यादगार बन गया ख्वाजा साहब की जिंदगी का सफर

Dargaah 24 thumbहजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का दुनिया के अध्यात्मिक सिंह पुरुषों में बहुत ऊंचा स्थान है। खासतौर पर सूफी सिलसिले में तो सर्वाधिक ऊंचाई पर हैं। उनके प्रति हर मजहब व जाति के लोगों में कितनी श्रद्धा है, इसका अंदाजा यहां हर साल जुटने वाले उर्स मेले से लगाया जा सकता है। यूं इस मुकद्दस मुकाम पर मत्था टेकने वालों का सैलाब सालभर उमड़ता रहता है।
ख्वाजा साहब का जन्म हिजरी वर्ष 530 यानि 1135 ईस्वी में असफहान में हुआ। आपके वालिद का नाम ख्वाजा गयासुद्दीन और वालिदा का नाम बीबी माहेनूर था। उनकी वालिदा अब्दुल्ला हम्बली के बेटे दाऊद की बेटी थीं। बचपन से ही ख्वाजा साहब में रूहानी गुण मौजूद थे। महज नौ साल की उम्र में ही वे पूरी कुरान एक सांस में सुना देते थे। इतनी कम उम्र में वे हदीस (रसूल वाणी) और फिका (इस्लामिक न्याय शास्त्र) पढऩे लग गए थे। जब ख्वाजा साहब सिर्फ 15 साल के थे, तभी उनके वालिद का बगदाद में इंतकाल हो गया। वालिद के इंतकाल के बाद जब घर की संपत्ति का बंटवारा हुआ तो उनके हिस्से में एक चक्की और एक बगीचा आया। हजरत इब्राहिम कंदोजी से मुलाकात ने उनके जीवन में एक नया मोड़ लेकर आया। ख्वाजा साहब ने उन्हें अंगूरों का एक गुच्छा भेंट किया तो वे दरवेश बहुत खुश हुए और उन्होंने खल की टिकिया चबा कर ख्वाजा साहब को दी। जैसे ही वह टिकिया ख्वाजा साहब ने उसे लिया, उनका इस संसार से मोह भंग हो गया। उन्होंने चक्की और बगीचा बेच दिया। इसके बाद वे खुरसान चले गए। समरकंट व घुटसारा पहुंच कर उन्होंने किताबी ज्ञान हासिल किया। बीस साल तक वे पढ़ाई करते रहे। इसके बाद ईरान से अरब और वहां से हारुन पहुंचे। वहां लौटते हुए वे बगदाद भी ठहरे। उन्होंने सीरिया, किमरान, हमदान, तेहरान, खुरासान, मेमना, हेरात व मुल्तान का सफर किया और लाहौर भी गए।
जियारत हरमैन शरीफेन- 582 ईस्वी में आपने अपने पीरो मुरशद के साथ मक्के मोअज्जमा में हाजिरी दी। एक रात आखिरी पहर में हजरत ख्वाजा उस्माने हारुनी ने आपको बारगाहे इलाही में पेश किया और खाना-ए-काबा का पर्दा औढ़ा कर अर्ज की कि या अल्लाह, मोइनुद्दीन को कुबूल फरमा लो। दुआ फौरन कुबूल हुई और आवाज आई- मोइनुद्दीन मकबूले बारगाह। इसके बाद आपने मदीने तैयबा में हाजिरी दी और नबी-ए-कबीस की बारगाह में सलाम पेश किया। वहां से जवाब आया- वअयलकुलम अस्सलाम या कुतबल मशईख यानि ऐ फरजंद मोइनुद्दीन, हमने तुम्हें हिंद की विलादत अता की।
खिलाफत- ख्वाजा साहब ने हारून के हजरत ख्वाजा उस्मान से दीक्षा ली। उन्होंने ही ख्वाजा साहब को अपना सज्जादानशीन मुकर्रर किया और पैगंबर साहब के पवित्र अवशेष उन्हें सुपुर्द कर दिए।
सफरे हिंदुस्तान- पैगंबर मोहम्मद साहब का आदेश पा कर आप हिजरी 587 यानि 1191 ईस्वी में अजमेर आए। कुछ अरसा यहां रहने के बाद आप गजनी के लिए रवाना हो गए। वहां कुछ समय रहने के बाद वापस अजमेर आ गए। अजमेर से वे एक बार बगदाद भी गए। रास्ते में वे बाल्ख में ठहरे, जहां सुप्रसिद्ध दार्शनिक मौलाना जियाउद्दीन उनके शिष्य बने। वापस लौटते हुए वे गजनी, लाहौर व दिल्ली से खुरसान पहुंचे। वहां से 610 हिजरी यानि 1213 ईस्वी में अजमेर आए।
निकाह- अस्सी साल की उम्र में आपने दो निकाह किए। उनकी पहली बीवी का नाम जौजा-ए-मोहतरमा हजरत बीवी अमतुल्लाह और दूसरी का नाम हजरत बीवी हसमतुल्लाह था।
औलाद अमजाद- हजरत ख्वाजा फखरुद्दीन चिश्ती आपके फरजंदे अकबर हुए, जिनकी दरगाह अजमेर शरीफ से साठ किलोमीटर दूर सरवाड़ शरीफ में है। मंझले साहबजादे ख्वाजा हिसामुद्दीन चिश्ती थे। उनके मुतल्लिक मशहूर है कि मर्दाने गैब में शामिल हो कर अबदाल के मर्तबे पर फाइज हुए। हजरत ख्वाजा जियाउद्दीन अबू सईद चिश्ती आपके सबसे छोटे फरजंद थे। आपका मजारे मुबारक दरगाह शरीफ के शाही घाट पर जियरतगाह खासो आम है। ख्वाजा साहब की इकलौती बेटी थी हजरत बीबी हाफिज जमाल। आप पैदाइशी कुराम हाफिज थीं। कमसनी में ही आपने हिफज कर लिया। आप का मनसून हजरत शेख रजीउद्दीन से हुआ। साहबजादी साहेबा का मजार शरीफ हजरते ख्वाजा गरीब नवाज के पांयती आस्ताना-ए-मुकारक के करीब है। ख्वाजा-ए-बुजुर्ग के पोते व हजरत ख्वाजा फखरुद्दीन के फरजंद थे हजरत ख्वाजा हिसामुद्दीन जिगर सोख्ता। उनकी मजार अजमेर से तकरीबन नब्बे किलोमीटर दूर सांभर में है।
खुलफा-ए-इकराम- ख्वाजा साहब के बहुत से खलीफा हुए, जिन्होंने अनेक इलाकों में गुलशन चिश्त के फूल महकाए, लेकिन खिलाफत हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी को मिली। आपका अस्ताना दिल्ली-महरोली में कुतुबमीनार के करीब है। आपके दूसरे खलीफा हुए सुल्तानुल तारकीन हजरत सूफी हमीदुद्दीन नागौरी, जिनकी दरगाह नागौर में है।
विसाल- हजरत ख्वाजा गरीब नवाज का विसाल 97 साल की उम्र में हिजरी 633 रजबुल मुर्जब 6 को हुआ। वावक्त विसाल आपकी पेशानी पर लिखा था- हाजा हबीबुल्लाह माता फी कुतुबुल्लाह यानि अल्लाह का हबीब अल्लाह की मोहब्बत में जांबाहक हुआ।

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