नाकामियों के ढेर पर बैठी है अजमेर पुलिस…

पहले कुछ उदाहरण। संभवत: आप लोग पहली बार पढ़ रहे हों। पुराने और जानकारों को हो सकता है याद हो।

प्रताप सनकत
प्रताप सनकत
1. सुनीता जिंदा है तो फिर वो कौन थी?
एक शाम की बात है। मेरे साथी सचिन मुदगल ने कि भाई साहब एक व्यक्ति सुबह से परेशान कर रहा है। मेरे परिचित हैं। मैंने पूछा क्या कह रहे हैं। सचिन ने बताया कि वो यह कह रहा है कि पिछले दिनों मांगलियावास थाना इलाके में जिस लड़की की लाश मिली थी, जिसकी पुलिस ने सुनिता के रूप में पहचान करवाई थी वो जिंदा है। मैं उछल पड़ा। पिछले कई दिनों से यह मामला अखबारों की सुर्खियां बना हुआ था। मैंने सचिन को कहा-यह आज की सबसे बड़ी खबर है बेटा। सारे काम छोड़ दो। बुलाओ उस व्यक्ति को। वो सज्जन ऊपर आए। उन्होंने विस्तार से बताया कि सुनिता कैसे जिंदा है और अभी कहां है। तब डॉ. इंदुशेखर पंचौलीजी हमारे संपादक थे। उनके आते ही उन्हें विस्तार से इसकी जानकारी दी। फिर शुरु हुआ मिशन सुनीता। सचिन उन दिनों पत्रकारिता में नए नए आए ही थे। लेकिन हमने उन्हें पूरी आजादी थी। वरिष्ठ पत्रकार अरविंद गर्ग के नेतृत्व में सचिन, विवेक शर्मा ने उस रात जो काम किया जिस लगन से काम किया वो अतुलनीय है। डॉ. पंचौली और मेरे सामने एक बड़ा सवाल यही था कि क्या इस स्टोरी को हम सिर्फ दैनिक भास्कर में ही अखबार छपने तक गोपनीय रख पाएंगे। हम यह भी जानते थे कि जैसे ही इस बारे में पुलिस से बात की जाएगी पुलिस अपनी नाकामी को छिपाने में पूरी ताकत लगा देगी। जो सुनिता जिंदा थी वो जयपुर में नारीशाला में थी। देर रात्रि को जयपुर स्थित हमारे फोटोग्राफर से पंचौलीजीे सुनिता की तस्वीर नारीशाला जाकर खिंचवाकर मंगवा ली। कड़ाके की ठंड में अरविंद गर्ग और सचिन मुदगल सुनिता के पिताजी के घर बरामदे में चारपाई डालकर चौकीदारी पर बैठ गए। जैसे ही पुलिस से सुनिता के बारे में बात की गई दस मिनिट बाद ही हमारी आशंका के मुताबिक पुलिस की एक टीम सुनिता के पिता के घर जा पहुंची। वहां अरविंद गर्ग पहले से ही तैनात थे। उन्होंने पुलिस को चलता किया। सावधानी के तौर पर सुनिता के पिता और उसकी भाभी व परिवार के अन्य लोगों को रात्रि को ही भास्कर की टीम हमारे साथी विवेक शर्मा के घर ले गई। इस खबर में पूरी टीम जुटी। पंचौलीजी मेरे पास आए। बोले क्रेडिट लाइन किसे देनी है। मैंने तुरंत सचिन मुदगल का नाम खबर पर लिख दिया। सिर्फ भास्कर में यह खबर इसी हैडिंग से छपी कि सुनिता जिंदा है तो फिर वो कौन थी। अगले दिन सचिन को सुनिता के पिता के साथ जयपुर नारीशाला भेजा गया। वहां पीयूसीएल की कविता भटनागर अपने पूरे लश्कर के साथ आ धमकी। वहां विवाद भी हुआ। इस एक खबर पर दैनिक भास्कर के करीब पांच हजार रुपए खर्च हो गए।
जिस दिन सचिन को सूचना मिली उसी दिन दोपहर में संयोगवश मैं एसपी दफ्तर स्थित पुलिस की डीएसबी शाखा में प्रभारी इंस्पेक्टर सुरेंद्र भाटी जी से मिलने गया था। वहां तीन युवकों को बिठा रखा था। मांगलियावास के तत्कालीन थानाप्रभारी हरिराम उन्हें वहां लाए थे। इन तीनों को पुलिस सुनिता की हत्या के इल्जाम में गिरफ्तार करने वाली थी। संयोग से उस दिन एसपी नहीं थे, लिहाजा गिरफ्तारी की घोषणा रुक गई। सुनीता वाली खबर में यह तथ्य भी हमने लिखा कि पुलिस तीन युवकों को गिरफ्तार करने वाली है। जिस शीर्षक से यह खबर लिखी गई थी वो शीर्षक आज भी कायम है। सुनीता जिंदा है तो फिर वो कौन थी? जिस लड़की की लाश मिली थी उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था, बाद में उसे मार कर झाड़ियों में फैंक दिया गया। दरगाह थाने में तैनात एक सिपाही ने सुनिता के पिता काे यह समझाया कि लड़की सुनिता जैसी लगती है। वो मना करते रहे लेकिन शिनाख्त करवा कर अंतिम संस्कार कर दिया गया। सुनिता उन्हीें दिनों किसी कारणवश नारीशाला भेज दी गई। नारीशाला से ही सुनिता के जिंदा होने की सूचना घरवालों को मिली।

2.आतंकी को थाने में साइनाइड कौन दे गया?
पंजाब पुलिस की एक स्पेशल टीम ने एक कुख्यात सिख आतंकवादी को किशनगढ़ के नजदीक धर दबोचा। हाईवे पर गैगल थाना नजदीक था लिहाजा पंजाब पुलिस उसे लेकर गैगल थाने आ पहुंची। तत्काल डीआईजी, एसपी को सूचित किया गया। सरकार में गृहमंत्री और मुख्यमंत्री को भी तत्काल यह बड़ी जानकारी दी गई। आतंकी से हथियार भी मिले थे। पंजाब पुलिस के लिए यह एक बड़ी सफलता थी। तब पंजाब में आतंक चरम पर था। जिसे पकड़ा गया वो पंजाब में आतंकवादियों की एक बड़ी कड़ी का बड़ा खुलासा कर सकता था। लिहाजा गैगल थाने में उसे कड़ी सुरक्षा में रखा गया। और एक दिन वो हो गया जिसे हम अक्सर जासूसी नॉवेल में पढ़ते हैं या जेम्स बांड की फिल्मों में देखते हैं। एक दिन पंजाब की नंबर प्लेट वाली गाड़ी में डीआईजी स्तर का एक अधिकारी अजमेर के सबसे बड़े पुलिस अफसर के दफ्तर पहुंचा और आतंकी से पूछताछ की इच्छा जताई। चूंकि सबकुछ अत्यंत गोपनीयता से चल रहा था इसीलिए बड़े अफसर ने एक पर्ची पर गैगल थाना पुलिस को लिखकर दिया कि इन्हें आतंकी से पूछताछ करने दी जाए। आतंकी को थाने में पूरी तरह नंगा रखा गया था। पुलिस को डर था कि वो अपने शरीर पर पहने कपड़ों से ही फंदा बनाकर आत्महत्या ना कर ले। नित्यक्रियाओं के लिए भी पुलिस जवान तैनात रखे जाते थे। पंजाब पुलिस ने हिरासत में लेते समय ही उसकी अच्छी तरह से तलाशी ले ली थी। यही नहीं उसके जबड़े की इस बात के लिए खासी जांच की गई थी कि किसी दांत में साइनाइड का कैपस्यूल तो नहीं छिपा रखा है। ऐसा इसलिए किया क्योंकि तब कई आतंकी पकड़े जाने के बाद साइनाइड के कैपस्यूल खाकर आत्महत्या कर चुके थे। पंजाब पुलिस का कथित डीआईजी थाने पहुंचा। आतंकी से पूछताछ की और चला गया। उसके जाने के दस मिनिट बाद ही आतंकी की मौत हो गई। उसने साइनाइड खा लिया था। बाद में पुलिस ने पंजाब संपर्क किया तो यह तथ्य सामने आया कि पंजाब से किसी भी डीआईजी को पूछताछ के लिए अजमेर भेजा ही नहीं गया था। अजमेर के आला अफसरों की आंख में धूल झोंककर आतंकवादियों का कोई साथी अजमेर आया और अपना काम करके चला गया। वो कौन था? पुलिस आज तक यह पता नहीं लगा सकी है।

3. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की एक टीम कई दिनों से एक बड़े ड्रग माफिया को पकड़ने के लिए जाल फैलाए बैठी थी। कड़ी मेहनत के बाद आखिरकार ब्यूरो की टीम ने मांगलियावास थाना के पास एक स्कॉर्पियो को रुकवाया और थाने ले आई। लेकिन कुछ मिला नहीं। ब्यूरो को लगा कहीं गलती तो नहीं कर दी। लेकिन तय किया गया कि स्कॉर्पियो की गहन तलाशी ली जाएगी। मिस्त्री को बुलवाया गया। और फिर मला स्मैक का जखीरा। कार के दरवाजों के चारों पैनल बोर्ड, छत में करीब 25 किलो स्मैक मिली। तब इसकी कीमत 25 करोड़ आंकी गई। इस स्कॉर्पियो का एनसीबी पंजाब से ही पीछा करती आ रही थी। दरअसल एनसीबी को शक था कि तस्कर जैसलमेर या पुष्कर में इसे खपाएंगे क्योंकि इन दोनों जगहों पर विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में आते हैं। जैसलमेर में स्मैक नहीं निकल पाई तो तस्कर पुष्कर की ओर आ गए। यहां वे कुछ देर रुके और फिर पीसांगन के रास्ते मांगलियावास की ओर निकल गए जहां एनसीबी ने धर दबोचा। खैर यह बड़ी कार्रवाई थी। मांगलियावास थाने में मामला दर्ज हुआ।…और एक दिन वो हुआ जो किसी भी पुलिस दल के लिए शर्मनाक है। अजमेर में पेशी के दौरान तस्करों ने आयकर विभाग वाले गेट के सामने पुलिस की आखों में मिर्ची झौंकी। उनके साथी मौजूद थे। वे तस्करों को गाड़ी में बिठाकर फरार हो गए। कहां गए, पता नहीं चला।
ये उदाहरण इसलिए कि इन दिनों आए दिन चेन स्नैचिंग, घरों में घुसकर जेवरात छीनकर भागने, दिन दहाड़े बड़ी संख्या में चोरी की घटनाएं हो रही हैं। पुलिस का पूरा नेटवर्क दो कामों में लगा हुआ है।

एक- दिन भर अफसरों की बेगारी और उनके खर्चों को पूरा करने की जुगाड़ में
2.जुआ, सट्‌टा, अवैध शराब के कारोबार को शांति से चलाए रखने में।
लिहाजा ये चीजें अब लगभग नहीं के बराबर रह गई हैं।
एक-पुलिस का अपना सूचना तंत्र जिसे मुखबिर तंत्र भी कहते हैं।

दो-अपराधियों में खौफ

तीन-जो मामले दर्ज हो रहे हैं उनमें प्रभावी पैरवी।

चार- प्रिवेंशन या अपराध होने की संभावनाओं को देखते हुए रोकथाम कार्रवाई।
अभी भी वक्त है। पुलिस शुरुआत कर सकती है। रास्ता मैं बता देता हूं। हर थाने को यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य करना ही होगा कि उनके इलाके में कोई बिना पुलिस वैरीफिकेशन के किराएदार के रूप में रह तो नहीं रहा है। यह एक काम पुलिस को अपराधों की रोकथाम में 50 फीसदी सफलता दिलाएगा ही। शक हो तो आजमा कर देख लीजिए।

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