युद्ध हो या विपक्ष की नीतियाँ हों अथवा, कूटनीति का अंतर्राष्ट्रीय मैदान हो इंदिरा गाँधी ने स्वयं को सफल साबित किया था। 1971 के नवम्बर माह तक पूर्वी पाकिस्तान केएक करोड़ शरणार्थी भारत में प्रविष्ट हो चुके थे। इन शरणार्थियों की उदर पूर्ति करना तब भारत के लिए एक समस्या बन गई थी। ऐसी स्थिति में भारत ने पाकिस्तान की पूर्वी पाकिस्तान केअन्दर बर्बरता के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवता के हित में आवाज़ बुलंद की, इसे पाकिस्तान ने अपने देश का आंतरिक मामला बताते हुए पूर्वी पाकिस्तान में घिनौनी सैनिक कार्रवाई जारी रखी। छह माह तक वहाँ पाकिस्तान का दमन चक्र चला। पाकिस्तान ने 3 दिसम्बर,1971 को भारत के वायु सेना के ठिकानों पर हमला करते हुए उसे युद्ध का न्योता दे दिया। पश्चिमी भारत के सैनिक अड्डों पर किया गया हमला पाकिस्तान की ऐतिहासिक प राजय का कारण बना। इंदिरा जी ने चतुरतापूर्वक तीनों सेनाध्यक्षों के साथ मिलकर यह योजना बनाई कि उन्हें दो तरफ से आक्रमण करना है। एक आक्रमण पश्चिमी पाकिस्तान पर होगा और दूसरा आक्रमण तब किया जाएगा जब पूर्वी पाकिस्तान की मुक्तिवाहिनी सेनाओं को भी साथ मिला लिया जाएगा। जनरल जे.एस अरोड़ा के नेतृत्व में भारतीय थल सेना मुक्तिवाहिनी की मदद के लिए मात्र ग्यारह दिनों में ढाका तक पहुँच गई। पाकिस्तान की छावनी को चारों ओर से घेर लिया गया। तब पाकिस्तान को लगा कि उसका मित्र अमेरिका उसकी मदद करेगा। उसने अमेरिका से मदद की गुहार लगाई। अमेरिका ने भारत के सामने अपनी दादागिरी दिखाते हुए अपना सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी की ओर रवाना कर दिया। तब इंदिरा गाँधी ने फ़ील्ड मार्शल मानिकशाह से परामर्श करके भारतीय सेना को अपना काम शीघ्रता से निपटाने का आदेश दिया।