दलितों के मसीहा भारतीय गणतंत्र के संविधान के शिल्पकार डॉक्टर अम्बेडकर part 3

dr. j k garg
डा. अम्बेडकर मानते थे कि हमआदि से अंत तक भारतीय हैं। देश में अनेकमहात्मा आये और चले गये किन्तु निरीह अछूत तो आज भी, अछूतही बने हुए हैं उनकी दशा के अंदर कोईपरिवर्तन नहीं आया | बाबासाहिब कहते थे कि किसी वस्तु का स्वाद बदला जासकता है, लेकिनविष को अमृत में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। दलितों के मसीहा ने बताया कि इन्सान को अपने भाग्य में नहीं, अपनीशक्ति में विश्वास रखना होगा । बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का महत्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए। इंसानसिर्फ समाज के विकास के लिए नहीं पैदा हुआ है, बल्किस्वयं के विकास के लिए पैदा हुआ है। आदमी को सबसे पहले खुद के विकास एवं उन्नति के लियेप्रयास करना चाहिये किसीपरिवार समुदाय और राष्ट्र प्रगति को महिलाओं कीप्रगति विकास से ही जांचापरखा जा सकता है । राष्ट्रवाद तभी औचित्य ग्रहण कर सकता है, जब लोगोंके बीच जाति, धर्म नस्ल यारंग के अन्तर भुला कर उसमें सामाजिक भाईचारे सौहार्द को सर्वोच्च स्थान दिया जाये। बाबा साहेब केअनुसार जोधर्म जन्‍म से एक को ‘श्रेष्ठ’ और दूसरे को ‘नीच’ बनाए रखे, वह धर्मनहीं, गुलामबनाए रखने का षड़यंत्र हैबाबा साहिब मनुवाद के प्रबल विरोधी थे | डा. अम्बेडकर मानते थे कि राजनीतिकअत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं हैं। अम्बेडकर ने वर्ण व्यवस्था को अवैज्ञानिक, अत्याचारपूर्ण, संकीर्ण तथा गरिमा हीन बताते हुए इसकी कटुआलोचना की थी। बाबा साहब के मतानुसार वर्ण व्यवस्था की वजह से उच्च समूह तथा कमजोरवर्गों में जितना उग्र संघर्ष भारत में है, वैसाविश्व के किसी अन्य देशों में नहीं है। वर्णव्यवस्था से आदमी की कार्यकुशलता की हानि होती है, क्योंकिजातीय आधार पर व्यत्तिफ़यों के कार्यों का पूर्व में ही निर्धारण हो जाता है।वर्णव्यवस्था में अन्तर्जातीय विवाह निषेधहोते अम्बेडकर ने वर्ण व्यवस्था को अवैज्ञानिक, अत्याचारपूर्ण, संकीर्ण तथा गरिमा हीन बताते हुए इसकी कटुआलोचना की थी। बाबा साहब ऐसे धर्म को मानते थे जो विचारों की स्वतंत्रता, समानताऔर भाईचारा सिखाता हो।

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