पूरा भारत हिंदुत्व की प्रयोग शाला

sohanpal singh
sohanpal singh
स्वर्ग से भी सूंदर इस धरा यानि भारत वर्ष को पाकिस्तान की तर्ज पर हिंदुस्तान बनाने के प्रयोग में जिनती ताकत से जोगी ,भोगी, योगी , रोगीं ,तेली, तमोली , चाय वाला , पाँव वाला, भजिया वाला डब्बे वाला और न जाने केतने कितने “वालों” का उपयोग इस प्रयोग को करने में स्वयं के सेवक लगे है उसमे अन्न दाता किसान और देश की रक्षा करने वाले फौजिन को किस प्रकार एक दूसरे के सामने मरने मारने का प्रयोग किया जाता है इस बात का उदहारण दुनिया के किसी भी देश में मिलना असंभव ही होगा , जब सिविल प्रशासन पंगु हो जाता है राजनेताओं का राजनैतिक रण कौशल समाप्त होने पर फ़ौज को ढाल बना कर लोकतंत्र को कलंकित करने का प्रयास होता हैं जब एक नागरिक को कथित पत्थर बाज बना कर जीप में बाँध कर उसके जीवन से खिलवाड़ करते हुए कुछ सरकारी कर्मियों को सुरक्षित निकल जाता हैं इससे तो ऐसा लगता है देश कि सेकुलर ” धर्म निरपेक्ष ” संवैधानिक ढांचे की बखिया उधेड़ी जा रही हैजब हमे धर्मनिरपेक्ष के स्थान पर पंथ निरपेक्ष शब्द को हमारे मुंह में ठूंसा जाता है , जम्मू कश्मीर ही नहीं देश के किसी भी हिस्से में “लॉ एंड आर्डर ” अर्थात कानूनन व्यस्वस्था को स्थापित करने के लिए किसी भी प्रकार से फौजें का न उपयोग करना वर्जित होना चाहियें क्योंकिं किसी भी लोकतंत्र में फ़ौज के बल पर शासन करने की कोइ व्यवस्था है ही नहीं ! क्योंकि जब फ़ौज नेताओ को संरक्षण देने लगती है तो जनता में भी आक्रोश की ज्वाला प्रस्फुटित होने लगती है और कुछ बुद्धिजीवियों को अपने ही फौजी जनरल में 1919 के जलियाँ वाला बाग़ में निर्दोष भारतीय नागरिको के हत्यारे जनरल ओ डायर की आत्मा दिखाई देने लगे तो यह लोकतंत्र के लिये तो शुभ संकेत 7 नहीं हो सकता ? दूसरी बात यह कि जब संवैधानिक तरीके से धरना प्रदर्श से सरकारे किसी भी मांग को मानने या बात करने से विफल होती है तब धरना प्रदर्शन बेकाबू हो जाता है जिसके परिणांम स्वरुप मध्य प्रदेश के मन्दसौर की घटना घटती हैं जहाँ 9 बेकसूर लोगों का जीवन पुलिस की गोली छीन लेती हैं ? आखिर हम लोकतांत्रिक देश में जीवन जी रहे है या हिंदुत्व की प्रयोगशाला में चूहे बिल्लियों की तरह उपयोग किये जा रहे हैं ?

एस०पी०सिंह, मेरठ

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