अर्थव्यवस्था की टूटती सांस और झूँठे आंकड़ों का भ्रम

bjp logoबीजेपी के तमाम प्रवक्ता कागज़ पढ़कर,लहराकर, बिना कागज़ पढ़े आरएसएस के नागपुर दफ्तर से झूंठ बोलने की विशेष ट्रेनिंग लेकर आते हैं इसका प्रत्यक्ष प्रमाण आप आज देखेंगे जब जीडीपी आंकड़ों पर ये कागज़ लहराएंगे। एक्सपर्ट्स की उम्मीद है की जून क्वाटर के जीडीपी आंकडें 7.5% या 7.6% पर आएंगे। जबकि 1 वर्ष पहले यही जीडीपी 5% की दर से ग्रो कर रही थी।
इसका मतलब जो जादू की छड़ी चिदंबरम के पास नहीं थी वह छड़ी जेटली जी और मोदी जी के पास है फर्क सिर्फ इतना है की झूंठ बोलने का इतना सामर्थ्य पूर्ववर्ती सरकार के पास नहीं था जितना वर्तमान सरकार के पास है जो जादू की छड़ी से सरकार चला ले।
सन् 2014 की अंतिम तिमाही से केंद्र सरकार ने जीडीपी कैलकुलेट करने के मानक में दो बदलाव किये हैं पहला आधार वर्ष बदलकर 2004-5 से 2011-12 कर दिया है, दूसरा फैक्टर कॉस्ट की जगह मार्केट प्राइस को आधार बनाया गया है फैक्टर कॉस्ट में किसी वस्तु की प्राइस विभिन्न फैक्टर ऑफ़ प्रोडक्शन पर निर्भर करती है जैसे लैंड,रेंट, लेबर इत्यादि, परन्तु इसमें सरकार के द्वारा वसूल किये जाने वाले टैक्स सम्मलित नहीं होते, जबकि मार्किट प्राइस में यह टैक्सेज सम्मलित होते हैं कुल मिलाकर यह कस्टमर द्वारा किसी वस्तु के एवज़ में दिया जाने वाला मूल्य है।
इस तरह सरकार ने बिना कुछ किये हुए ही जीडीपी में 20 से 25% की वृद्धि कर दी, और यह शोर मचाया गया की भारत की इकॉनमी 2 ट्रिलियन डॉलर की हो गयी, जबकि यथार्त धरातल पर कोई बदलाव नहीं हुआ है बल्कि स्थिति बिगड़ी ही है देश के निर्यात घट रहे हैं, कोर सेक्टर ग्रोथ घट रही है, आईआईपी के आंकडें नीचे जा रहे हैं ,₹ लगातार गिर रहा है। इकॉनमी के तमाम इंडिकेटर नकारात्मक हैं फिर भी जीडीपी ऊपर जा रहा है तो यह चमत्कार नहीं सिर्फ सफ़ेद झूंठ हैं।
दूसरा झूंठ बोला जा रहा है महंगाई को लेकर, की यह नकारात्मक हो गई है जबकि हकीकत ये है की अंतराष्ट्रीय बाज़ार में क्रूड 148 $ प्रति बेरल से 40 $ प्रति बेरल पर आ गया है और क्रूड का महंगाई मेज़र करने में 14.91% का हिस्सा है साथ ही अंतराष्ट्रीय बाजार में लोहा और कोयले का भाव 12 वर्ष के न्यूनतम स्तर पर है यही कारण है की दाल के भाव 180₹ प्रति किलो होने पर भी , महंगाई का आंकड़ा नकारात्मक है।
सरकार दोनों ही मुद्दों पर अपनी असफलता को जादू की झूंठी छड़ी के नाम पर ढंकना चाहती है पर क्या जनता समझेगी ?
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