मेरे दलित विचारको! जानो, भगवान् मनु का सच

गजेसिंह राठौङ
गजेसिंह राठौङ
भगवान् स्वायम्भुव मनु मानव जाति के प्रवर्तक होने के साथ-2 विश्व के प्रथम राजा थे। उनका ग्रन्थ मनुस्मृति संसार की प्रथम मानवीय कृति है। विश्व के सभी देशों की शासन पद्धतियों में इस महान् ग्रन्थ की प्रत्यक्ष वा परोक्ष छाप रही है। करोड़ों वर्षाें तक सर्वमान्य इस ग्रन्थ में मध्यकाल में मानवता के शत्रु संस्कृतज्ञों ने अनेक ऐसे प्रक्षेप (मिलावट) किये जिससे विशुद्ध वैज्ञानिक कर्मणा वर्ण व्यवस्था जन्मना जाति व्यवस्था एवं घृणा, द्वेष, भेदभाव की जन्मदात्री बन गयी। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सर्वप्रथम भगवान् मनु के विशुद्ध स्वरूप को अपने ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में रेखांकित किया। आज हमारे देश में कथित दलित हितैशी, साम्यवादी एवं कथित प्रबुद्ध जन मनुस्मृति के विरुद्ध कोलाहल कर रहे हैं। उन्हें ध्यान नहीं कि डा. भीमराव अम्बेडकर स्वयं स्वीकार करते थे कि वे हिन्दू धर्मशास्त्रों के ज्ञाता नहीं हैं। उन्होंने विदेशी षड्यन्त्रकारी कथित स्काॅलरों के अनुवाद पढ़कर ही वेद वा मनुस्मृति के विषय में मिथ्या धारणा बनाई। डा. अम्बेडकर को मनुस्मृति के पोषक आर्य समाजी राजा गायकवाड़ एवं शाहू जी महाराज ने ही आर्य नेता पं. आत्माराम अमृतसरी के प्रयास से पढ़ाकर ऊँचा उठाया। डा. अम्बेडकर स्वयं आर्य नेता स्वामी श्रद्धानन्द जी, लाला लाजपत राय, पं. धर्मदेव विद्यामार्तण्ड एवं आत्माराम जी अमृतसरी आदि को दलितों का मसीहा तथा अपने पितातुल्य मानते थे। दुर्भाग्य से वेद व ऋषियों से अनभिज्ञ परन्तु उन्हीं का नाम लेने वाले नकली ब्राह्मणों ने प्रतिभाशाली अम्बेडकर को बहुत सताया। इसी प्रतिशोधवश वे बौद्ध बन गये। मनुस्मृति का क्षेत्र अति व्यापक है। यहाँ केवल हम इतना बताना चाहते हैं कि यदि आज सामान्य निर्धन दलित वर्ग को मनुस्मृति का यथार्थ स्वरूप विदित हो जाये तो वे ही अपने नेताओं के पाखण्ड को ध्वस्त करके सर्वप्रथम मनु भगवान् की पूजा करेंगे। हमारी घोषणा है कि आज दलितों, शोषितों, निर्धनों का मनु जी से बढ़कर हितैशी संसार में नहीं है। आज जो भी महानुभाव मनु जी का विरोध कर रहे हैं अथवा समर्थन कर रहे हैं (आर्य समाजियों को छोडकर) उनमें से कोई मनुस्मृति को न तो पढ़ता है और न जानता है। विवेकशील बन्धु निम्न बिन्दुओं पर विचार करे-

1.मनुप्रोक्त वेदानुमोदित वर्णव्यवस्था जन्म पर नहीं बल्कि कर्म पर आधारित है। वर्तमान में अध्यापक, सैनिक, व्यापारी व कृषक क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य वर्ण का स्थूल रूप है तथा श्रमिक को शूद्र कहा जा सकता है। यह व्यवस्था श्रम विभाजन पर आधारित थी। जो प्रत्येक देश में विभिन्न नामों से आज तक प्रचलित है और सदैव रहेगी भी।
2. वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित होने से वर्ण परिवर्तित हो सकता था। ब्राह्मण अयोग्य होने से शूद्र तथा शूद्र योग्य होने पर ब्राह्मण बन सकता था। शूद्र के घर जन्म लेने वाले प्रतिभाशाली बालक को ब्राह्मण के घर तथा ब्राह्मण के घर उत्पन्न मूर्ख बालक को शूद्र के घर भेज दिया जाता था। इसी प्रकार अन्य वर्णों में व्यवस्था शासन द्वारा होती थी। (देखें- सत्यार्थ प्रकाश )

3.एक रुपये की चोरी करने पर शूद्र (श्रमिक) को आठ रुपया, वैश्य (व्यापारी, किसान) को सोलह रुपया, क्षत्रिय (सैनिक, अधिकारी) को बत्तीस रुपया, ब्राह्मण (अध्यापक, धर्मोपदेष्टा) को चैसठ रुपया, देश के मंत्री को आठ सौ रुपया तथा राजा को एक रुपये की चारी पर एक हजार रुपया दण्ड मिलता था। इस प्रकार भगवान् मनु की दृष्टि में शूद्र समान अपराध पर भी सबसे कम दण्डनीय होता था और राजा सर्वाधिक दण्डनीय। आज कथित समाजवादी, दलित हितैशी कुशासन में श्रमिक सबसे अधिक पीडि़त होता है। राजा, नेता आनन्द करते हैं, इसी कारण नेता मनुवाद का विरोध करते हैं। वे नहीं चाहते कि गरीब एवं दलित ऊपर उठें।
4.देश के सभी बच्चे अनिवार्य रूप से शासन के व्यय से पढ़ते थे। आवासीय विद्यालय में राजा से लेकर शूद्र (श्रमिक), भिखारी, उद्योगपति सबके बच्चों को समान स्तर का खान-पान, वस्त्र, बिस्तर, शिक्षा मिलती थी। निजी शिक्षा व्यवस्था कहीं नहीं थी। पूरे देश में समान पाठ्यक्रम, समान सुविधा वाले विद्यालय होते थे। राजकुमार तथा शूद्र वा भिखारी के बच्चे साथ-2 समान भाव से पढ़ते थे। विद्या पूर्ण होने पर उनके वर्ण का निर्धारण गुरु के द्वारा होता था। राजा अथवा ऋषि का अयोग्य पुत्र शूद्र भी घोषित हो सकता था और किसी शूद्र वा भिखारी का योग्य पुत्र ब्राह्मण, क्षत्रिय वा वैश्य भी घोषित हो सकता था। ग्रामीण-शहरी, धनी-निर्धन, ब्राह्मण-क्षत्रिय, वैश्य-शूद्र आदि का कोई भेद नहीं था। योग्यता के अनुसार काम मिलता था। आज की आरक्षण व्यवस्था गरीब दलितों के विरुद्ध धनी कथित दलितों (नेता, अधिकारी, उद्योगपतियों) का एक शड्यन्त्र है, यही कारण है कि ये धनी दलित आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात करते ही भड़क उठते हैं। यदि मनु की व्यवस्था लागू हो तो देश में कोई गरीब, अशिक्षित, शोषित, दलित, पिछड़ा रहेगा ही नहीं बल्कि सभी उत्तम विद्या, धन व प्रतिष्ठा के भागीदार होंगे। यही आरक्षण के नाम पर राजनीति करने वाले नेता नहीं चाहते हैं। मनु की व्यवस्था में जो वास्तव में अयोग्य होंगे, वे ही शूद्र बनेंगे परन्तु शूद्र का अर्थ भी अछूत नहीं होता था। शूद्र ही ब्राह्मणादि के घर भोजनादि पकाने का कार्य करता था।
5.बालक बालिका सभी पृथक्-2 विद्यालयों में अनिवार्य रूप सम्पूर्ण विद्या को प्राप्त करके समान अधिकार पाते थे। वेद ने नारी को घर की साम्राज्ञी (महारानी) कहा तथा मनु जी ने पूज्या बताया।
यदि आज भगवान् मनु का मत साकार हो जाए तो देश व विश्व की सभी समस्याओं का स्थायी समाधान हो सकता है परन्तु क्या जाति व समुदाय के सहारे जीने वाले राजनेता व कथित प्रबुद्ध वर्ग इस सच को समझने का प्रयास करेंगे? लिखने को बहुत कुछ है। अधिक जानकारी के लिए पाठक मेरी पुस्तक ‘बोलो! किधर जाओगे?(http://www.vaidicscience.com/books/BOLOKIDHARJAOGE.pdf )
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आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक, वैदिक वैज्ञानिक
आचार्य, वेद विज्ञान मन्दिर
(वैदिक एवं आधुनिक भौतिक विज्ञान शोध संस्थान)
तिथि- फाल्गुन शुक्ला 10/2072
दिनांक-18.03.2016

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1 thought on “मेरे दलित विचारको! जानो, भगवान् मनु का सच”

  1. अगर आपको लगता है कि आपके भगवान और धरती के प्रथम राजा मनु महाराज के महानतम ग्रन्थ मनु स्मृति में बाद में मिलावट की गयी है ,तो क्या आप आज उन अंशों को मनुस्मृति से हटाने को तैयार है ,आज की अशुद्ध मनुस्मृति को शुद्ध करने की कृपा कीजिये.रही बात बाबा साहब अम्बेडकर के वेदों आदि के ज्ञाता नहीं होने की तो मेहरबानी करके अम्बेडकर को पूरा पढ़ लीजिये ,उन्होंने क्यों इस विषैली किताब को जलाया ,उसका कारण आपको समझ में आ जायेगा ,मुझे कोई दिक्कत नहीं है कि आप मनु को साक्षात् भगवान माने और उनकी लिखी किताब को सर्वश्रेष्ठ .लेकिन अपने विचार दलित विचारकों पर थोपिए मत ,उपदेशात्मक भाषा से परहेज कर सकेंगे तो बात ज्यादा ग्राह्य होगी . आपका जो भी विचार है ,उससे मुझे कोई तकलीफ नहीं है पर बाबा साहब अम्बेडकर के बारें में बात करते हुए सतर्कता बरतिये ,उनके बारे में सुनी सुनाई बातें और उनको अपमानित करनेवाली बातों से बचना होगा .आपकी विद्वता को सलाम ,मनु के प्रति आपकी भक्ति को भी प्रणाम ,परन्तु अपना मनुवादी नजरिया हम पर मत लड़िये पंडित जी ,हम सह नहीं पाएंगे आपके इस महान ज्ञान और मनु के प्रति श्रधा को .

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