भाइयो और बहनो एवं बच्चों , क्या आपको पता है कि तेल वाले बीजों से देशी साधनो से तेल निकालने का काम करने वालों को पेशे के हिसाब से तेली (घांची) कहा जाता था । अब आधुनिक समय में अब यह कार्य बड़े बड़े कारखानो में मशीनों के द्वारा होता है ? लेकिन परम्परागत तरीके से तेल का व्यवसाय करने वालों के वंशज आज भी मौजूद ही नहीं हमारे ऊपर शासन भी कर रहे है और चाहते है की इस शारीर से तो नहीं लेकिन आदमी की आमदनी का एक बहुत बड़ा हिस्सा करों और सेवा के रूप में हमसे छीन ले ? जब रेल विभाग यह कहता है की हम यात्रियों को 57 प्रतिशत किराये पर ही ढो रहे है तो बहुत अद्भुत लगता लेकिन यह मजाक तो हो नहीं सकता कि देश ही नहीं दुनिया का सबसे बड़ा रेलवे नेट वर्क घटे में चल रहा है और यात्रियों को किराये में भी 47 प्रतिशत सब्सिडी दे रहा है ?
स्पष्टीकरण के रूप में रेल वाले बताते है कि माल भाड़ा से कमाई होती है और यात्री गाड़ी से नुकसान ? जब की सच्चाई यह है की रेलवे में सबकुछ ठीक नहीं बहुत बड़ा घोटाला हो सकता है ? क्योंकि तत्काल तक के टिकट कुछ ही मिनटो में समाप्त हो जाते है ? आरक्षित सवारी डब्बों में आरक्षण के लिए दलालों की शरण में जाने पर ही टिकट मिल पाता है ? और अनारक्षित सवारी डब्बो में लोग जानवरों के समान यात्रा करने पर मजबूर होते है ? लेकिन सरकार रेल किराया बढ़ाने के लिए नए नए हथकंडे अपना रही है ठीक वैसे ही जैसे कोई तेली तेल वाले दानो से आखिरी बून्द तक तेल निकल लेता है ? लगता है भारत अब रेल विभाग का नाम तेल विभाग हो गया है ?
एस. पी. सिंह , मेरठ