मकर सक्रांति —- सूर्य संवत्सर का सबसे महत्वपूर्ण बड़ा दिन part 2

dr. j k garg
सोर संवत्सर में मकर संक्रांति में सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण तक का सफर अत्यंत महत्वपूर्ण है | मान्यता के मुताबिक सनातन धर्मी हिन्दू सूर्य के उत्तरायण काल में ही शुभ कार्य करते हैं | सूर्य जब मकर, कुंभ, वृष, मीन, मेष और मिथुन राशि में रहता है तब इसे उत्तरायण कहते हैं | वहीं, जब सूर्य बाकी राशियों सिंह, कन्या, कर्क, तुला, वृश्चिक और धनु राशि में रहता है, तब इसे दक्षिणायन कहते हैं | शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात होती है।

जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है उसी अवधि को सौर वर्ष कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना क्रान्ति चक्र कहलाता है। इस परिधि चक्र को बाँटकर बारह राशियाँ बनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना“ संक्रान्ति”कहलाता है। मकर संक्रांति के दिन यज्ञ में दिया हव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं। मकर संक्रांति का त्यौहार सम्पूर्ण सृष्टि के लिए ऊर्जा के स्रोत भगवान सूर्य की आराधना के रूप में मनाया जाता है | उत्तरायण में इसी मार्ग से पुण्यात्माएँ शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोकों में प्रवेश करती हैं। सनातन धर्म की मान्यताओं के मुताबिक इस दिन पुण्य,दान,जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अत्याधिक महत्त्व है और इस दिन किये गये दान पुन्य से उन्हें सौ गुणा ज्यादा फल प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य के उत्तरायण में आने पर सूर्य की किरणें पृथ्वी पर पूरी तरह से पड़ती है और यह प्रथ्वी प्रकाशमय हो जाती है।

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