भगवान परशुराम Part 9

dr. j k garg
परशुरामजयंती हिन्दू पंचांग के वैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है | ऐसा मानाजाता है कि इस दिन दिये गए पुण्य का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता है | अक्षय तृतीया से त्रेता युग का आरंभ माना जाता है | मध्यकालीनसमय के बाद जब से हिन्दू धर्म का पुनरुद्धार हुआ है, तब से परशुरामजयंती का महत्व और अधिक बढ़ गया है | इस दिन उपवास के साथ साथ सर्वब्राह्मण का जुलूस,सत्संगआयोजित किये जाते हैं | परशुराम जी कीपूजा अर्चना समस्त भारत में होती है | मान्यता के अनुसार भारत केअधिकतर गांव परशुराम जी ने ही बसाए थे | उत्तर भारत से लेकरगोवा,केरलऔर तमिलनाडु तक परशुराम जी की आकर्षक मनमोहक प्रतिमाएं दिखाईदेंगी | सनातन धर्म में परशुराम के बारे मेंमाना जाता है कि वे त्रेतायुग और द्वापरयुग से अमर हैं | परशुराम जी केजन्म के जन्म एवं जन्मस्थान के पीछे कई मान्यताएं एवं अनसुलझे सवाल है | सभी कीअलग अलग राय एवं अलग अलग विश्वास हैं | भार्गव परशुराम कोहाइहाया राज्य,जोकि अब मध्य प्रदेश के महेश्वर नर्मदा नदी के किनारे बसा है, वहाँ का तथा वहींसे परशुराम का जन्म भी माना जाता है | अन्य मान्यता के अनुसार रेणुका तीर्थ पर परशुराम के जन्म के पूर्व जमदग्नि एवंउनकी पत्नी रेणुका ने शिवजी की तपस्या की थी उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी नेवरदान दिया और स्वयं विष्णु ने रेणुका के गर्भ से जमदग्नि के पांचवें पुत्र के रूपमें इस धरती पर जन्म लिया | उन्होंने अपने इस पुत्र का नाम “रामभद्र” रखा |

error: Content is protected !!