कोऑपरेटिव से कारपोरेट की और बढ़ते कदम ?

sohanpal singh
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हम भी कभी कभी संसद की लाइव कार्यवाही देख ही लेते है ! एक है वरिष्ठ लोगों की बैठक और कनिष्ठ लोगो की बैठक ! जब इन दोनों सदनों की कार्यवाही चल रही होती है तो अति महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को छोड़कर अक्सर दोनो स्थानों पर कुर्सिया खली ही रहती है जहाँ पर करोडो रुपया रोज खर्च होता है परंतु जिस कार्य के लिये संसद बानी है वह कार्य होता हुआ दिखता ही नहीं और तो और 18 घंटे काम करने वाला सेवक भी कभी कभी नजर आता है ? लेकिन सरकार कितनी धूर्तता से अपने सरकारी कार्य करा लेती है उसका उदाहरण भी नहीं मिलता ? जैसे बजट प्रस्तावों को मनि बिल बना कर केवल लोकसभा से पास करवाकर कानून बना लेना ! लेकिन धूर्तता तब नजर ही नहीं आती जब बजट के अंतर्गत कंपनी कानून और आयकर क़ानून में भी मन चाहा संशोधन कर लिया जाय एक ओर कोई भी व्यक्ति 2000 से अधिक नकद में चंदा किसी भी पार्टी को नहीं दे सकता लेकिन अब कोई भी कंपनी कितना भी रुपया किसी भी पार्टी को पॉलिटिकल फंडिंग बांड के जरिये दे सकता है और उसे बताने की भी जरुरत नहीं है जब की यह प्रस्ताव भारतीय जान प्रतिनिधित्व अधिनियम के द्वारा चुनाव सुधारों के अंतर्गत करना चाहिये था जिसको दोनों सदनों के द्वारा व्यापक बहस के बाद पारित किया जाना था लेकिन राज्य सभा में बहुमत न होने पर सरकार ने लोकतंत्र के साथ धूर्तता का पाखंड रच डाला जो की संविधान की आत्मा के साथ और लोकतंत्र के साथ व्यभिचार के सामान ही है ! इस लिए हम समझते है कि जोड़ तोड़ से शासन तो खूब अच्छी तरह चलाया जा सकता है लोकतंत्र की मर्यादा को जीवित नहीं रखा जा सकता क्योंकि हम लोक शाही में रहते है राज शाही में नहीं यहाँ जनता सर्वोपरि है इस लिए चुने हुए प्रति निधि या पार्टिया कितना भी परपंच कर ले लेकिन जीतना लोकतंत्र को ही है अब वो भवना जीवित नहीं है जब कबीर को यह कहना पड़ा की “कंकड पत्थर जोड़ के मस्जिद लई बनाया , ता पर मुल्ला बांग दे क्या बाहिरा हुआ खुदाय ” खुदा (भगवान) बहरा हो सकता है लेकिन जनता जागरूक है समय आने पर अपना हिसाब बराबर कर लेती है ? क्योंकि वर्तमान सरकार जिस प्रकार से कारपोरेट घरानो पर देश को निर्भर करती जा रही है वह एक खतरनाक मोड़ है जिसमे फसने के बाद लोक तंत्र पिंजरे के शेर की तरह हिं रह जायेगा , उदाहरण के तौर पर जिस प्रकार से सरकारी कम्पनियो से रेलवे को डीजल की सप्लाई से वंचित करके एक प्राइवेट कंपनी रिलायंस को ठेका दिया है तो वह जिस दिन भी चाहें उस दिन तमाम रेल गाड़ी पटरियों पर ही रोक सकता है? यह किसी भी लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है ?
एस.पी.सिंह, मेरठ ।

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