शहीद-ए-आज़म अल्ताफ़ डार कश्मीरी आतंकवादियों के ख़िलाफ़ मौत का परवाना थे

मो आमिर अंसारी
मो आमिर अंसारी
मैं दर्द में डूबी हुई इस सच्ची तहरीर की शुरुवात ग़ालिब के उस मशहूर शैर से करना चाहता हूँ जिसमें उन्होंने कहा है कि
“याद कर के मिन जुमला ओ खासाना मुझे
बरसो रोया करेंगे जाम ओ पैमाना मुझे ”
आज जब कश्मीर धधक रहा है, इंसानियत कराहा रही है,बर्फीली वादियों से ठन्डे बादलों की जगह सुर्ख़ अंगारों की बारिश हो रही है,बीमार दवा से महरूम हैं,बच्चे दूध के लिए तड़प रहे हैं और बर्फ़ की चादर बारूदी ओढ़नी में तब्दील हो रही है | इन हालात में अपनी ज़िम्मेदारी को कम करने के लिए “पड़ोसी मुल्क का हाथ है..” सिर्फ़ इस एक जुमले को बोलकर कश्मीरी अवाम की तकलीफों से सियासतदां बच कर निकल जाते हैं | लेकिन कश्मीर की ज़मीनीसच्चाई तारीख़ी तौर पर मुल्क की नई नस्लों को जानना ज़रूरी है |
वह कश्मीर जहां तहज़ीब के नाम पर ऐसा तारीख़ी भाईचारा था कि कश्मीरी राजघराने के मुखिया स्वर्गीय हरी सिंह जी और कश्मीरी अवाम के अंग्रेज़ विरोधी आंदोलन के खूबसूरत किरदार मरहूम शेख अब्दुल्लहा साहब ने मिलकर कश्मीरी संस्कृति की हिफाज़त के मतालबे के साथ 1947 में जिन्ना की टू नेशन थ्योरी को ठुकरा कर तिरंगे के साये में रहें का ऐलान किया था |आज कश्मीर समस्या के बुनियादी हल के लिए सियासी मफ़ादात को एक तरफ रखकर दुनियां की जन्नत में यानी सर ज़मीन ए कश्मीर में उसी हिन्दोस्तानी मोहब्बत को तलाशना होगा |
आज जब दुश्मन मुल्क यह ऐलान कर रहा है कि “कश्मीर हिन्दोस्तान से अलग होना चाहता है …” तब शहीद ए आज़म सब इन्स्पेक्टर अल्ताफ़ डार की आतंकियों की गोलियों से हुयी मौत “कश्मीर हमारा है ,हमारा ही रहेगा ” इस विचार के साथ दुश्मन मुल्क को तारीख़ी जवाब है |
कश्मीरी पुलिस का यह नौजवान जो कांस्टेबल के रूप में कश्मीरी पुलिस में भर्ती होता है और अपने बहादुरी से लबरेज़ कारनामों के कारण बहुत कम वक़्त में ही 5 प्रमोशन हासिल कर लेता है | अपनी मुख़्तसर ज़िंदगी में हिन्दोस्तान की मुख़ालफ़त और कश्मीर में तशद्दुद फैलाने वाले लगभग 200 आतंकवादियों को मौत के घाट उतार देता है अल्ताफ अहमद डार उर्फ अल्ताफ़ लैपटॉप को जम्मू एवं कश्मीर में उनके बेहतरीन खुफिया कार्यों के लिए जाना जाता था। घाटी में वर्ष 1989 से पनपे हिजबुल मुजाहिदीन के नेटवर्क को अल्ताफ़ लैपटॉप ने 2006-2007 के बीच में लगभग ध्वस्त कर दिया था। यही नहीं, उनके विशिष्ट काउंटर -इंटेलिजेंस की मदद से सेना ने 200 आतंकवादियों को मारने में सफल रही थी।और एक दिन इन्हीं हिन्दोस्तानी दुश्मन अनासिर की गोली भारत माता के इस महान सपूत के सीने को छलनी कर देती है और शहीद ए आज़म अल्ताफ़ डार अपने पीछे जवान विधवा के साथ दो मासूम बच्चों को जिनकी उम्र मात्र दो साल और चार साल होती है उन्हें हिन्दोस्तान का हुस्न कहे जाने वाले कश्मीर में छोड़कर भारत माँ के आगोश में कभी न लौटने के लिए समां जाता है | इस बहादुर सैनानी के जनाज़े में दिनांक 7 अक्टूबर 2015 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद के साथ पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और राज्य के पुलिस प्रमुख के साथ पूर्व डीजीपी सहित कश्मीरी अवाम अपनी भीगी हुयी पलकों से अलविदा कहने के लिए मौजूद रहते हैं |
सर ज़मीन ए कश्मीर में “वादी का चीता” कहे जाने वाले शहीद फ़ौजी बिर्गेडियर उस्मान सहित सैकड़ों किरदारों के बाद एक और किरदार अल्ताफ़ डार की शक्ल में नुमायां तौर पर सामने है जिसने अपने खून से कश्मीरी अलगाववाद के खात्मे का विचार देश को दिया है | दुश्मन मुल्क के ज़रिये मज़हब की झूठी ओढ़नी के साये में चलाये जाने वाले इस खूंरेज़ आंदोलन का हल हमारी हुकूमतों को भी मज़हबी तस्वीर में तलाशना चाहिए | इसका ज्वलंत और स्वयं सिद्ध उदहारण पंजाब के अलगाववादी आंदोलन के ख़िलाफ़ पंजाबी रेजिमेंट और पंजाबी राष्ट्रभक्त फौजियों ने पेश किया था |
आज वक़्त की ज़रूरत है जब कारगिल की फतह के लिए तजुर्बे के तौर पर बनाई गयी मुस्लिम चार्ली कंपनी की तरह ही कश्मीरी सरहदों की हिफाज़त की ज़िम्मेदारी हमें स्वर्गीय शहीद बिर्गेडियर उस्मान और अमर शहीद अल्ताफ़ डार की तरह ही मुस्लिम फौजियों के कांधों पर डाल देनी चाहिए | पत्थर पर अंकित शिलालेख की तरह मौजूद यह एक तारीखी सच है कि कश्मीर सहित पूरे हिन्दोस्तान का मुसलमान किसी भी क़ीमत पर दुनियाँ में हिन्दोस्तान का ताज कहे जाने वाले कश्मीर को नापाक हाथों में नहीं जाने देगा |
शायद हुकूमतें भारतीय मुस्लिम के इस अहसास को जानबूझकर नज़र अंदाज़ करती रही हैं या फिर इस सच तक पहुँचने में नाकाम रही हैं लेकिन आज बिलखते,सिसकते और करहाते हुए कश्मीर में खुशियां वापिस लाने के लिए सरकार को हिन्दोस्तानी मुसलमानों के उस अहसास को जानना होगा और उस परिक्षा को सम्मान देना होगा जो उन्होंने 14 अगस्त 1947 को जिन्ना के धर्मसापेक्ष देश को ठोकर मारकर धर्मनिरपेक्ष हिन्दोस्तान को “मेरी जान हिन्दोस्तान” कह कर समर्थन दिया था |
इस आलेख का अंत इस सच्चाई पर करना चाहता हूँ कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक बसने वाला मुसलमान हिन्दोस्तान की सरहदों की हिफाज़त के लिए जान देना चाहता है ! काश सरकार इसे क़बूल करे | चूँकि कश्मीर के तहफ़्फ़ुज़ के लिए आज भी हज़ारों अल्ताफ़ डार तिरंगा हाथ में लिए मादरे वतन की हिफाज़त के लिए शहीद होने को तैयार हैं ,यहीं से कश्मीरी समस्या का बुनियादी समाधान निकलेगा |

मो आमिर अंसारी

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