पेंडुलम बना हे भाजपा कार्यकर्ता

सिद्धार्थ जैन
सिद्धार्थ जैन
मेरे कॉलेजियेट साथी और अब भाजपा अजमेर देहात जिला अध्यक्ष ने हाल ही ब्यावर में सम्पन्न जिला कार्य समिति की बैठक में जोरदार घोषणा कर दी। *आगामी विधानसभा व लोकसभा चुनावों में वे टिकिट नही “मांगेंगे”! साथ ही उन्होंने कार्यकर्ताओं को भी ऐसी ही नसीहत दी।* ये जिलाध्यक्ष ही नही आमतौर पर सभी नेता गाहे-बजाए कार्यकर्ताओ से ऐसा ही आव्हान करते हे। अब वर्तमान परिपेक्ष में इनकी कथनी और करनी में भारी अंतर देखा जा सकता हे। जो नेता गण ऐसी ऊंची-ऊंची बाते करते नही थकते वे ही चुनावी मौसम में पर्यवेक्षक बनाकर जिलो में भेजे जाते हे। तब कार्यकर्ता वहां पहुंचकर उनके दरबार मेंअपना पक्ष नही रखेगा तो और क्या करेगा…? *टिकिट नही मांगेगा तो पता केसे चलेगा कि चुनावी समर में उतरने के लिए कौन कौन तैयार हे…!!* हाँ…! यह जरुर हे। बड़े नेताओ को टिकिट नही माँगना पड़ता हे। *उदाहरण तो तब पेश किया जा सकता हे कि जब ऐसे नेता यह घोषणा करे कि वे टिकिट “लेंगे ही नही”।*
जनसंघ जनतापार्टी और फिर अब भारतीय जनता पार्टी। समय के साथ इस वैतरणी में खूब पानी बह गया हे। अलग अलग पानी के स्वाद ने कार्यकर्ताओं में कई बदलाव भी किये हे। *समर्पित कार्यकर्ताओं की जगह चापलूसो ने अपना कब्जा जमा लिया हे। ऐसे लोग हे गिनती के ही। फिर भी पार्टी पर वे ही हावी हे।* नेतागण भी चापलूसी पसन्द हो चले। संगठन में आज भी अनेको नेता ऐसे भी बचे हुए हे जो यह सब पसन्द नही करते। वे हासिये पर होते जा रहे हे। पार्टी में आया राम गया राम का बोलबाला बढ़ रहा हे। ये उन स्टेट में ज्यादा हे जहाँ भाजपा रेस के अंतिम पायदान पर खड़ी हे। बहाना यह होता हे कि सत्ता हासिल करनी हे। कही हो भी गई हे। *लेकिन यह अभी भविष्य के गर्भ में छुपा हे कि आने वाले समय में वे उधार की बेशाखियाँ भाजपा के लिए कितनी कारगर सिद्ध होगी…!* कहावत भी हे कि पूत जेसा भी हो समय पर अपना ही काम आता हे। गोद लिए का क्या भरोसा…?
पार्टी को केन्द्र में कई बरसों बाद कुशल नेतृत्व मिला हे। राज्यों में आने वाले चुनावी समर में उसी के नाम की कमाई से फायदा मिलने की थोड़ी बहुत आशा हे। राज्यों ने पिछली बार उसका ही भरपूर स्वाद चखा भी हे। *मेरा पत्रकारिता नजरिया से यह मानना हे कि पार्टी फिर से उसी हथियार को आजमाने पर विवश होगी। कार्यकर्ताओ में फिर से मोदी के नाम का मन्त्र फूंक कर जोश भरने का काम किया जाएगा।* इसके बिना पार्टी की कोई गत नही। हां…कोई राज्य अपवाद भी हो सकते हे। जहां का कुशल नेतृत्व भी सोने में सुहागा का काम कर जाए। इस सब के पीछे आखिर ताकत होती किसकी हे? यह कार्यकर्ता ही हे जो हरबार अपना खून-पसीना एक करता हे। फिर बार-बार छला भी वही जाता हे।
मेरा भी मानना हे कि कार्यकर्ता टिकिट नही मांगे। इसके लिए दर-दर भटकना कार्यकर्ता की बेइज्जती हे। लेकिन क्या पार्टी इस कदर ऊँचे माप दण्ड पर हे कि वो ऐसे कार्यकर्ताओं को ढूंढ़-ढूंढ़ कर घर बेठे टिकिट से नवाजे…! *जनसंघ का वो जमाना गया जबकि हाईकमान टिकिट तय करने का काम लोकल वरिष्ठ नेताओं पर छोड़ देता। उस समय तो कार्यकर्ता पार्टी की साख बचाने ही खड़ा होता था। उसका यह संकल्प जरुर होता कि जमानत बच जावे। आज संकल्प केवल और केवल आने वाली पीढियों को तर कर लेने का ही होता जा रहा हे।* यह सब देख ही रहे हे। ऐसे में इन नेताओं के टिकिट नही मांगने का नारा बेमानी हो जाता हे। इनको तो अब निर्णय यह लेना चाहिए। *जो एकाधिक बार विधायक-सांसद अथवा अन्य लाभ के पदों पर रह गये। वे हाथ पानी ले ले। अगली बार कही से चुनाव ही नही लड़ेंगे। वे संगठन का ही काम करेंगे। हे ऐसा माद्दा किसी नेता में…!* नही तो कार्यकर्ताओ को अब नसीहते देना तो बन्द कर दे। कार्यकर्ता तो घड़ी का वो पेंडुलम हे जो इन नेताओं के बीच ही डोलता रहता हे।
*सिद्धार्थ जैन पत्रकार, ब्यावर (राजस्थान)*
*094139 48333*

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