है यानि “शैलपुत्री” जन्म ग्रहण करती हुई कन्या का स्वरूप है, “ब्रह्मचारिणी” नारी का कौमार्य अवस्था प्राप्त होने तक का रूप है, वहीं नारी शादी से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने की वजह से “चंद्रघंटा” के समान है | जब महिला शिशु को जन्म देने के लिये गर्भवती बनती है तो वह “कूष्मांडा” का स्वरूप है वहीं नारी शिशु को जन्म दे देती है तो वह “स्कन्दमाता” बन जाती | संयम व साधना को धारण करने वाली नारी”कात्यायनी” का स्वरूप हो जाती है | सती सावित्री के समान अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से नारी”कालरात्रि” जैसी बन जाती है | जीवन पर्यन्त अपने परिवार को संसार मानकर उसका उत्थान और उन्नयन करने वाली नारी “महागौरी” हो जाती है और अंत में नारी अपने सभी दायित्वों का निर्वहन करने के बाद धरती को छोड़कर स्वर्गारोहण करने से पहले संसार मे अपनी संतान को सिद्धि और सम्पदा का आशीर्वाद देने वाली “सिद्धिदात्री” बन जाती है |
डा. जे. के. गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कॉलेज शिक्षा