मथुरा के बाद वाराणसी कांड

धर्म की सियासत को सरकारी संरक्षण

संजय सक्सेना
संजय सक्सेना
धर्मनगरी मथुरा का जवाहर बाग कांड लोग भूले भी नहीं थे और वाराणसी में राजघाट पुल पर इसी से मिलता-जुलता एक और कांड हो गया, जिसमें दो दर्जन से अधिक बेगुनाह मौत के मुंह में चले गये। मथुरा कांड के पीछे भी जयगुरू देव के कथित चेले थे और वाराणसी में भी इन्हीं लोंगो का नाम सामने आ रहा है। दोंनो ही जगह जयगुरू देव के चेलों को सत्तारूढ़ दल के एक ताकतवर नेता का संरक्षण मिला हुआ था, जिस कारण स्थानीय पुलिस और प्रशासन के हाथ बंध गये थे, वह अपने आप को असहाय महसूस कर रहे थे। कहा तो यह भी जाता है कि लखनऊ में बैठे ‘ताकतवर लोगो’ को भी धार्मिक आयोजन के नाम पर लाखों की भीड़ के जुटने की जानकारी मिल गई थी। यह भी पता था कि धर्म की आड़ में अधर्म का कुच्रक रचा जा रहा है। परंतु वोट बैंक की राजनीति के चलते इन सफेदपोशों ने पूरे घटनाक्रम से नजरें फेर ली थी, लेकिन जब भगदड़ कांड हो गया तो सब ने पल्ला झाड़ लिया और गाज गिरी तो सबसे पहले जिला प्रशासन और पुलिस के अधिकारी निशाने पर आ गये। वहीं राजनैतिक संरक्षण दाताओं का बाल भी बांका नहीं हुआ। इसे अखिलेश सरकार की नाकामी ही कही जायेगी कि एक तरफ तो वह पूरे मामले की जांच करा रही है, दूसरी तरह जांच शुरू होने से पहले ही कुछ अधिकारियों को कसूरवार मानकर उनके खिलाफ कार्रवाई भी कर दी गई हैै। जिलाधिकारी को हटाने के लिये चुनाव आयोग से सिफारिश की गई है। वैसे मामला यहीं तक सीमित नहीं है। चर्चा यह भी है कि जिलाधिकारी की अतिक्रमण के खिलाफ सख्ती,भू-माफियाओं के प्रति तल्खी,जनता से जुड़ी समस्यसाओं के प्रति प्रतिबद्धता कुछ स्थानीय सपा नेताओं को रास नहीं आ रहे थे। यह लोग जिलाधिकारी से अपने इशारे पर काम कराना चाहते थे,मगर जब बात नहीं बनी तो जिलाधिकारी के तबादले की कोशिश शुरू हो गई। भगदड़ कांड ऐसे लोंगो के लिये ‘सोने पर सुहागा’ साबित हुआ और एक ही झटके में आड़ में जिलाधिकारी नाम का काटा निकल गया।
बहरहाल, पूरे घटनाक्रम पर नजर डाली जाये तो पता चलता है कि धर्म नगरी मथुरा के जवाहर बाग में जय गुरुदेव के शिष्य रामवृक्ष यादव ने कब्जा कर रखा था। बाग में हथियार बंद लड़ाकों की फौज थी। जब पुलिस जवाहर बाग खाली कराने पहुंची थी तब रामवृक्ष के समर्थकों ने हल्ला बोल दिया था और तत्कालीन एसपी सिटी की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। रामवृक्ष भी जय गुरुदेव का उत्तराधिकारी बनने की कतार में था, लेकिन सपा सुप्रीमो के भाई शिवपाल यादव का हाथ उनके दूसरे शिष्य पंकज यादव पर था और पंकज को उन्होंने उत्तराधिकारी बनवा दिया। पंकज यादव जय गुरुदेव का उत्तराधिकारी बनने के बाद शिवपाल यादव का और खास बन गया। पश्चिम में सपा के मजबूत होने के बाद शिवपाल की निगाहें पूर्वी उत्तर प्रदेश पर थी। पंकज यादव को पूरब में जमीन तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। सूत्रों के अनुसार पंकज यादव ने मथुरा के बाद पूरब में जड़ें जमाने के लिए धर्म नगरी काशी को चुना।
वाराणसी में जय गुरुदेव के श्रद्धालुओं की जुटान आध्यात्मिक नगरी काशी में यू हीं नहीं जुटी थी। इस आयोजन को लेकर व्यापक पैमाने पर तैयारी की गई थी। भगदड़ में इतने लोगों की मौत न होती तो जिला प्रशासन और पुलिस महकमा सोता रहता और बनारस में गंगा किनारे मथुरा के जवाहर बाग की तर्ज पर एक शहर बसा दिया गया होता। पंकज यादव व उसके समर्थक लंबे समय से यहां मद्य निषेध यात्रा के बहाने वाराणसी में बड़ा आयोजन करना चाहते थे। रामनगर में गंगा किनारे डोमरी, कटेसर इलाके को चुना गया। अनुयायियों को ठहराने के नाम पर रामनगर में गंगा किनारे बीते एक माह से तैयारी चल रही थी। सारा काम बड़ी खामोशी से हो रहा था। भगदड़ के बाद जब आला अधिकारी मौके पर पहुंचे तो हैरान रह गए क्योंकि उनके सामने नजारा कुछ ऐसा था। नेपाल से लेकर देश के विभिन्न हिस्सों से समर्थक अपने साजो-सामान के साथ यहां मौजूद थे।
जय गुरुदेव के अनुयायियों ने गंगा किनारे एक छोटा सा शहर बसा दिया था। टेंट लगाकर सिर छिपाने की जगह के साथ ही आठ सौ से अधिक पंडाल बनाए गए थे। एक छोटा सा बाजार भी बन गया था जहां रोजमर्रा की जरूरतों के सारे सामान मिल रहे थे। पेयजल के लिए जमीन खोदकर ट्यूबवेल लगा दिया गया था। बिजली, पानी, अन्न, पार्किंग आदि की व्यवस्था भी आयोजकों ने कर रखी थी। पंकज यादव के संस्था से जुड़े पदाधिकारियों ने इन सब कार्यों के लिए बाकायदा अलग-अलग विभाग बना रखे थे और अपने साथियों की तैनाती कर रखी थी।
मथुरा के जवाहर बाग में जिस तरह रामवृक्ष यादव समानांतर सरकार चला रहा था, वाराणसी में भी पंकज यादव की गंगा किनारे पांच किलोमीटर के दायरे में एक तरह से सरकार चल रही थी। सूत्रों की माने तो पंकज यादव व उनके समर्थकों की योजना तो यहीं थी कि पहले एक सभा करके इधर के लोगों का मूड भांपेंगे और फिर आगे की रूपरेखा तय की जाएगी। पंकज यादव को भी उम्मीद नहीं थी कि भीड़ इतनी हो जाएगी। पूरब में इतनी भीड़ देखकर प्रफुल्लित पंकज यादव अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने की तैयारी में था कि भगदड़ मच गई और सारी योजनाएं धरी रह गई। सत्संग समागम के पहले दिन ही हादसा होने से दूसरे दिन की सभा शोकसभा में बदल गई लेकिन पंकज यादव ने फिर भी दो घंटे तक प्रवचन दिया और अपने अनुयायियों को शहीद का दर्जा तक दे दिया था। अखिलेश सरकार पूरे मामले की जांच करा रही है। ऐसी जांचों का क्या हश्र होता है। सब जानते हैं। शायद ही जांच रिपोर्ट में यह बात सामने लाई जायेगी कि इस आयोजन के पीछे कौन सी राजनैतिक शक्तियों का हाथ था। धर्म की सियासत को जब तक सरकारी संरक्षण नहीं मिलता है,तब तक इस तरह के हादसे देखने को नहीं मिलते हैं।

संजय सक्सेना,लखनऊ

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