सांवरलाल जाट को बत्ती का मोह नहीं, बल्कि जाट के कद को देखते हुए बत्ती देना सरकार की मजबूरी

sanwar lal jat 7एम. इमरान टांक
अजमेर सासंद सांवरलाल जाट को किसान आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है! यानि अब उन्हें कैबिनेट स्तर की सुविधाएं मिलेगी! इसके लिए लम्बा प्रोसिजऱ फॉलो हुआ! बाकायदा़ जाट को अध्यक्ष बनाने के लिए राजस्थान सरकार ने संसदीय समिति को प्रस्ताव बनाकर भेजा! फिर संसद के 14 सांसदो वाली कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने मंजूरी दी! गौरतलब है कि ये देश का ऐसा पहला मामला है! अब सवाल, ऐसा क्यों किया गया ? जवाब सब जानते है! जाट जिले के पहले नेता है जिनकी आमजन में पकड़ है! जिले के सभी विधानसभा क्षेत्रों में उनकी दख़ल है! भाजपा के बैनर पर जितना उनका कद बढा, उससे कई ज्यादा उन्होंने पार्टी के लिए किया है! इसकी बानगी है कि कई बार विधायक और मंत्री बन चुके जाट को राजस्थान में कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद अजमेर से कांग्रेस के सचिन पायलट के सामने लोकसभा का टिकट दिया गया! ये साफ़ कुर्बानी थी, जो आम आदमी को भी नज़र आ रही थी! लोकसभा चुनाव में यदि जाट हार जाते तो उनके प्रभाव और कद पर भी उंगलियां उठती! मतलब जाट की राजनैतिक मौत तो लोकसभा का टिकट मिलते ही तय हो गई थी! हारे तो गड़बड़ और जीते तो गड़बड़! लेकिन जाट सचिन पायलट को हराकर भारी बहुमत के साथ जीते! उनके कद, त्याग या प्रेशर! जो मानों उन्हें केन्द्र में मंत्री बनाया गया! लेकिन स्वास्थ्य कारणों से वे केन्द्रीय मंत्रिमंडल से बाहर हुए! ऐसे में यदि उन्हें प्रदेश में किसान आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है तो इसे उनका राजनैतिक मौह या लाल बत्ती की चाह नहीं कहा जा सकता है! कई जगह पढ रहा हूं कि सरकार पर उनके जाट होने के दबाव के चलते किसान आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है! इस पर अपनी राय जुदा है! मेरा मानना है कि जाट जिले के सर्वमान्य नेता है! वे भिनाय के अलावा नसीराबाद और अजमेर से चुनाव लड़कर विधानसभा-लोकसभा पहुंचे, जहां सभी कौमों का अभूतपूर्व समर्थन उन्हें मिला! तो कैसे माना जाए कि वो मात्र जाट समाज के नेता है ? वे जनप्रिय नेता है! और हां! उनके बारें में एक कहावत मशहूर है कि ” किसी की भैंस भी मर जाए तो वे ढांढस बंधाने ” जाते हैं! ये कहावत उन्हीं पर क्यों बनी ? अगर वे जाट नेता होते तो ये कहावत कुछ यूं होती कि “किसी जाट की भैंस भी मर जाए तो वे ढांढस बंधाने ” पहूंचते है! मतलब उन्हें जातीय नेता बताना या जाटों को खुश करने के लिए प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाने की बात बेमानी है! वे तो छत्तीस कौमों के नेता है! उनके कद उनकी लोकप्रियता को देखते हुए राजस्थान सरकार की सिफारिश पर केन्द्र सरकार ने उन्हें अध्यक्ष पद की मंजूरी दी है! एक बात और, जिनका राजनैतिक कद होता है उन्हीं की नाराज़गी का असर होता है!

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