अजमेर नगर निगम के मेयर धर्मेन्द्र गहलोत ने पुष्कर रोड पर करन्ट बालाजी मंदिर को जिस युक्तिपूर्ण ढंग से शांतिपूर्वक हटवा दिया, उसके लिए वे वाकई साधुवाद के पात्र हैं। उनकी जितनी तारीफ की जाए, कम है। हो भी रही है। मगर तस्वीर का दूसरा पहलु ये है कि ऐसा अतिक्रमण, ऐसे अतिक्रमण को हटाने का माद्दा केवल उसका विरोध करने वाले ही प्रदर्शित कर सकते हैं। ऐसे में एक सवाल यह उठता है कि क्या वे कांग्रेस के मेयर होते तो उन्हें भाजपा या हिंदूवादी मंदिर को हटाने देते? कदापि नहीं।
यह सही है कि गहलोत ने बड़ी ही चतुराई से हार्डकोर हिंदुवादियों, पार्षदों व भक्तों से समझा कर मंदिर की मूर्ति को अन्यत्र हस्तांतरित करवा दिया। कदाचित कोई और भाजपाई मेयर होता तो नहीं कर पाता। यह सच्चाई है कि ऐसी समझाइश वे इसी कारण कर पाए, चूंकि वे एक सशक्त मेयर हैं, उन पर शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी का वरदहस्त है और राज्य व केन्द्र में भाजपा की सरकार है।
अब जब कि उन्होंने अपनी बहादुरी और बुद्धिमत्ता का एक नायाब उदाहरण पेश कर स्मार्ट होने जा रहे शहर में एक बड़ा काम किया है, तो यह भी अपेक्षा की जा रही है कि वे क्रिश्चियनगंज में मुख्य वैशालीनगर मार्ग, जिसे कि गौरव पथ कहा जाता है, वहां सड़क के बीचोंबीच स्थित शिव मंदिर सहित अन्य मंदिर व मजारों को हटवाने में भी अहम भूमिका निभाएंगे। हो सकता है कि उन्हें आगे भी कामयाबी मिले, मगर जरा पीछे मुड़ कर देखें कि जब गौरव पथ बन रहा था और शिव मंदिर को आनासागर किनारे शिफ्ट करने का प्रस्ताव था तो उन्हीं के विचारधारा वाले आड़े आ गए थे। कितना बवाल हुआ था, सबको पता है। नतीजा ये है कि मंदिर को सड़क के बीच में ही रख कर गौरव पथ बनाया गया। वह आज तक यातायात के लिए एक बड़ी समस्या बना हुआ है। कई बार दुर्घनाएं हो चुकी हैं।
बहरहाल, शहर वासियों केलिए अच्छा है कि नगर निगम पर भाजपा का कब्जा है, गहलोत जैसा चतुर राजनीतिज्ञ मेयर है, तो यातायात में बाधक बने अन्य धर्मस्थलों को हटवाने की उम्मीद की जा सकती है। यदि ऐसे अतिक्रमणों को आस्था के नाम पर नहीं हटने देने वाले ही तय कर लें कि इन्हें हटना चाहिए तो कोई भी दिक्कत नहीं है। कांग्रेसी तो विरोध करने से रहे।