आदि काल से लाइफ मैनेजमेंट के सर्वश्रेष्ट गुरु भोले नाथ से जुड़े रोचक रहस्य

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हम सभी आत्म चिंतन करें जब शिवजी के परिवार में विरोधी स्वभाव के प्राणी भी प्रेमपूर्वक साथ साथ प्रेमपूर्वक रहते हैं तो क्यों नहीं हम हमारे समाज एवं देश में बिना किसी भेदभाव के गिरे हुओं को , पिछड़े हुओं को , विभिन्न धर्मों के अनुयायियों को साथ लेकर चल सकते हैं ? यह भी सत्य कि कुछ धर्मांध स्वार्थी पथभ्रष्ट तथाकथित धार्मिक मनुष्य मौका मिलने पर अपने निज स्वार्थ के खातिर समाज में सांप्रदायिक सद्दभाव को नष्ट करने के अंदर शामिल हो जाते है | शिव रात्री के पावन पर्व हम सभी सनातन धर्मी भारत वाशी संकल्प ले कि हम समाज के विभिन्न धर्मालंबी लोगों के साथ मिलजुल कर रहेंगे एक दुसरे का सम्मान करके प्रेम पूर्ण समंध बनायेगें | समाज के अंदर ऊँच नीच का भेदभाव मिटाने के लिये काम करेंगे | आदि काल के सर्व श्रेस्ष्ट मेनेजमेंट गुरु भोलेनाथ अपने परिवार के अंदर निवास करने वाले विपरीत स्वभाव वाले प्राणी बिच्छू , बैल और सिंह , मयूर एवं सर्प और चूहा जैसे घोर विरोधी स्वभाव के प्राणियों के साथ प्रेमपूर्वक रहते हैं तो हम विभिन्न धर्मों के अनुयायियों हिदू मुसलमान सिख ईसाई फ़ारसी जैन देश वासियों को साथ लेकर क्यों नहीं जीवन व्यापन कर सकते हैं ? सही मायने में भगवान शिव की सच्ची पूजा आराधना तभी होगी जब हम उनकी शिक्षाओं को जीवन के अंदर धारण करके मिल जुल कर प्रेमपूर्वक एक परिवार की भातीं रहगें | ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय,ॐ नमः शिवाय |

भोलेनाथ जितने रहस्यमयी हैं उतनी ही उनकी वेश-भूषा भी अनूठी ही है इसी के साथ भोले शंकर से जुड़े तथ्य भी उतने ही विचित्र और अनोखे हैं। भोलेनाथ शिव जी श्मेंमाशन में निवास करते हैं, भोलेनाथ गले में नाग धारण करते हैं, भांग व धतूरा ग्रहण करते हैं। सनातन धर्मी फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी यानी 8 मार्च 2024 को शिवरात्रि धूमधाम से मनाएंगे |

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ही शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ? जनसाधारण के मन में सवाल उत्पन्न होता है कि क्यों फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है ? धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि सृष्टि की रचना इसी दिन हुई थी । मध्य रात्रि में भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था । ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन चतुर्दशी की अर्द्धरात्रि में भगवान शंकर लिंग के रूप में अवतरित हुए । चतुर्दशी तिथि के महानिशीथ काल में महेश्वर के निराकार ब्रह्म स्वरूप प्रतीक शिवलिंग का अविभार्व होने से भी यह तिथि महाशिवरात्रि के नाम से जानी जाती है |इसी दिन, भगवान विष्णु व ब्रह्मा के समक्ष सबसे पहले शिव का अत्यंत प्रकाशवान स्वरूप प्रकट हुआ था । कहा जाता है कि शिवरात्रि के दिन भगवान शिव और आदिशक्ति का विवाह हुआ था। मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान कालकेतु विष निकला था।भगवान शिव ने संपूर्ण ब्रह्मांड की रक्षा के लिए स्वयं ही सारा विष पी लिया था। इससे उनका गला नीला पड़ गया और तभी से शिवजी को नीलकंठ के नाम से जाना जाता है।

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भोले नाथ को सांसारिक होते हुये भी श्मशान का निवासी बोला जाता है इसके पीछे भी लाइफ मैनेजमेंट का महत्वपूर्ण रहस्य छिपा है।
जानिये कैसे ? सच्चाई तो यही है कि संसार मोह-माया का प्रतीक है वहीं दुसरी तरफ श्मशान वैराग्य का प्रतीक है । प्रभु शिव कहते हैं कि आदमी को संसार में रहते हुए अपने कर्तव्य पूरे करने चाहिए वहीं साथ साथ मोह-माया से दूर भी रहना चाहिये। क्योंकि शरीर और संसार दोनों ही नाशवान है। एक न एक दिन यह सब कुछ नष्ट होने वाला है। इसलिए संसार में रहते हुए भी आदमी को किसी से मोह नहीं रखते हुए अपने कर्तव्य पूरे करने के साथ साथ एक बैरागी की तरह जीना चाहिये।

मन के अंदर सवाल उठता है कि शिवलिंग मंदिरों में बाहर क्यों होता है ?
निसंदेह भोले नाथ जन साधारण के देवता हैं, इसीलिए भोलेनाथ वहां रहते हैं जहाँ छोटे बड़े, जवान बुजुर्ग आसानी से पहुंच सके | इसी मान्यता के कारण शिवलिंग को मन्दिरों में बाहर ही स्थापित किया जाता है जिससे बच्चे बूढे जवान जो भी जाए शिवलिंग को छूकर, गले मिल कर या फिर भगवान् के पैरों में पड़कर अपना दुखड़ा सुना कर हल्के हो सकते हैं। | इसी वजह से शिवजी अकेले ही वो देव हैं जो गर्भ गृह में भक्तों को दूर से ही दर्शन देते हैं | शिवजी को भोग लगाने और अर्पण करने के लिए कुछ भी नहीं हो तो भक्त उन्हें पत्ता, फूल, या अंजलि भर के भोले नाथ को खुश कर सकता और उनकी पूजा अर्चना कर सकता है |

आईये जाने भोलेनाथ शिवजी की पूजा-अर्चना में बेलपत्र और जल क्यों चढ़ाया जाता है ?
निसंदेह बेलपत्र भगवान शिव को बेहद प्रिय है और इसलिए शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाए बिना शिव की पूजा को पूर्ण नहीं माना जाती है | बेलपत्र में तीन पत्तियां हैं जिसको लेकर कई तरह की धारणाएं विध्यमान हैं | बेलपत्र में तीन पत्तियां को त्रिदेव (सृजन, पालन और विनाश के देव ब्रह्मा, विष्णु और शिव) माना गया है तो कहीं सत्व, रज और तम गुण का परियाचक माना जाता है | ध्यान देने योग्य बात है कि कहीं बेलपत्र में तीन पतियों को तीन आदि ध्वनियां जिनकी सम्मिलित गूंज से ऊं बनता है का प्रतीक माना गया है | बेलपत्र की इन तीन पत्तियों को महादेव त्रिनेत्र और भोलेनाथ के हथियार त्रिशूल का भी प्रतीक माना जाता है | शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुयी है | समुद्र मंथन के समय जब विष निकला तो भगवान महादेव ने पूरी सृष्टि को बचाने के लिए ही इस विष को पी कर अपने कंठ में धारण कर लिया जिसके के प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया और उनका पूरा शरीर अत्यधिक गर्म हो गया जिसकी वजह से आसपास का वातावरण भी जलने लग | जानने लायक बात है कि बेलपत्र विष के प्रभाव को कम करता है इसलिए सभी देवी देवताओं ने बेलपत्र शिवजी को खिलाना शुरू कर दिया था | बेलपत्र के साथ साथ शिव को शीतल रखने के लिए उन पर जल भी अर्पित करने के पीछे रहस्य यह है कि बेलपत्र और जल के प्रभाव से भोलेनाथ के शरीर में उत्पन्न गर्मी शांत होने लगी और तभी से शिवजी पर जल और बेलपत्र चढ़ाने की प्रथा शुरू हो गई | शिवलिंग पर हमेशा तीन पत्तियों वाला ही अर्पित करना चाहिये एवं बेलपत्र चढ़ाते समय ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करना जरूरी है |

जानिये शिव को महादेव क्यों कहते हैं ?
मनुष्य को बड़ा या महान बनने के लिए त्याग, तपस्या, धीरज, उदारता और सहनशीलता की आवश्यकता होती है। विष को अपने भीतर ही सहेज कर आश्रितों के लिए अमृत देने वाले होने से एवं विरोधों, विषमताओं के मध्य संतुलन रखते हुए अपने विशालकाय परिवार को एक बना रखने की शक्ति रखने वाले शिव ही महादेव हैं।

भांग-धतूरे को भगवान शिवजी पर क्यों चढ़ाया जाता है ?
भोले नाथ को आक,धतूरा, भांग आदि शिव को चढ़ाने की जो परिपाटी है, उसके पीछे यही तथ्य छिपा है कि प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के अंदर अच्छे-बुरे दोनों पहलू होते हैं, इन नशीले और विषाक्त्त पदार्थों को शिव को अर्पित करने का अर्थ हुआ उनके दूवारा शिव-शुभ (औषधीय गुण) को स्वीकार करना किन्तु उनकी अशुभ-व्यसन प्रवर्ती का त्याग कर देना | लाइफ मैनेजमेंट के अनुसार, भगवान शिव को भांग धतूरा चढ़ाने का अर्थ है अपनी बुराइयों को भगवान को समर्पित करना। यानी अगर आप किसी प्रकार का नशा करते हैं तो इसे भगवान को अर्पित करे दें और भविष्य में कभी भी नशीले पदार्थों का सेवन न करने का संकल्प लें। ऐसा करने से भगवान की कृपा आप पर बनी रहेगी और जीवन सुखमय होगा।

शिवजी केवल मृगछाल ही क्यों धारण करते हैं ?
निसंदेह समाज में वो ही व्यक्ति वंदनीय होता हैं जो अपरिग्रही हो जिसके जीवन संसार में शांति स्थापित करने के लिए हो | महावीर स्वामी से हजारों साल पहिले भोलेनाथ ने अपरिग्रही बनने का सन्देश देते हुए खुद के शरीर पर मात्र मृगछाल धारण किया क्योंकि केवल मृगछाल धारण करना अपरिग्रह का ही प्रतीक है | अपरिग्रही वो होता है जो आवश्यकता से अधिक मात्रा मे धन वस्तुओं का संग्रह नहीं करता है | परिग्रह एक प्रकार का पाप है, क्योंकि किसी वस्तु का परिग्रह करने का अर्थ हुआ कि दूसरों को उस वस्तु से वंचित करना | निसंदेह शिव सर्व समाज के सर्वमान्य देवता हैं | शिवरात्रि व्रत मनाने का अधिकार ब्राह्मण से लेकर चंडाल तक सभी को है| भोले बाबा के लिए सब एक समान हैं | भगवान शिव महायोगी भी कहलाते हैं, उन्होंने योग साधना के द्वारा अपने जीवन को पवित्र किया है, वे असीमित गुणों के अक्षय भंडार हैं |

देवों के देव महादेव का वाहन नंदी बैल क्यों ?
जहाँ बैल को खामोश एवं उत्तम चरित्र समर्पण भाव वाला बताया गया है, वहीं दुसरी तरफ बैल बल और शक्ति का भी प्रतीक है। बैल जब क्रोधित होता है तो सिंह से भी भिड़ लेता है। सुमेरियन, बेबीलोनिया, असीरि या और सिंधु घाटी की खुदाई में भी बैल की मूर्ति पाई गई संसार की लगभग सभी प्राचीन सभ्यताओं में बैल को महत्व दिया गया है । निसंदेह भारत में भी बैल खेती के लिए हल में जोते जाने वाला एक महत्वपूर्ण पशु रहा है। जिस तरह गायों में कामधेनु को श्रेष्ठ माना जाता है उसी प्रकार बैलों में नंदी श्रेष्ठ है। यही सभी कारण रहे हैं जिसके कारण भगवान शिव ने बैल को अपना वाहन बनाया। पौराणिक कथा अनुसार शिलाद ऋषि ने शिव की तपस्या के बाद नंदी को पुत्र रूप में पाया था। नंदी को उन्होंने वेद आदि समस्त ग्रन्थों का ज्ञान प्रदान किया। एक दिन शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नाम के दो दिव्य संत पधारे और नंदी ने पिता की आज्ञा से उनकी खुब सेवा की जब वे जाने लगे तो उन्होंने ऋषि को तो लंबी उम्र और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया लेकिन नंदी को नहीं। तब शिलाद ऋषि ने उनसे पूछा कि उन्होंने नंदी को आशीर्वाद क्यों नहीं दिया? तब संतों ने कहा कि नंदी अल्पायु है। यह सुनकर शिलाद ऋषि चिंतित हो गए। पिता की चिंता को नंदी ने भांप कर पूछा क्या बात है तो पिता ने कहा कि तुम्हारी अल्पायु के बारे में संत कह गए हैं इसीलिए चिंतित हूं। यह सुनकर नंदी हंसने लगा और कहने लगा कि आपने मुझे भगवान शिव की कृपा से पाया है तो मेरी उम्र की रक्षा भी वहीं करेंगे आप क्यों नाहक चिंता करते हैं। इतना कहते ही नंदी भुवन नदी के किनारे शिव की तपस्या करने के लिए चले गए। कठोर तप के बाद शिवजी प्रकट हुए और कहा वरदान मांगों वत्स। तब नंदी के कहा कि मैं जिंदगी भर आपके ही सानिध्य में रहना चाहता हूं। नंदी के समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और उन्हें बैल का चेहरा देकर उसको अपने वाहन, अपना दोस्त, अपने गणों में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया।

शिवजी के परिवार में जब बिच्छू , बैल और सिंह , मयूर एवं सर्प और चूहा जैसे घोर विरोधी स्वभाव के प्राणी भी प्रेमपूर्वक साथ साथ प्रेमपूर्वक रहते हैं तो क्यों नहीं हम हमारे समाज एवं देश में बिना किसी भेदभाव के गिरे हुओं को , पिछड़े हुओं को , विभिन्न धर्मों के अनुयायियों को साथ लेकर नहीं चल सकते हैं ? यह भी सत्य कि कुछ धर्मांध स्वार्थी पथभ्रष्ट तथाकथित धार्मिक इन्सान मौका मिलने पर अपने निज स्वार्थ के खातिर समाज में सांप्रदायिक सद्दभाव को नष्ट करने के अंदर शामिल हो जाते है | हम सभी आत्म चिंतन करें जब शिवजी के परिवार में विरोधी स्वभाव के प्राणी भी प्रेमपूर्वक साथ साथ प्रेमपूर्वक रहते हैं तो क्यों नहीं हम हमारे समाज एवं देश में बिना किसी भेदभाव के गिरे हुओं को , पिछड़े हुओं को , विभिन्न धर्मों के अनुयायियों को साथ लेकर चल सकते हैं ? यह भी सत्य कि कुछ धर्मांध स्वार्थी पथभ्रष्ट तथाकथित धार्मिक मनुष्य मौका मिलने पर अपने निज स्वार्थ के खातिर समाज में सांप्रदायिक सद्दभाव को नष्ट करने के अंदर शामिल हो जाते है | शिव रात्री के पावन पर्व हम सभी सनातन धर्मी भारत वाशी संकल्प ले कि हम समाज के विभिन्न धर्मालंबी लोगों के साथ मिलजुल कर रहेंगे एक दुसरे का सम्मान करके प्रेम पूर्ण समंध बनायेगें | समाज के अंदर ऊँच नीच का भेदभाव मिटाने के लिये काम करेंगे | आदि काल के सर्व श्रेस्ष्ट मेनेजमेंट गुरु भोलेनाथ अपने परिवार के अंदर निवास करने वाले विपरीत स्वभाव वाले प्राणी बिच्छू , बैल और सिंह , मयूर एवं सर्प और चूहा जैसे घोर विरोधी स्वभाव के प्राणियों के साथ प्रेमपूर्वक रहते हैं तो हम विभिन्न धर्मों के अनुयायियों हिदू मुसलमान सिख ईसाई फ़ारसी जैन देश वासियों को साथ लेकर क्यों नहीं जीवन व्यापन कर सकते हैं ? सही मायने में भगवान शिव की सच्ची पूजा आराधना तभी होगी जब हम उनकी शिक्षाओं को जीवन के अंदर धारण करके मिल जुल कर प्रेमपूर्वक एक परिवार की भातीं रहगें | ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय,ॐ नमः शिवाय |

डा. जे. के. गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर

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