हर महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है।
व्रत के दिन भगवान शिव और विष्णु जी की पूजा कैसे करें?
===============================
– गुरु प्रदोष के दिन नहा धोकर साफ हल्के पीले या गुलाबी कपड़े पहने
– केले के पेड़ के नीचे गाय के घी का दीया जलाकर विष्णु भगवान के 108 नामों का जाप करें
-सारा दिन भगवान शिव के मन्त्र नमः शिवाय और नारायण नारायण मन ही मन जाप करते रहे और निराहार रहें
-शाम के समय प्रदोष काल मे भगवान शिव को पंचामृत (दूध दही घी शहद और शक्कर) से स्न्नान कराएं उसके बाद शुद्ध जल से स्न्नान कराकर रोली मौली चावल धूप दीप से पूजन करें
– भगवान शिव को साबुत चावल की खीर तथा भगवान विष्णु को पीले फल फूल अर्पण करें।
-आसन पर बैठकर पंचाक्षरी स्तोत्र का 5 बार पाठ करें तथा तलाक जैसे दुर्योग को खत्म करने की प्रार्थना करें
दाम्पत्य जीवन खराब क्यों होने लगता है?
– जन्मकुंडली के लग्न में पापी ग्रह जैसे सूर्य राहु शनि आदि पापी ग्रह बैठे हों।
– गुरु और शुक्र दोनों ही पीड़ित अवस्था मे हो।
– सप्तम भाव मे पापी ग्रह हो और सप्तमेश छ्ठे आठवें या बारहवें भाव मे हो।
– सप्तम भाव का स्वामी अस्त हो और सप्तम भाव पाप कर्तरी योग में हो
गुरु प्रदोष व्रत देगा सुख सौभाग्य का वरदान।
– गुरु को ज्ञान और सौभाग्य का कारक माना गया है। जिसके कारण सभी मांगलिक कामों में गुरु की प्रधानता रहती हैं।
– इसीलिए कन्याओं के विवाह में गुरु का आशीर्वाद सुख सौभाग्य को बढ़ाता है।
-अपने स्नान के जल में सात चुटकी हल्दी डालकर स्नान करें ऐसा लगातार 40 दिन करने से गुरु शुभ प्रभाव देगा।
त्रयोदशी तिथि में सायंकाल को प्रदोष काल कहा जाता है। प्रदोष व्रत को मंगलकारी एवं शिव की कृपा दिलाने वाला माना गया है। गुरु प्रदोष त्रयोदशी व्रत करने वाले को 100 गायें दान करने का फल प्राप्त होता है तथा यह सभी प्रकार के कष्ट और पापों को नष्ट करता है। इस व्रत की कथा श्रवण करने से यानी सुनने से ऐश्वर्य और विजय का शुभ वरदान मिलता है।
गुरु प्रदोष व्रत शत्रुओं का विनाश करने वाला भी माना गया। श्री सूतजी के अनुसार- यह अति श्रेष्ठ शत्रु विनाशक भक्ति प्रिय व्रत है।
गुरुवार त्रयोदशी प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा :-
===============================
इस व्रत कथा के अनुसार एक बार इंद्र और वृत्तासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ। देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर नष्ट-भ्रष्ट कर डाला। यह देख वृत्तासुर अत्यंत क्रोधित हो स्वयं युद्ध को उद्यत हुआ। आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया। सभी देवता भयभीत हो गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहूंचे। बृहस्पति महाराज बोले- पहले मैं तुम्हें वृत्तासुर का वास्तविक परिचय दे दूं।
वृत्तासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है। उसने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया। पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था। एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया।
वहां शिवजी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहासपूर्वक बोला- ‘हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं किंतु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे।’
चित्ररथ के यह वचन सुन सर्वव्यापी शिवशंकर हंसकर बोले- ‘हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है। मैंने मृत्युदाता-कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारणजन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो!’
माता पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ से संबोधित हुईं- ‘अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है अतएव मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे संतों के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा- अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे शाप देती हूं।’
जगदम्बा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्तासुर बना।
गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- ‘वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है अत हे इंद्र! तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो।’
देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इंद्र ने शीघ्र ही वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शांति छा गई। अत: प्रदोष व्रत हर शिव भक्त को अवश्य करना चाहिए।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
नोट- अगर आप अपना भविष्य जानना चाहते हैं तो ऊपर दिए गए मोबाइल नंबर पर कॉल करके या व्हाट्स एप पर मैसेज भेजकर पहले शर्तें जान लेवें, इसी के बाद अपनी बर्थ डिटेल और हैंडप्रिंट्स भेजें।