मजीठिया के लिए लड़ाई कर रहे साथियों के लिए मेरी ओर से लिखा गया पत्र

rajendra guptaसाथियों,
हमारी लड़ाई किसी व्यक्ति से नहीं है। हम सभी इस शक्तिशाली तंत्र से लड़ रहे हैं। हमारे मन में अन्याय के प्रति आक्रोश तो हो लेकिन ऐसे कोई विचार लिखित रूप में व्यक्त न करें जो उनके लिए हमारे खिलाफ सबूत बने। हम सब फ़िलहाल कानूनी जंग लड़ रहे हैं सशस्त्र लड़ाई नहीं। आप सभी से अनुरोध है कि मजीठिया की राह के दुश्मनों को हर उस मोर्चे पर शिकस्त दें जो उनकी ताकत है।
आप सब अख़बार मालिकों के शुभचिंतकों को यह msg पहुंचाएं कि जो अपने परिवाररूपी कर्मचारियों को कुचल रहे हैं क्या वे बुद्धिजीवी होने का दावा कर सकते हैं ?
क्या कर्मचारियों में 16 करोड़ बांटने वाले हर कर्मचारी को इस राशि का औसत 32 हज़ार रुपया मिलना उनके बैंक अकाउंट में दिखा सकते हैं?
अख़बार के नाम पर कौड़ियों में ली गई जमीन पर व्यावसायिक कॉम्लेक्स क्यों बनाये गए?
पत्रकारों को मिलने वाली सुविधा पर इनके पेट में दर्द हो जाता है जबकि ये खुद सस्ता अखबारी कागज़, आयातित मशीनरी, सरकारी विज्ञापनों आदि की सरकारी रियायतों का इस्तेमाल क्यों करते हैं।
साथियों, इनके काले कारनामे खोद-खोद कर लाओ, उनके पेम्फलेट, पोस्टर आदि छपवाकर इन्हें नंगा करो। इस लड़ाई में किसी एक अख़बार नहीं बल्कि हर उस अख़बार को लपेटो जो मजीठिया का दुश्मन बना हुआ है।
मजीठिया क्या है?
हमारी जंग का मकसद क्या है?
मात्र 500 रुपए की उधार पूंजी से शुरू हुआ राजस्थान पत्रिका कैसे करोड़ों का मालिक बना?
समूचे तंत्र को भ्रष्ट करने में इन अख़बार मालिकों का क्या योगदान है?
मेरा सभी साथियों से अनुरोध है कि वे मानसिक जुगाली बंद कर इस लड़ाई को निर्णायक मुकाम पर ले जाएँ, सिर्फ गुल्लू को उल्लू कहने से काम नहीं चलेगा। लड़ाई लंबी है और दुश्मन क्रूर, ऐसे में ठंडी सोच रखकर उनके हर हथियार को भोंटा करने की सोचो।
याद रखें सारे अख़बार सुप्रीम कोर्ट को खिलौना बनाने के लिए एक हो गए हैं। उनसे निपटने के लिए सोच उनसे एक कदम आगे हो।
कड़वे शब्द कहने के लिए क्षमा मांगता हूँ।
साहस के साथ आपके बुद्धि कौशल के परीक्षण का समय आ गया है। चाणक्य के चन्द्रगुप्त को दी गई सीख याद करें कि गर्मागर्म खिचड़ी को किनारे-किनारे से फूंक मारते हुए ही खाया जा सकता है। बीच में से खाई गई खिचड़ी सिर्फ मुंह जलायेगी। इस सीख पर चलते हुए ही चन्द्रगुप्त चाणक्य की सरपरस्ती में अपना राज्य स्थापित कर पाया।
तो सब अपने मन में जोश के साथ होश भरते हुए बोलो-
जय कलम, जय मजीठिया।
राजेन्द्र गुप्ता

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