मोदी के पराजय के कारण

लालू की कुर्बानी,नितीश का सुशासन,साहित्यकारों का विरोध और आज़म खां के सियासी हमले बिहार में मोदी के पराजय के कारण बने !
aamir ansari– आमिर अंसारी – उपरोक्त मुस्लिम वर्ग का बिहार के चुनावो में मुत्तहिद होकर मतदान करना बिहार के चुनाव की तकदीर लिखने की तरह था और इस सिद्धांत के प्रती अपनी आज़ाद ख्याली के मशहूर अलीगढ़ की छात्र राजनीत के दौरान हजारों बिहारी छात्रों के सर्वमान्य नेता रह चुके देश के स्थापित शिक्षाविद मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी के प्रो चांसलर और अखिलेश यादव सरकार के वरिष्ट केबिनेट मंत्री मोहम्मद आज़म खां का रौल एतिहसिक रहा है ! आमतौर पर जीत के मद में डूब जाने के बाद मुस्लिम मतदाताओं को मजबूरी में समर्थन देने वाला मतदाता मानने वाले धर्मनिरपेक्ष दल इस सच को नकार देते हैं जो मोहम्मद आज़म खां आम तौर पर अपनी जनसभाओं में मुसलामानों से एक दर्शनशास्त्री के रूप में कहते दिखाई देते हैं कि “ तुम बादशाह तो नहीं बं सकते लेकिन तुम्हारी मर्जी के बगैर कोई बादशाह भी नहीं बं सकता ” मो.आज़म खां ने बेबाकी के साथ बिहारी मुसलमानों को मर्यादा संस्क्रती सद्भाव और राजनीतिक सीमाओं के भीतर रहते हुए अपने अंदाज़ में यह सन्देश पहुंचाने का काम किया है जिसका आश्य समीक्षक यह निकाल सकते हैं कि नफरत की खेती करने वालों के विरूद्ध महागठबंधन के खुशबूदार बगीचे को अपनी कुर्बानी से कायम रखना ही होगा ! और लगभग 99 फीसद से अधिक बिना किसी उवैसी की परवाह किये बगैर बिहार के 22 फीसद मुस्लिम मतदाता का गठबंधन को समर्थन भारत के राजनैतिक इतिहास का एक उदहारण बनकर हमेशा कट्टरवादी ताकतों के लिए यह सन्देश देता रहेगा कि हम मुसलमान ज़िंदगी की आख़री सांस तक उदारवादी सहिष्णुता से भरपूर और सत्य के उपासक हिन्दू का साथ देते रहेंगे ! बिहार चुनाव का यह वह सच है जो संभवतः इतना सीधा लिखने,बोलने,पढने और सुनने को आसानी से नहीं मिलेगा !

कट्टरवाद बनाम उदारवाद,असहिष्णुता बनाम सहिष्णुता,साम्प्रदायिकता बनाम सद्भाव,नफरत बनाम मोहब्बत,गरीबी बनाम अमीरी की इस बिहारी राजनीतिक जंग ने लालू यादव को व्यक्ती से व्यक्तित्व बनाकर विचारवान,राष्ट्रवादी नेता के रूप में भाजपा के अमर्यादित जुमलों से आहत लोगों का मज़बूत लीडर बना कर मोदी के विकल्प के रूप में देश को दिया है !हम नरेंद्र मोदी की बिहार पराजय के विश्लेषण में अगर एक अवलोकन के अनुसार 22 फीसद मुस्लिम मतदाताओं को अगर शामिल नहीं करेंगे तो इस राजनैतिक आन्दोलन की सच्चाई पर पर्दा डाल रहे हैं !यह इस चुनावी अभियान में अपना समर्थन देने वाला वह वर्ग है जो अपने धर्म में बादशाह तलाश नहीं करता !

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र यानी भारत वर्ष के संवेदनशील और विशाल सूबे बिहार में नरेंद्र मोदी बनाम नितीश कुमार की राजनैतिक जंग का आगाज़ देश और दुनिया के राजनीतिक विश्लेषकों,दर्शनशास्त्रियों और जनता के बीच चर्चा और आकर्षण का केंद्र था ! इस राजनैतिक जंग में नरेंद्र मोदी की पहली पराजय तो प्रारंभिक आन्दोलन में इस तरह सामने आयी जब नरेंद्र मोदी बनाम नितीश कुमार चुनाव का ऐलान हुआ यानी महान भारत का प्रधानमंत्री,मुख्यमंत्री के रूप में बिहार के चुनावी संघर्ष में नितीश के सामने था !इससे यह सिद्ध होता है कि पराजित भाजपा के पास नितीश लालू गठबंधन के मुकाबले के लिए कोई क्षेत्रीय लीडरशिप नहीं थी !
विश्लेषक जात,पात,धर्म,पंथ से ऊपर उठकर चाहे जितना नरेंद्र मोदी का विदेशी सम्मान बखान करते रहे हो लेकिन सच तो यह है कि देश की राजनीत को दिशा देने वाला बिहार का चुनाव उदारवाद बनाम कट्टरवाद के बीच हुआ है ! एक तरफ गाय का राजनीतकरण करने वाले वह लोग थे जिन्होंने अपने राजनैतिक प्रोग्राम के बजाय कभी श्री राम के आराध्य नाम को दल और पार्टी की विस्तार का अस्त्र बनाया कभी गाय के सम्मान को चुनाव जीतने का माध्यम बनाया ! यह वह लोग हैं जिनके आन्दोलन में अँगरेज़ से देश को आज़ाद कराने वाले चेहरे ढूँढने पड़ते हैं किन्तु अपने अहंकार और सांप्रदायिक नजरिये की धमक की दम पर लोगों को राष्ट्रवाद का प्रमाण पत्र बांटते हैं ! सच यह है कि नरेंद्र मोदी के डेढ़ वर्ष के शासन काल में पूरा मुल्क साम्प्रदायिकता और असहिष्णुता की आग में धधकने लगा था इससे सिद्ध होता है कि मोदी के सलाहकारों ने नरेंद्र मोदी को गुजरात नरसंहार के हीरो के रूप में ही बनाये रखने का प्रयास किया !जबकी २०१४ के लोकसभा चुनाव में खासतौर से मोदी जी को मनमोहन सिंह के कुशासन के विरुद्ध सुशासन हेतू वयवस्था परिवर्तन के नाम पर करीब १८ करोड़ लोगों ने वोट देकर सरकार बनाई थी किन्तु वह सभी लोग मायूसी के दौर से गुज़र रहे हैं ! उसी का परिणाम है कि एक व्यक्ती के रूप में पहले अरविन्द केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी को जनता के दरवाजे से नामुराद लौटाया था और अब बिहार की जनता ने आने वाले सभी विधानसभा और लोकसभा चुनावों का सेमीफायनल मेच जीत कर अहंकार,असहिष्णुता,असहनशीलता और आमर्यादित टिप्पणी का जवाब देकर भारत के स्वभाव का सन्देश दिया है ! इस चुनाव में हर चुनाव की तरह जब नितीश के नेत्र्तव वाले मोर्चे के विजय अभियान का विश्लेषण होगा तब क्या खोया क्या पाया,क्या बोया क्या काटा,इस बात को ज़रूर सामने रखना होगा ! बिहार के चुनाव में बुद्धिजीवी मतदाता कट्टरवाद असहिष्णुता के विरुद्ध देश के साहित्यकारों ने सम्मान लौटाकर देश के उदारवादी और इंसानी पहलू को लोगों के मन मस्तिष्क तक पहुंचाने का बिजली की चकाचौंध की तरह कार्य किया !
दूसरी ओर लोकसभा चुनाव में लगभग २८ फीसद मत प्राप्त कर के अपनी लोकप्रियता का लोहा मनवाने वाले लालू यादव ने गटबंधन धर्म के आधार पर नितीश कुमार को लीडर मान कर देश की राजनीत को विचारों के प्रती बलिदान देने का सन्देश दिया है वही मोदी की पराजय का सबसे बड़ा मूलमन्त्र है कट्टरवाद बनाम उदारवाद,असहिष्णुता बनाम सहिष्णुता,साम्प्रदायिकता बनाम सद्भाव,नफरत बनाम मोहब्बत,गरीबी बनाम अमीरी की इस बिहारी राजनीतिक जंग ने लालू यादव को व्यक्ती से व्यक्तित्व बनाकर विचारवान,राष्ट्रवादी नेता के रूप में भाजपा के अमर्यादित जुमलों से आहत लोगों का मज़बूत लीडर बना कर मोदी के विकल्प के रूप में देश को दिया है !
हम नरेंद्र मोदी की बिहार पराजय के विश्लेषण में अगर एक अवलोकन के अनुसार 22 फीसद मुस्लिम मतदाताओं को अगर शामिल नहीं करेंगे तो इस राजनैतिक आन्दोलन की सच्चाई पर पर्दा डाल रहे हैं !यह इस चुनावी अभियान में अपना समर्थन देने वाला वह वर्ग है जो अपने धर्म में बादशाह तलाश नहीं करता !
बल्की अपने सहयोग से किसी ऐसे व्यक्ती को बादशाह बनाने का प्रयास करता है जो बहुसंख्यक (हिन्दू )समाज का होते हुए भी धार्मिक उन्माद के नाम पर बनने वाले पकिस्तान को ठोकर मार कर धर्मनिरपेक्ष हिन्दुस्तान को समर्थन देने वाले मुस्लिम वर्ग को राष्ट्र की धरोहर समझे जो बहुसंख्यक (हिन्दू ) समाज में पैदा होकर भी इस तारीखी सच को स्वीकार करे कि मौजूदा हिन्दुस्तान की सीमाओं की विराटता को कायम रखने में हिन्दुस्तानी मुसल्मानो ने खुद अपने ही धर्म के उन्मादी और कट्टरवादी तत्वों के विरुद्ध 14 अगस्त 1947 को ऐलान ए जंग कर के पाकिस्तानी सरहदों को छोटा और हिन्दुस्तानी सरहदों को विशालता देने में अहम् योगदान दिया था !
उपरोक्त मुस्लिम वर्ग का बिहार के चुनावो में मुत्तहिद होकर मतदान करना बिहार के चुनाव की तकदीर लिखने की तरह था और इस सिद्धांत के प्रती अपनी आज़ाद ख्याली के मशहूर अलीगढ़ की छात्र राजनीत के दौरान हजारों बिहारी छात्रों के सर्वमान्य नेता रह चुके देश के स्थापित शिक्षाविद मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी के प्रो चांसलर और अखिलेश यादव सरकार के वरिष्ट केबिनेट मंत्री मोहम्मद आज़म खां का रौल एतिहसिक रहा है ! आमतौर पर जीत के मद में डूब जाने के बाद मुस्लिम मतदाताओं को मजबूरी में समर्थन देने वाला मतदाता मानने वाले धर्मनिरपेक्ष दल इस सच को नकार देते हैं जो मोहम्मद आज़म खां आम तौर पर अपनी जनसभाओं में मुसलामानों से एक दर्शनशास्त्री के रूप में कहते दिखाई देते हैं कि “ तुम बादशाह तो नहीं बन सकते लेकिन तुम्हारी मर्जी के बगैर भी कोई बादशाह नहीं बन सकता ” मो.आज़म खां ने बेबाकी के साथ बिहारी मुसलमानों को मर्यादा संस्क्रती सद्भाव और राजनीतिक सीमाओं के भीतर रहते हुए अपने अंदाज़ में यह सन्देश पहुंचाने का काम किया है जिसका आश्य समीक्षक यह निकाल सकते हैं कि नफरत की खेती करने वालों के विरूद्ध महागठबंधन के खुशबूदार बगीचे को अपनी कुर्बानी से कायम रखना ही होगा ! और लगभग 99 फीसद से अधिक बिना किसी उवैसी की परवाह किये बगैर बिहार के 22 फीसद मुस्लिम मतदाता का गठबंधन को समर्थन भारत के राजनैतिक इतिहास का एक उदहारण बनकर हमेशा कट्टरवादी ताकतों के लिए यह सन्देश देता रहेगा कि हम मुसलमान ज़िंदगी की आख़री सांस तक उदारवादी सहिष्णुता से भरपूर और सत्य के उपासक हिन्दू का साथ देते रहेंगे ! बिहार चुनाव का यह वह सच है जो संभवतः इतना सीधा लिखने,बोलने,पढने और सुनने को आसानी से नहीं मिलेगा !

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