पशु्-स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें पालक

bikaner samacharबीकानेर 20/9/17। राजस्थान में अक्टूबर माह में पशुपालकों को पशुओं के स्वास्थ्य के प्रति क्या क्या सावधानियां रखनी चाहिए इस बारे में राजस्थान पशुचिकित्सा और पशु विज्ञान विष्वविद्यालय, बीकानेर
पषुचिकित्सा एवं पषु विज्ञान महाविद्यालय, बीकानेर के वैज्ञानिकों ने राजस्थान में पषु रोग पूर्वानुमान जारी किए हैं। अप्रेल, 2004 से राजस्थान पशुचिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर के अन्तर्गत वेटरनरी कॉलेज, बीकानेर के वैज्ञानिक उपलब्ध पूर्व आँकड़ों के आधार पर मौसम आधारित पशु रोग पूर्वानुमान लगातार घोषित कर रहे हैं। इस कड़ी में अक्टूबर माह, 2017 हेतु पूर्वानुमान वर्ष 1995 से आज तक राज्य भर के पषु रोग आंकड़ों को एक कंप्यूटर कार्यक्रम द्वारा विष्लेषित कर विषेषज्ञों द्वारा पूर्वनुमान के रूप में ढाला गया है। जारी अनुमान में वैज्ञानिकों ने
सावधानियां व सुझाव भी बताए हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार :-
इस बदलते मौसम में विषाणु जनित रोग जैसे खुरपका-मुंहपका, तीन दिन का बुखार ज्यादा होने की सम्भावना रहती है अतः पशुपालक ध्यान दें कि विषाणुजनित रोग होने पर पशुचिकित्सक से तुरन्त सम्पर्क करें।
इस समय भेड़-बकरियों में माता रोग, पी.पी.आर. कन्टेजियस एक्थाईमा (व्त्थ्) एवं फड़किया की सम्भावना भी अधिक रहती है। यदि पशुपालकों ने भेड़-बकरियों में और बडे़ पशुओं में इस रोग से बचाव के लिए टीके नहीं लगवाये हैं, तो टीकाकरण करवा लें।
संक्रामक रोग से ग्रसित पषुओं को स्वस्थ पषुओं से दूर रखें जिससे संक्रमण स्वस्थ पषुओं में ना हो।
इस मौसम में पषु के शरीर पर किसी भी प्रकार के घाव की देखभाल सही तरीके से करें अन्यथा घाव में मक्खी बैठकर अण्डे देती है जिससे घाव में कीडे़ पड़ जाते हैं। इससे बचने के लिए घाव को अच्छी प्रकार से लाल दवा से धोकर, एंटीबायोटिक मलहम लगाये।
पषुओं के बाड़े में मल-मूत्र, कीचड़, कचरे आदि के कारण नमी का स्तर काफी ज्यादा होता है जिससे कि पषुओं में तनाव, संक्रामक रोगों व परजीवियों के प्रकोप बढ़ने का खतरा रहता है। पषुपालक को चाहिए कि वह हर संभव स्तर तक पषुओं के बाड़े की साफ-सफाई पर ध्यान दें तथा पानी एवं कीचड़ जमा न होने दें।
पषुपालकों को चाहिए की पषुबाड़े के आस-पास गन्दा पानी एकत्र ना होने दें ताकि इन मच्छर, कीट इत्यादि को पनपने व फैलने से बचाया जा सके। रक्त-परजीवी रोग जैसे कि थाइलेरिया, ट्रिपेनोसोंमा, बबेसिया इत्यादि वर्षा काल में जन्मे कीट व चींचड इत्यादि के द्वारा फैलते हैं।
इस माह परजीवी नाषक दवाई अवष्य दें। परजीवीनाषक दवा को हर बार बदल-बदल कर उपयोग लें। चारे के संग्रहण पर विषेष ध्यान दें। नमी के कारण कई फफूंद जनित रोगों के संक्रमण का खतरा रहता है।
– मोहन थानवी

error: Content is protected !!