सैना के बहाने शान्ति का पैगाम

Ras Bihari Gaur (Coordinator)अभी तुर्की में सैना का विद्रोह हुआ, गाहे-बगाहे सत्ता हथियाने की कोशिश अलग अलग समय में विभिन्न देशों में होती रही हैं, कभी सफल ,कभी असफल। दुनिया भर के सैनिक अपनी-अपनी सरकारो के उचित-अनुचित निर्णयों की पालन करते रहे हैं। जानें लेते हैं, शहादतें देते हैं। सरकारें भी अपने अनैतिक कार्यों को अक्सर सैनिको के माध्यमों से संचालित करती रही हैं।युद्ध में सैनिको के प्रदर्शन से किसी भी देश का अपनी सुरक्षा करना विश्व- व्यवस्था के लिये जरुरी है, किन्तु देश के आंतरिक मामलो में सैना का सहयोग अराजकता को जन्म देता है ,जो अप्रत्यक्ष आतंक,व्यभिचार,अनाचार,सहित समाज की समस्त नकारात्मकता को पोषण करती है।
ये सच है सैनिक योद्धा होता है, वीर होता है,प्रणम्य होता है,देश पर अपना सर्वस्य न्यौछावर करने को सदा तत्पर होता है, राष्ट्र्भक्ति का सबसे बड़ा मानदंड होता है, शायद इसलिये हर नागरिक उसका अतिरिक्त सम्मान भी करता है।साथ ही अपनी कार्यशैली के कारण सैनिक को हत्याएं भी करनी होती है अतः वह थोडा अमानवीय भी होता है । उम्र और ऊर्जा के चलते उसके लिए व्यभिचार की संभावना भी रहती है, स्वम को श्रेष्ठ सिद्ध करने के चक्कर में वह आंशिक हिंसक भी होता है। उसे धर्म की घुट्टी पिलाकर पाला जाता है और उसके विवेक पर कोई निर्णय नहीं छोड़ा जाता ।यही कारण है की सैनिक कार्यवाहियों पर सदा ही सक्षम अधिकारों का निर्णय लागू होता है। जहाँ सरकारें अपने हित में सैना का प्रयोग करती है वहां उनकी नकरत्मकता भी साथ चलती है। पाकिस्तान,इराक,अफगानिस्तान सहित अनेकों देशो की मिशाल हैं कि वे कैसे अपनी ताकत के हाथो खुद ही बर्बाद हुए।
जहाँ तक भारत का सन्दर्भ है सैना का संघठनात्मक ढांचा इतना मजबूत और व्यहवारिक है कि सैना स्वतः अनुशासित और राष्ट्र के प्रति समर्पित रहती है ,किंतु विभिन्न समस्याओं के संदर्भो में सरकारों ने उसका दुरूपयोग किया है।जबकि संविधान में इसके निषेध के स्प्ष्ट प्रावधान है, बावजूद सरकारों ने अपने हित साधने के मार्ग खोज लिये।विशेषकर पूर्वोत्तर राज्यों और ,कश्मीर में ।
सैना का उपयोग युद्ध में या आपदाओं में ही होना चाहिए अपने आंतरिक मसलों को या नागरिक समस्याओं को सुलझाने में न केवल सेना का दुरूपयोग होता है,अपितु उसकी गरिमा भी आहत होती है ।यदि बेहद जरुरी भी हो तो मात्र कुछ समय के लिये,जैसा कि संविधान भी कहता है।
भले ही हम 14 वषों से ऐतिहासिक अनशन कर रही शर्मीला इरोम की आवाज को अनसुना कर दे, या किसी कन्हैया को उच्छ्रंखल कह कर खरिज कर दे। पर देश के सन्दर्भ में ये बात विचारणीय है कि किसी भी प्रदेश को लंबे समय तक सैना के हवाले कर हम शासकीय दायित्वों का दुरूपयोग तो नहीं कर रहे। यह न केवल नागरिकता के मौलिक अधिकारों का हनन है ,वरन सैना की गरिमा और उपादेयता का भी क्षरण है।
हम दुनियां के सबसे बड़े एवम् समृद्ध लोकतन्त्र होने का दावा का इन उपादानों के भरोसे तो नहीं कर सकते। दूसरे पड़ौसी मुल्को से तुलना हमे उनकी ही राह पर ले जायेगी। एक बार राजनीती से ऊपर उठकर हम सोचे कि चुनी हुई सरकारें यदि सैना के भरोसे समाधान खोजेंगी तो फिर वे हर पल एक युद्ध ही लड़ रही होंगी।
हम शान्ति के वाहक है।हमने दुनियां को बुद्ध, महावीर,नानक,और गांधी दिय है, फिर भला हम क्यों किसी चंगेज खान, हिटलर या मुसोलनि के रास्ते पर चल सकते हैं।

रास बिहारी गौड़ www.rasbiharigaur.com

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