सोशल मीडिया पर हुई हामिद अंसारी की जम कर मजम्मत

obama ansariगणतंत्र दिवस पर राजधानी दिल्ली में आयोजित मुख्य समारोह में गार्ड ऑफ ऑनर के दौरान सैल्यूट नहीं करने को लेकर उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की सोशल मीडिया पर जम कर मजम्मत हुई। कई हिंदूवादियों ने तो बाकायदा निशाना बना कर उनकी राष्ट्र भक्ति पर सवाल उठाए। कुछ लोगों ने गंदे अल्फाज का प्रयोग किया, जिनमें सांप्रदायिकता की बू आ रही थी। इससे पूर्व एक समारोह में आरती की थाली न लेने का मसला भी फिर से प्रकाश में ला गया। मामले ने राजनीतिक रंग भी लिया। जहां भाजपाई अंसारी की निंदा कर रहे थे, वहीं कांग्रेसी उनका बचाव करते नजर आए। दिन भर फेसबुक व वाट्स ऐप पर बहस होती रही। एक मुस्लिम होने के नाते कीजा रही मजम्मत से कुछ मुस्लिम आहत हुए और प्रतिक्रिया दी तो उन्हें हिंदूवादियों ने घेर लिया। वायरल हुए एक फोटो में तो बाकायदा सेना के कुत्तों को सलामी की मुद्रा में दिखाते हुए मूल फोटो जोड़ा गया, ताकि यह जाहिर हो कि सैल्यूट न करने वालों से तो कुत्ते ही बेहतर, जिनमें कि देशभक्ति मौजूद है। हालांकि सैल्यूट न करने वाले अमरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की भी आलोचना की गई, पर अंसारी की छीछालेदर बहुत ज्यादा हुई। जाहिर तौर पर बात सरकार तक भी गई। इस पर उपराष्ट्रपति की ओर से सफाई पेश की गई कि उन्होंने सैल्यूट न दे कर कुछ गलत नहीं किया है।
असल में अंसारी के खिलाफ जो कुछ लिखा गया, वह इतना गंदा है कि उसे यहां उल्लेखित करना संभव नहीं है। सोशल मीडिया पर चूंकि किसी का नियंत्रण नहीं है, इस कारण वहां घटिया से घटिया तरीके से भड़ास निकाली गई, मगर यहां उसका हूबहू उल्लेख किया जाना संभव नहीं है। बस इतना ही कहा जा सकता है कि सैल्यूट न करने के कृत्य को उनके मुसलमान होने से जोड़ा गया, जो स्वाभाविक रूप से यह जाहिर करता है कि अब हिंदूवाद पूरी उफान पर है। अहम सवाल सिर्फ ये कि अगर संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को भी हम हिंदू या मुसलमान की नजर से देखते हैं तो इससे घटिया सांप्रदायिकता कोई हो नहीं सकती।
obama ansari 1बहरहाल, अब अंसारी को निर्दोष बताने वाला एक बयान यहां पेश है, जो कितना सही है, वह तो फैसला आप ही कर सकते हैं:-
सोशल मीडिया पर गणतंत्र दिवस के अवसर पर एक फोटो काफी चर्चा में है, उस फोटो में यह दिखाया गया है कि परेड के दौरान गार्ड आफ ऑनर के दौरान उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने सैल्यूट क्यों नहीं किया? आरएसएस ने यह फोटो ट्वीट किया है और उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रध्वज को सलाम क्यों नहीं किया? इस बात को यहां साफ करना बहुत जरूरी है कि सच्चाई क्या है और सलामी के नियम क्या कहते हैं। क्योंकि जिन्हें सलामी के नियम नहीं मालूम हैं, वे सोशल मीडिया में उपराष्ट्रपति की बेईज्जती करने से नहीं हिचकेंगे।
सैल्यूट के नियम के अनुसार झंडा फहराने, झंडा झुकाने या परेड के दौरान सलामी लेने के दौरान, वहां मौजूद सभी लोग झंडे की तरफ मुंह किए रहेंगे और सावधान की मुद्रा में खड़े होंगे तथा राष्ट्रपति (तीनों सेना के प्रमुख) और वर्दी में मौजूद लोग सलामी देंगे। जब परेड के दौरान आपके सामने से झंडा गुजर रहा हो तो वहां मौजूद सभी लोग सावधान की मुद्रा में खड़े रह सकते हैं या सलामी भी दे सकते हैं। यानि ये अनिवार्य नहीं है। कोई भी गणमान्य व्यक्ति सलामी दे सकता है, भले ही उसके सिर ढका न हो..। तो ये है सलामी का नियम।
obama business sumitमगर, सोशल मीडिया पर एक फोटो को लेकर किसी की भी धज्जियां उड़ा सकते हैं, लेकिन एक बात नहीं भूलनी चाहिए कि उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी कोई नए नहीं है। उपराष्ट्रपति के तौर पर यह उनका दूसरा कार्यकाल है और वे इन नियमों को अच्छी तरह जानते हैं। इसके पहले भी वो डिप्लोमेट रहे हैं, कई देशों में राजदूत रह चुके हैं और यह उनका गणतंत्र दिवस की परेड में उपराष्ट्रपति के तौर पर आठवां साल है। यानि किसी पर भी इल्जाम लगाने के पहले यह तय कर लेना चाहिए कि नियम क्या कहता है।
उधर विवाद के बाद उनके कार्यालय ने बयान जारी कर स्पष्ट किया कि प्रोटोकॉल के मुताबिक इसकी आवश्यकता नहीं है। संयुक्त सचिव और उपराष्ट्रपति के ओएसडी गुरदीप सप्पल ने बयान जारी कर कहा कि गणतंत्र दिवस परेड के दौरान भारत के राष्ट्रपति सर्वोच्च कमांडर के नाते सलामी लेते हैं। प्रोटोकॉल के मुताबिक उपराष्ट्रपति को सावधान की मुद्रा में खड़ा होने की जरूरत होती है। सप्पल ने कहा कि जब उपराष्ट्रपति प्रधान हस्ती होते हैं तो वे राष्ट्रगान के दौरान पगड़ी पहन कर सैल्यूट देते हैं जैसा कि इस वर्ष एनसीसी शिविर में हुआ।
एक दिलचस्प वाकया ये भी हुआ कि जब कांग्रेसियों से न रहा गया तो उन्होंने भी एक फोटो वायरल किया, जिसमें दिखाया गया था कि एक समारोह में अन्य सभी तो ताली बजा रहे हैं, जबकि मोदी नहीं। हालांकि ये खिसयाना सा ही लगा।

-तेजवानी गिरधर

1 thought on “सोशल मीडिया पर हुई हामिद अंसारी की जम कर मजम्मत”

  1. उपराष्ट्रपति को दिल मुहम्मद के दाढ़ी के लिए धडकता है ये दुनिया जानती है यही वो सिकुलर राष्ट्रपति है जो संसद में गाजा पट्टी और हमास की लड़ाई के लिए भारत के संसद में बहस करवाना चाहा , दूसरी तरफ इराक और यजीदी समुदाय पर हो रहे कतेलेआम पर चुप बैठा रहता है
    दुनिया जानती है इस सुतिए के पास कितना भी अनुभव हो पर काम वही करता है जो कुरान के तरीके से जायज हो
    मीडिया चाहे कितना भी इसे बचाने की कोसिस करे इस मुल्ले का असलियत दुनिया जान चूका है
    कोई भी प्रोटोकाल देश के नागरिक को नहीं रोकता तिरंगे की सलामी के लिए हर भारतवासी तिरंगे को सलामी दे सकता है उसके लिए पद की कोई मर्यादा नहीं है अगर वहां ये सलामी दे देता तो बताये मीडिया वाले कोण से मर्यादा और पद का उल्हंगन होता ?

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